तीखी कलम से

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

नववर्ष के आगमन पर अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?

पिछले वर्ष मैंने की थी ,
मंगलमय वर्ष की कामना ।
पर ये कैसी विडम्बना !
वर्ष 2012 तुमसे क्या पूछना ?
लाख मिन्नतों के बाद भी तुमने ,
जरी रखा रंग बदलना ।
देश में  भ्रष्टाचार की बुलंदियों पर
तिरंगा लहरा  रहा है ।
देश का भ्रष्टाचारी,
अपनी सफलता पर इतरा रहा है ।
लोकपाल हो या काला  धन
मसला गरम है ,
पर संसद नरम है ।
एफ डी आई पर सांसदों का बिकना ,
आरक्षण की आग पर
फिर से रोटियों को सेकना ।
असंवैधानिक तुष्टिकरण ।
किसानों का मृत्यु वरण ।
कानून मंत्री का
कानून भक्षकों को संरक्षण ।
और जाते जाते ,
पूरे देश की आँखों में आंशू दे गये ।
भारत की स्मिता बन चुकी दामिनी को
साथ ले गये ।
सन 12 तुम दामिनी के दागदार निकले
अपराधियों के वफादार निकले
हे वर्ष 2013 !
पिछले वर्षों की तरह कहीं तुम भी तो नहीं
लाज शर्म घोल के पी लोगे ।
एक शक ......
कहीं तुम भी ,
दगाबाज तो नहीं निकलोगे  ?
अब मैं किस दिल से तुम्हारा स्वागत करूं ।
मै कैसे खुशियों की झोली भरूँ ।
गुजरे कुछ वर्षों से नववर्ष मंगलमय होने का
भरोसा टूटता जा रहा है ।
मानवता-संस्कार सब कुछ छूटता जा रहा है ।
हमारे प्रधानमंत्री फिर साल के अंत में बोलेंगे
" ठीक है "
न्याय  पर अन्याय की जीत है ।
इन बलात्कारियों  के परिवेश में
कहाँ मिलेगे मन के  मीत ?
सन 13 .....! 
तुम्हीं बताओ  ?
नववर्ष के आगमन पर
अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?
अब कौन लिखेगा मंगल गीत ???

                       नवीन

रविवार, 23 दिसंबर 2012

गज़ल

मरहम  के लिए अब कोई सरकार  नहीं है ।
मजदूर  को  एहसान  की  दरकार  नहीं  है ।।

गुम  हो रहीं हैं अब तो  सहादत की फाइलें ।
ज़माने को अब तो  उनका ऐतबार  नहीं है ।।

क्यूँ शौक से पढ़ते मेरे दिल की किताब को ।
कुछ तो करो  जनाब  ये  अख़बार  नहीं  है ।।

कश्ती  के डूबने का फ़िक्र क्यूँ हुआ उनको  ।
सूखी नदी  में जब  यहाँ  मजधार  नहीं  है ।।

बिखरी हुई है लाली जो  होठों पे  उनके आज ।
अब  वक्त  का  उन्हें  भी  इंतजा
र  नहीं  है ।।

सहमी हुई कली है क्यों भौरों की  नजर से ।

मतलब के लिए प्यार का बाजार   नहीं है ।।


बुधवार, 7 नवंबर 2012

हिंदी की व्यथाएं

    





सदा देश की पीड़ा को कविता के पट पर लिखता हूँ ।
भारत माँ के वक्षस्थल की हर धड़कन को पढ़ता हूँ ।।

विचलित पथ पर भटक रहे हैं हम भारत की व्यथा लिए ।

दंभ खोखले लेकर फिरते इतिहासों की कथा लिए ।।

संस्कार के दीपक की बाती बुझती है अब तेल बिना ।

अंधकार पसरा है जग में भाषाओँ के मेल बिना ।।

लोकतंत्र के इस उपवन में बोलो अब मर्यादा क्या है ।

दुनिया हम से पूछ रही है भारत तेरी भाषा क्या है ?


 
हम गुलाम की प्रबल निशानी को अब गले लगा बैठे ।

राष्ट्र पंगु है निज भाषा बिन स्वाभिमान गवा बैठे ।।

यहाँ गुलामी के प्रतीक की भाषाओँ से लड़ता हूँ ।

स्वाभिमान के लिए सदा सौ सौ जन्मो से मरता हूँ ।।

सदा देश की पीड़ा ......................................।

भारत मां .............................................।


हिन्दुस्तानी परम्परा है सबका तुम सम्मान करो ।
हक कैसे मिल गया तुम्हें है हिंदी का अपमान करो ।।


आजादी के हर मुकाम पर हिंदी है ललकार बनी ।
बलिदानी के गीतों में वह ओजस्वी अंगार बनी ।।


मंगल या  ,आजाद ,हो बिस्मिल सबकी यही कहानी है ।
फाँसी के तख्तो से निकली हिंदी सबकी बानी है ।।


अक्षुण करती  देश एकता गरिमा का इतिहास लिए ।
भारत मन की प्यारी बेटी रोती  क्यों संत्रास लिए ।।


भाषा की है अमर बेल यह भारत की फुलवारी में ।
हिंदी अब तो पनप रही है दुनिया भर की क्यारी में ।।


भारत के कोने कोने को  हिंदी से  मैं  रंगता हूँ ।
अमर रहे हिंदी भारत में दीप प्रज्वलित करता हूँ ।।


सदा देश की पीड़ा को .................................।
भारत माँ  के वक्षस्थल की .........................।।



हिन्दुस्तानी संस्कृति की जननी तो ये  हिंदी है ।
संस्कार के खेतो की  पावन  माटी  सी हिंदी है ।।


जन गन मन के राष्ट्र गान को झंकृत करती हिंदी है ।

बन्दे मातरम देश राग के स्वर में ढलती हिंदी है ।।


सेना के कण कण में सबका मान  बढाती हिंदी है ।

अग्नि या ब्रह्मोस धनुष पृथ्वी को बनाती  हिंदी है ।।


तकनीकी की शब्द श्रृखला रोज बढाती हिंदी है ।

मानवता के खातिर जग को एक  कराती हिंदी है ।।


तुलसी सूर कबीर और रसखान पढाती हिंदी है ।

दिनकर मीरा और निराला से मिलवाती हिंदी है ।।


हिंदी का विरोध जो करते राष्ट्र विरोधी कहता हूँ ।

मैं भारत का भाषा प्रहरी भाषा मान  सजोता हूँ ।।


सदा देश की पीड़ा को ....................।

भारत माँ के वक्षस्थल की  ................।।



भारत की माटी  की भाषा का श्रृंगार करा दूंगा ।
हिंदी के खातिर इस  जग में अपना शीश चढ़ा दूंगा ।।


यहाँ गुलामी के चिन्हों पर मैं तलवार चला दूंगा ।

हिंदी राष्ट्र शीर्ष पर होगी वह आदित्य दिखा दूंगा ।।


देश मिला है बलिदानों से  अभिमान जगा दूंगा ।

हिंदी की मसाल लेकर के हिंदुस्तान जगा दूंगा ।।


देश रहेगा नहीं मूक भाषा का मर्म सिखा दूंगा ।

हिंदी का विरोध करने पर तीखा सबक सिखा दूंगा ।।


सूत्र एकता की  हिंदी  है क्रांति बिगुल बजा दूंगा ।

हिंदी की गरिमा  का मैं तो  नव इतिहास  लिखा दूंगा ।।


भाषा वादी राजनीति  के हर पन्ने को पढ़ता हूँ ।

लोकतंत्र का कला पन्ना छोड़ के आगे बढ़ता हूँ ।।


सारे देश की पीड़ा ..........................................।

भारत माँ के .................................................।।


                           नवीन मणि त्रिपाठी 




शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

आम आदमी

 आम आदमी 
                      -नवीन मणि त्रिपाठी 
भारतीय अर्थ व्यवस्था में
बढ़ती महँगाई ।
भ्रष्टाचार से
काले धन की कमाई ।
वह पिस जाता है ,
घिस जाता है ,
पथराई सी आँखे ,
किसी सूखे लहसुन की कली की तरह ।
निस्तेज हो जाती हैं ।
थाली से रोटियां निकल जाती हैं ।
वह चिल्लाता है ....
रोता है ....
न्याय मांगता है ।
कौन सुनता है ?
आखिर कौन है वह ?
यही है देश का भोला भला इंशान ।
भीड़ जुटाने का सामान ।
पहचाना ?
क्या
यही है आम आदमी ?
यही है आम आदमी ??


* * * *


आम आदमी कौन है ?
वह आश्चर्य जनक ढंग से
 क्यों मौन है ?
इस गूढ़ प्रश्न का जबाब कौन दे सकता है ?
गाँव वालों ने
चार व्यवस्था के महत्वपूर्ण कर्णधारो  को बुलाया ।
सब के सामने प्रश्न  दोहराया  ।
पहले कर्णधार ने बताया ।
सबको समझाया
कहा !
आम आदमी को हम
मैंगो पीपुल कहते हैं ।
जिस तरह से आम को
आखिरी स्वाद तक पंजे से  निचोड़ते और चूसते हैं ।
ठीक ऐसे ही हम इसे निचोड़ते हैं ।
इस आम का रस हर क्षेत्र में मिलता  है ।
खेल हो या स्पेक्ट्रम
सब में दिखता है ।
जमीन के मामले में तो यह खास है ।
विकलांगो का ट्रस्ट हो या कोयला ।
सब में मिठास है ।
ऐसा आदमी जो बिना किसी आवाज के,
पीड़ा को सहता रहे  ।
अपने ही वतन में चुप चाप लुटता रहे ।
जिसके सर उठाने  के लिए
ना हो आसमान ।
और बस जाने के लिए न हो जमी ।
हाँ
वही  है आम आदमी ।
वही  है आम आदमी ।।


*                   *                    *                    *             *


दूसरे कर्णधार को नहीं रहा गया ।

पहले की बातों  में उलझ गया ।
झट से बोल पड़ा
"तुम्हारी आम आदमी के बारे में जानकारी अधूरी है ।
क्या मुझे अपनी बात कहने की मंजूरी है ?
सहमति है ! तो सुनो .....
आम आदमी का आधार जाति होता है ।
मनुवादी संस्कृति का विरोधी होता है ।
जिसे आसानी से जाति के आधार पर
बेवकूफ बनाया जाता  है ।
जातिवादी विष बीज से जिसे  भड़काया जाता है ।
उत्थान के झूठे आश्वासनों से बहकाया जाता है ।
जिसके पैसों से मूर्तियाँ और पार्क बनते हैं ।
खाद्यानो के घोटालों से बंगले सजाते हैं ।
जब वह  किसी अस्पताल की चौखट पर
बच्चे की जिन्दगी बचाने  के लिए
जान की भीख मागता है ।
अपने हिस्से की इलाज की दवा के लिए
डाक्टरों का मुह ताकता है ।
इंसान मर जाता है इलाज के बिना
नेता दवा पी जाता है शर्म लाज के बिना ।
जब वह शोर मचाता है ।
आँका के हाथी से रौंद दिया जाता है ।
दिखती  रहती है उसकी आँखों में ,
छले जाने की नमी ।
जी हाँ ,
यही है आम आदमी ।
यही हैं आम आदमी ।।



*                          *                          *                  *



तीसरे कर्णधार ने बात काटी
तोड़ दी सारी परिपाटी
चुप रह ! तुझे क्या पता ?
मूर्खता की पहचान ना जता ।
आम आदमी वह होता है ,
जो गुंडों के आतंक से आतंकित होता है ।
गुंडा टैक्स देता है ।
साम्प्रदायिकता के दंस का शिकार  होता है ।
शोषित मानसिकता से
बीमार होता है ।
वह बहुत भोला होता है ।
साम्प्रदायिक दंगो का गोला होता है ।
जैसा चाहो वैसा समझा दो ,
पूरे शहर में दंगे भड़का लो ,
बस थोड़ी सी स्कूल की फीस और
भत्तों का लाली  पाप ।
पूरा  हो जाता है
आम आदमी का ख्वाब ।
भ्रष्टाचार करते जाओ
उसे सड़क  बिजली और
पानी से तरसाओ ।
इसके बाद भी वह तुम्हारे सायकल की तीलियों को
अशोक चक्र की तीलियाँ समझने  लगे
तुम्हारी लाल टोपी के खतरनाक संकेत को
जिन्दगी की गाड़ी का ग्रीन  सिग्नल समझने  लगे ।
जब उसे जलाकर खाक करने लगे
दहकती आग मजहबी ।
बस समझ लेना 
यही है आम आदमी ।
यही है आम आदमी ।।


*                        *                     *                            *




चौथे साहब थोडा मुस्कराए
अपने आडम्बर का जाल  बिछाए
और फिर धड़ल्ले से उछल गये
अपनी ताकत पर मचल गये
मैं बताऊंगा !
प्रत्यक्ष दिखाऊंगा ।

अरे भाई अवैध खनन कर लो ।
देश के अधिकारीयों को
ट्रैक्टर से कुचल दो ।
ड्राइवर हो या ज्योतिषी
किसी को कम्पनी मालिक
तो किसी को डायरेक्टर बना दो ।
जब चाहो जैसे चाहो
जिन्दगी को कमल सा खिला लो ।
जमीन हथियाओ
सिचाई के पानी से फैक्ट्री  चलाओ ।
भगवन के नाम पर जीता है
मस्जिद में कुरान और मंदिर में रखता गीता है ।
धर्म के नाम पर
जो अति संवेदनशील होता है ।
राज नेताओं की नाव का कील होता है ।
जो धर्म के नाम पर साम्प्रदायिक हो जाता है ।
जाति  के नाम पर जातिवादी हो जाता है
जो रोटी के नाम पर स्वाभिमानी नहीं होता
देश के नाम पर हिन्दुस्तानी नहीं होता
जिसके चरित्र की कीमत में
रह जाती है कमी
वही है आम आदमी ।
वही है आम आदमी ।।


*                    *                  *                        *


इतना सुनते ही
आम आदमी का स्वाभिमान जाग गया
चारो तरफ हाहा कार मच गया
उसका रौद्र रूप देख कर
सिंघासनों में आ गया भूचाल
सिहर गया है भ्रष्टाचारी
जो है मालोमाल ।
फिर भी
आज आम आदमी
बड़े ही तहजीब के साथ आगे आया है ।
साफगोई से कुछ कहने  आया है ।
" साहब मैं हूँ
आम आदमी
जिसे आप सब ने लूटा है ।
थाने  ले जाकर पीटा  है ।
हमारे खेतो का पानी  आप  पीते  हो
हमारी बिजली से जिन्दगी  जीते हो ।
आप ने धर्म के नाम पर
जानवर की तरह लड़ाया है ।
जाती के नाम पर आप ने आपने
चुनाव में जीत का बिगुल बजाया  है ।
आज आप की नज़रों में ये आम आदमी
कितना घिनौना हो गया है ।
यह तो गुलाम भारत से भी ज्यादा
बौना हो गया है ।
पर याद  रहे साहबान !
आम आदमी अब नहीं होगा मेहरबान ।
अब उसे अपना आत्म सम्मान चाहिए ।
एक एक  रुपयों का हिसाब चाहिए ।
देश के लुटेरों का वापस मॉल चाहिए ।
उन्हें पकड़ने का हथियार लोकपाल चाहिए ।
जब देश का आम आदमी जगता  है ।
अपना स्वाभिमान मागता है ।
खो जाती है शासकों की शांति ।
देश में आती है महाक्रान्ति ।
भ्रष्टाचारियो से देश को निजात चाहता है ।
गाँधी का देश रामराज्य चाहता है ।।
सावधान !
सत्ता के मद में चूर भ्रष्टाचारियों ।
शोषण करने वाले मत के भिखारियों ।
तुम्हारे घिनौने  कर्मों से नहीं रह गया हूँ अजनबी ।
जानो ........ !  पहचानो ......!
यही है आम आदमी
यही है आम आदमी ।।

रविवार, 23 सितंबर 2012

हिंदी पर चार छंद

हिंदी पखवाडा पर हिंदी को समर्पित  अवधी भाषा  में चार छंद



हिंद  की   शान  की  ताज  बनी   निज  गौरव  माँ   बढ़ावत   हिंदी |
सूर  कबीर  बिहारी   के  नवरस  छंद   का    पान   करवट   हिंदी ||
तुलसी  केहि  मानस  सागर  में यह मोक्ष का ध्यान करावत हिंदी |
मीरा  की भक्ति  की  प्रेम  सुधा बन प्रेम  की  राह  दिखावट  हिंदी ||

निर्माणी है  आयुध  की  अपनी   पर  ताल  से  ताल  मिलावत हिंदी |

तकनीकी की सूक्ष्म से सूक्ष्म विधा जन मानस तक पहुचावत हिंदी ||
पृथ्वी  अग्नि   ब्रह्मोश  के  शब्द   से दुश्मन  को    दहलावत   हिंदी |
अर्जुन  टंक पिनाका  परम  से ये  देश   की   लाज   बचावत   हिंदी ||

देश  के  जंग  की  अंग  बनी  बलिदानी  को  मन्त्र  बतावत  हिंदी |

वीर  शहीदों  के  फाँसी के  तख़्त से भारत  माँ को  बुलावत  हिंदी ||
जब देश के मान पे आंच पड़ी तब क्रांति  बिगुल को बजावत हिंदी |
सोये   हुए   हर  बूद  लहू  को  वो   अमृत   धार   पिलावत  हिंदी ||

राष्ट्र  की  भाषा  उपाधि  मिली  नहीं  शर्म का  बोध  करावत हिंदी |

राज  की  भाषा  की नाव  नहीं  यह  राष्ट्र  की पोत चलावत  हिंदी ||
कुछ  शर्म  हया  तो  करो  सबही  करुणा  कइके  गोहरावत हिंदी |
भारत  माँ  की  दुलारी लली  केहि  कारण  मान  ना  पावत हिंदी ||

रविवार, 16 सितंबर 2012

हिंदी का सम्मान ना काटो

                                    14 सितम्बर हिंदी दिवस पर 


हिंदी का सम्मान ना काटो|
मेरा   हिंदुस्तान ना  बाँटो ||


                    तुम भारत के जन नायक हो |
                 जन गन मन अधिनायक हो |
                 इस  लोक तंत्र के दायक  हो |
                 जन मानस के  निर्णायक हो |


 

लोकतंत्र  के  इस उपवन से ,

भाषाओँ की डाल ना छांटो ||
हिंदी का सम्मान ना  काटो
मेरा  हिंदुस्तान  ना  बाँटो ||


                   यह    देश   टूटता  जायेगा | 
                 अपराध  बोध   हो जायेगा  |
                 माथे  कलंक  लग  जायेगा | 
                 इतिहास  शर्म   दोहराएगा | 


 

तुच्छ स्वार्थ के खातिर जग में

तीखा   तीखा  विष  ना  चाटो|| 
हिंदी  का  सम्मान  ना   काटो
मेरा   हिंदुस्तान   ना    बाँटो ||


              कलुषित  क्षेत्रवाद    को  धोना | 
            बीज    राष्ट्र   वाद   के   बोना  |
            दूर  रखो   हर   कर्म  घिनौना |
            हर  भाषा   का   पुष्प  पिरोना |  


 


भारत  माँ  का  माल्यार्पण  कर 

मन के  कुटिल  राग  को  डाटों ||
हिंदी   का  सम्मान  ना   काटो |
मेरा     हिंदुस्तान  ना     बाँटो ||


                          हर  भाषा   के  बलिदानी  थे |
                       वे   स्वतंत्रता   के    दानी  थे |
                       भारत  की  अमर  कहानी थे |
                       वे   दुर्लभ   राष्ट्र   निशानी  थे |


 

बहुत   बनाई   गहरी   खाई |

शर्म  करो  जाओ  तुम पाटो ||
हिंदी  का  सम्मान ना काटो |
मेरा   हिंदुस्तान   ना   बाटो ||
                       


शनिवार, 25 अगस्त 2012

दो कवितायेँ

     शान्ति
वह मिलती है क्या ?
अरबों रुपयों के गोल मॉल में ,?
उद्योगपतियों  के 

वैभवशाली परिवार में ?
दूरदर्शन पर प्रायोजित 

महत्माओं की दूकान में ?
शायद वह वहाँ   नहीं |
गलत है तलाश की दिशा !
अनंत अंधकार युक्त निशा |
तुम्हारी असंख्य इच्छाओं ने ,
जीवन की कुटिल धाराओं में |
कार कोठी बंगला ,
जिसे चाहा दिल से पुकारा |
वह सब कुछ मिल गया |
कामनाओं का कमल खिल गया |
.......तुमने !
एक बार भी उसे नहीं पुकारा !
......असीम
आनंद का कलश लिए
तुम्हारी निकटता पाने के लिए
बेचैन .......
प्रतीक्षारत नैन .....
उसकी ओर अपना मुँह 

फेरो तो सही |
उसकी भावनाओं को 
समझो तो सही |
लेकर जीवन के 
नव सृजन के कांति ,
मिलेगी तुम्हे
 मिलन की व्याकुलता लिए ,
तुम्हारी शान्ति |
तुम्हारी शान्ति |
तुम्हारी शान्ति ||
 

           प्रतीक्षा




चिर परिचित आँखें
अब वे धंस चुकी हैं
उनके गुलाबी होठों की लालिमा
अब बदल चुकी है |
काली कालिमा में
तेजहीन आकृति ,
और झुलसा रही हैं उसे
पश्चाताप की अग्नि |
एक गलती ....................
एच आई वी की एंट्री
विवश हो गयी अब
उत्सुकता के साथ साथ
अंत की प्रतीक्षा ||

        नवीन 

       

शनिवार, 11 अगस्त 2012

स्वतंत्रता दिवस

आज हम देश में ,
६५ वाँ स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं |
आजाद हिंद को दिल से सजा रहे हैं |
बड़े गर्व से अपना सर ,
ऊंचा उठा रहे हैं |
आज के दिन ,
हम खूब याद करते हैं ,
आपने देश के बलिदानियों का बलिदान |
बलिदानों से जीवित है हमारा सम्मान |
याद है हमें ,
राजगुरु भगत सिंह
और बिस्मिल की फासी |
आजाद का स्वभिमान
और वीरांगना रानी झाँसी ||
असंख्य देश भक्तों की क़ुरबानी |
गाँधी के सत्याग्रह की
वह अमिट निशानी |
बलिदानियों से भरा पड़ा
हमारे देश के  स्वतंत्रता का इतिहास |
लाखों कुर्बानियां और लाखों उपवास |
एक बेमिशाल
देश भक्ति का जज्बा |
आजाद कर गया देश का हर कुनबा |
पर आज !
हम खो रहे हैं उस महा शक्ति का ताज |
हम तोड़ रहे हैं भारतीयता की लाज |
आज देश का गरीब ,
अस्पताल की चौखट पर
सर पटक पटक कर मर जाता है |
पर हमारा यह तंत्र
उस जीवन दायनी दवा को ही हजम कर जाता है |
आज आसाम में द्रौपदी की तरह ,
हमारी बहनों का चीर हरण होता है |
और आज का आजाद भारतीय ,
बिना किसी आन्दोलन के न्यूज के चटखारे लेता है|
देश में स्पेक्ट्रम का अवैध सौदा |
भारतीय जन मानस को भरपूर रौदा |
खेलों में फर्जी बिलों का मुद्दा  |
ये है हमारी स्वतंत्रता का धब्बा |
आज स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद ,
हमने ऐतिहासिक प्रगति किया है |
घोटालों में उन्नति
विश्व स्तर पर किया है |
आज के स्वतंत्र भारत में सब कुछ बिकता है |
अन्याय का दीपक खुले आम जलता है |
हम मौन हैं ,
हम लाचार हैं|
हम विवश हैं ,
हम बीमार हैं |
ध्वस्त  हो चुकी है
हमारी अन्याय से लड़ने की शक्ति |
विलुप हो गयी है
आजादी से पहले की देश भक्ति ||
कम से कम
आज तो जाग जाओ ,|
स्वतंत्र होने के दायित्वों को
समझ जाओ |
इस से पहले तुम्हारा देश
घोटालों और भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाये !
देश से बलिदानियों का इतिहास धुल जाये |
तुम्हे इस देश को बचाना होगा |
हर दिल में बन्दे मातरम का जज्बा जगाना होगा |
और इस तिरंगे को
देश के हर घर में फहराना होगा |
देश के हर घर में फहराना होगा ||
देश के हर घर में फहराना होगा ||
           जय हिंद


 

शनिवार, 9 जून 2012

   शंखनाद

                                  -नवीन मणि त्रिपाठी



      आज अपने खेत से आसमान में टकटकी लगाये गोखले के मन में बार बार यही खयाल आ रहा था कि कब दिखेंगे वे पानी वाले बादल ? मानो गोखले की फसल ही नहीं झुलस रही थी ,बल्कि उसके अन्तर मन में कल्पनाओं की लहलहाती फसल में जैसे आग सी लगी हुई थी । बेटी की शादी का रिश्ता तो पहले से ही तय कर चुका था। इसी वर्ष तो उसे शादी भी करनी थी। पिछले साल बेटी की पढाई, कापी किताब का इन्तजाम नहीं हो पाने की वजह से रोक दी थी । रोकता भी क्यों ना बेेटे की पढ़ाई उसे ज्यादा जरूरी लगी थी । दोनों का खर्चा चला पाना गोखले के बस की बात नहीं थी। प्राइवेट बैंक वालों ने बड़े मॅहगे दर पर कर्ज दिया था। फसल आने से पहले ही किसी किसी गिद्ध की तरह घर पर मडराने लगे थे । कमाई का ज्यादातर हिस्सा तो वही लोग वसूल ले गये थे। फिर इधर उधर की गणित लगाकर जैसे तैसे परिवार की गाड़ी तो चलानी ही थी।


      खयालों की तन्द्रा टूटते ही जानवरों के चारे के इन्तजाम लग गया तभी गॉव में एक हलचल का आभास उसे पलट कर गॉव की ओर देखने के लिए विवश कर दिया। जोर जोर से चीखने रोने की आवाजें बीच गॉव से आ रहीं थीं ं।गोखले के पैरों में गजब की ऊर्जा आ गयी और तेज गति से दौड़ते हुए गॉव की ओर चल पड़ा। आवाजें रमेश बोडालकर के घर से आ रहीें थीं । गोखले को समझते देर ना लगी कि शायद बहुत दिनों से टी0बी0की बीमारी झेल रहे बोडालकर अब नहीं रहे । बोडालकर ठीक भी कैसे होता कर्जा भरते भरते वह तो खोखला हो चुका था। पिछले साल उसकी फसल खराब हो गयी थी मगर वे गिद्ध मडराने से कहॉ बाज आये थे ?आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपइया की हालात को झेल पाना सबके बस की बात तो थी नहीं । सुरसा जैसी मुॅह फैलाए महॅगायी की मार सबसे अधिक बोडालकर ही झेला था। आये दिन इन प्राइवेट बैंकों के एजेंट लोगों ने उसका जीना मुहाल कर रखा था। रोज रोज जमीन हड़पने की धमकी भी तो यही एजेंट ही देकर जाते थे। आखिर कैसे चुकता करता वह अपना कर्ज ? घर में खाने तक के लाले पड़े हुए थे । भुखमरी की कगार पर आ बैठा था बोडालकर का परिवार । नहीं हो पाई दवाई , और अन्त में उसे मरना ही पड़ा। सोचते सोचते गोखले बोडालकर के दरवाजे तक पहुॅच गया।


   ‘‘मार डाला रे ........मार डाला रे .....‘‘छाती पीट पीट कर सन्नो बाई रो रहीं थीं।बेटे बेटियां हर कोई जोर जोर से चाीख चीख कर रो रहे थे। पूरे गॉव का मजमा लगा था। हर कोई आवाक था। बीमार बोडालकर की मौत स्वाभाविक नहीं थी । बोडालकर ने फॉसी लगा कर आत्महत्या की थी। लोगों ने बतााया बोडालकर के खेत की कुड़की की नोटिस उसे अभी कल ही मिली थी।खेतिहर जमीन तो किसान की आत्मा होती है। जी हॉ वही किसान जो सबका अन्नदाता है। अगर जमीन ही चली जाएगी तो किसान के जिन्दा रहने का कोई मतलब नहीं रह जाता। फिर बोडालकर भी तो एक किसान ही था। आखिर किस आत्मशक्ति के सहारे वह जीवन जीता । उसे तो मरना ही था।
      थोड़ी देर मे पुलिस की जीप आयी ।थानेदार ने बोडालकर के लाश की तलाशी ली । जेब से सोसाइट नोट की पर्ची निकली उसमें लिखा था -‘‘जिसके सहारे मैं जी रहा था वह मेरी जमीन थी।जमीान जाने के बाद मैं अपने परिवार की बेबसी नहीं देख सकूंगा । मै जा रहा हूॅ। मेरे परिवार को परेशान मत किया जाए।‘‘लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गयी । गॉव वालो का गुस्सा उबाल पर था। सरकार के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगने लगे । विपक्षी पार्टियों को मुद्दा मिल गया। अखबारों में किसान रमेश बोडालकर की आत्महत्या की खबर पहले पेज पर छापी गयी। माधवपुर गॉव के रमेश बोडालकर की आत्महत्या पर विपक्षी दलों ने विधानसभा में हंगामा करके वाक आउट किया। चुनाव का माहौल था।  माधवपुर गॉव में नेताओं का जमावड़ा शुरू हो गया। किसान यूनियन ने माधवपुर गॉव में रैली की घोषाणा की।


       सरकार की भ्रष्टनीतियां किसानों को आत्महत्या के लिए प्ररित कर रही हैं। इस तरह के पोस्टर जिले भर में लगाये जाने लगे। प्रशासन की ओर से आनन फानन में जिला अधिकारी महोदय का स्थानान्तरण किया गया।जॉच के लिए कमेटी का गठन किया गया परन्तु विपक्षी इस मुद्दे को कहॉ शाान्त होने देना चाहते थे। विपक्षी दलों ने रमेश बोडालकर की आत्महत्या को जन आन्दोलन बनाने के लिए शंखनाद कर दिया था। अन्ततः मुख्यमंत्री ने भी माधवपुर गॉव के दौरे की तारीख को  सुनिश्चित कर दिया था।

      
        आज माधवपुर गॉव प्रदेश का महत्वपूर्ण गॉव बन चुका था। रमेश बोडालकर की मृत्यु हुए पन्द्रह दिन बीत चुके थे। गॉव की निहायत कच्ची सड़के खो चुकी थीं । गॉव के सभी गली कूचों में खड़न्जे की सड़के बना दी गयीं थीं।गॉव को पिच रोड से जोड़ दिया गया था। वर्षो से बन्द पड़े ट्यूबेल को चालू कर दिया गया था। किसान सेवा केन्द्र व सहकारी समितियों मे रौनक आ चुकी थी। खाद ,बीज, व दवाएं पूरे गॉव के किसानों को वितरित किया गया था। प्राइमरी स्कूल की रगाई पुताई हो चुकी थी। गॉव के कुॅए और बन्द पड़े इण्डिया मार्का नल सब कुछ बेहतर कर दिये गये थे। विद्युत विभाग ने दस दिन के अन्दर ही गॉव का विद्युतीकरण करा दिया था। सभी पोलों पर लाइटें लगा दी गयाीं थीं।ऐसा लग रहा था जैसे बोडालकर की मौत ने गॉव में विकास की गंगा बहा दी हो। आज तो गॉव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था। ढेरों लाल नीली बत्ती वाली गाड़ियां गॉव में आ चुकी थीं।गणेश धापोडकर के खेत में हेली पैड बनाया गया था। पूरे गॉव में हजारों की भीड़ उपस्थित थी। डी0एम0साहब, डी0एस0पी0साहब वायरलेस सेट पर पल पल की खबर से वाकिफ हो रहे थे। किसी पर्व की भॉति माधवपुर गॉव सज गया था।मुख्यमंत्री जी का हेलीकाप्टर थोड़ी ही देर में पहुॅचने वाला था। मुख्यमंत्री जी के सवालों का जबाब कैसे देना है इसकी ट्रेनिंग गॉव के हर परिवार को प्रशासन की ओर से दे गयी थी।

    
     तेज हरहराहट की आवाज गॉव के पश्चिम दिशा की ओर आयी और देखते ही देखते मुख्यमंत्री जी का हेलीकाप्टर धापोडकर के खेत में उतर गया। मुख्यमंत्री व उनकी पार्टी के जिन्दाबाद के नारे से पूरा गॉव गूंज उठा। डी0एम0साहब , डी0एस0पी0साहब व क्षेत्र के विधायक व अन्य नेताओं ने उनकी अगवानी की । कुछ ही पलों में मुख्यमंत्री जी का काफिला रमेश बोडालकर के घर पहुॅच गया। मुख्यमंत्री जी ने स्वयं उनके परिवार का कुशल क्षेम पूॅछा। सन्नो बाई उन्हें देख कर रोने लगीं । मुख्यमंत्री जी ने उन्हें पॉच लाख रूपये का चेक भेंट किया,साथ ही उनका सारा सरकारी कर्जा माफ करने का आदेश दिया।एक बार फिर मुख्यमंत्री जी के जयकारों व जिन्दाबाद के नारों से पूरा गॉव गूंज उठा। गॉव के सभी किसानों के सरकारी कर्जे पचास प्रतिशत माफ कर दिये गये। रमेश बोडालकर की मौत को जन आन्दोलन का रूप देने के लिए विपक्षी दलों के द्वारा किये गये शंखनाद से पूरा गॉव का रूप तो वाकई बदल चुका था।कृषि यंत्रों ,खाद बीज  आदि पर भी पचास प्रतिशत के सरकारी अनुदान की घोषणा की गयी थी।विपक्षियों का मुॅह बन्द हो गया था।मुख्यमंत्री जी का यह कार्य अखबारों में सुर्खियां बटोर रहा था। कुछ महीनों बाद चुनाव आया मुख्यमंत्री जी की पार्टी का क्षेत्रीय उम्मीदवार चुनाव जीत गया । मुख्यमंत्री जी पुनः अपने पद पर आसीन हुए।


       आज बोडालकर की मौत के दो वर्ष बीत चुके थे। लोगों सरकारी कर्जा माफ होने से थोड़ी राहत जरूर मिली थी । कुछ ही महीनों के बाद सारे अनुदान समाप्त हो गये थे। गॉव का बिजली वाला ट्रांसफारमर महीनों से जला पड़ा था। नया लगाने के लिए इंजीनियर घूस मॉगता था। गॉव के सड़कों की ईट उधड़ चुकी थी। सड़कों में बड़े बड़े गड्ढे नजर आने लगे थे। बोडालकर के बेटे खेती करना छोड़ चुके थे।अब वे अपनी दूकान चलाते थे। अब कर्ज लेकर खेती नहीं करना चाहते थे। उन्हें समझ में आ चुका था कि किसानी करके जीवन यापन नहीं किया जा सकता। मुख्यमंत्री की सहायता राशि से उनका जीवन स्तर बदल चुका था। उन्हें अब खेती किसानी में अब घाटे का सौदा नजर आने लगा थां । गॉव का किसान एक बार फिर बेहाल था। सूखा पड़ने की स्थिति बन चुकी थी। जुलाई अपनी समाप्ति ओर थी । दूर दर तक मानसूनी बादलों का काई अता पता तक नहीं । खेतों की मॅहगी सिचाई कमर तोड़ रही थी । सरकारी कर्जा भी मिलना मुश्किल होता जा रहा था। कर्जा दिलाने वाले दलालों के रेट बढ़े हुए थे। प्राइवेट बैंकों से कर्ज लेना तो और भी खतरनाक था। महाजन की चॉदी थी वहॉ से कर्जे मिल जाते मागर समय से वापसी ना कर पाने पर इज्जत धन और जान की आफत मोाल लेना था। किसान सेवा केन्द्रो के बीज ,खाद सब कुछ महाजनों के नाम हो जाता था। फिर वही ब्लैक में खरीदा जा रहा था।


         गोखले तो बेटी की शादी कर चुका था। शादी में भी उसे कर्ज लेना पड़ा थां। खेतों की जुताई के लिए महाजन का ट्रैक्टर बुलाने गया था। पिछले दो दिनों से खेत में ट्रैक्टर का इन्तजार करके घर वापस चला आता। महाजन ने ट्रैक्टर नहीं भेजा उसे ट्रैक्टर नहीं भेजने की वजह मालूम थी, मगर खेत की जुताई अगर समय से हो जाए तो उसके बहुत फायदे थे। गरज अपनी थी इसलिए उसे फिर महाजन के यहॉ जाना ही पड़-
‘‘बाबू जी नमस्ते ।‘‘
‘‘ हॉ गोखले ! ट्रैक्टर के लिए आए हो ना तुम ?‘‘
‘‘जी बाबू जी बड़ी मुश्किल से सिचाई हो पायी है। समय निकल जाने पर बड़ा नुकसान हो जायेगा।‘‘
‘‘गोखले सही कहते हो तुम ! अपना नुकसान बहुत दिखता है तुम्हें। कभी मेरे नुकसान के बारे में भी सोचते हो। पिछले धन का ब्याज तक नहीं चुकता किया है तुमने । मैं तुम्हें कब तक ढोता रहूंगा। मैं कोई टाटा बिड़ला हॅू क्या ? अरे मेरे भी बाल बच्चे है अगर ऐसा ही करता रहा तो तुम मुझे भी रोड पर ला दोगे ं। ट्रैक्टर पहले नगद वालो के काम के लिए है ना कि उधार वालों के लिए।‘‘
‘‘बाबू जी फसल काटने के बाद अदा कर दूगा। आप ही के सहारे तो जिन्दा हूॅ , अब आप भी ऐसा कहेंगे तो कहॉ जाउंगा ?सरकारी बैंक वाले का भी अभी बाकी है । तीन नोटिस आ चुकी है । प्राइवेट बैंक वाले का पॉच हजार रूपया दस हजार में बदल चुका है। उसके लोग अलग से धमकी देकर जाते हैं । ‘‘
‘‘गोखले हमें तो लगता है बोडालकर की तरह तू भी एक दिन झूल जा। जीते जी तो कुछ कर नहीं पाया हॉ मरने के बाद तेरे भी घर का कायाकलप जरूर हो जायेगा। ......या फिर...............अपनी दो बीघे जमीन मुझे लिख दे । ‘‘
जमीन लिखने की बात सुनकर गोखले का मस्तिष्क सुन्न सा हो गया ।
‘‘ बाबू जी जमीन ही तो मेरी पूॅजी है,जिसके सहारे चल रहा हूॅ। ‘‘
‘‘देख गोखले ! मक्कारीपना हमसे मत करना ।कभी कहता है कि बाबू जी आपके ही सहारे चल रहा हूॅ और अब जुबान पलट के कहता है कि जमीन के सहारे ..............। गोखले तेरी नीयत खराब है.....जा चला जा यहॉ से मैं तेरी कोई मदत नहीं कर सकता । और हां जो पैसा बकाया है उसके एवज में जो कुछ भी तेरे पास गहना जेवर बरतन  है उसे मेरे पास रख जाना समझे ? वरना तुम्हारी खाल खिंचवा लूंगा । साला...बड़ा आया जमीन वाला ।‘‘

गेाखले काफी निराश होकर लौट रहा था। तभी एक जीप बगल मे आकर रूक गयी । शायद तहसीलदार साहब की थी ।
‘‘ क्या नाम है तेरा ?‘‘
‘‘सर संजय गोखले।‘‘
‘‘चल गाड़ी में बैठ। तेरे जैसे लोंगों को नोटिस भेजने  से कोई असर नहीं पड़ता है।‘‘
‘‘सर आपके पैर पकड़ता हूॅ ,जुताई का समय चल रहा है। मैं बरबाद हो जाऊॅगा ।बहुत मुफलिसी में जी रहा हूॅ.......साहब। इन्तजाम होते ही पहुॅचा दूॅगा। साहब मैंने पैसा उड़ाया नहीं था। इन्हीं खेतों में ही लगाया था। क्या करूं साहब ...........नहीं कमा पाया.....। मजबूर हो गया साहब। साहब आपकी थोड़ी दया हो जाए साहब .........जी साहब .......मैं अदा करूंगा साहब। ‘‘
‘‘अबे गाड़ी में बैठ चुपचाप बकवास बाद में करना। चल चौदह दिन तक जेल की हवा खायेगा तो तेरी सारी मजबूरी ठीक हो जायेगी ।‘‘

      तहसीलदार साहब के इतना कहते ही गाड़ी में बैठे सिपाही और अमीन ने धक्का देकर गोखले को जीप के अन्दर ठेल दिया।
 
       गेाखले को  जेल जाने की चिन्ता कम मगर बरबाद हो रही खेती और रोज जुगाड़ के सहारे चल रही रोटियों की चिन्ता अधिक थी । फीस जमा नहीं कर पाने से बेटे का नाम भी स्कूल से काट दिया गया था।

   गेाखले के जेल जाने से पत्नी रमा बाई बहुत दुखी हो गयीं थीं। घर में कुछ भी नहीं कैसे छुड़ाएं गोखले को ?कुछ सोच कर एक बार फिर महाजन के अलाव कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।रमा बाई महाजन के घर पहुॅच गयीं ।
 ‘‘बाबू जी मेरा गोखले जेल चला गया है। बाबू जी उसे छुड़ा लीजिए। जब गोखले आयेगा इन्तजाम करके दे दूंगी। ‘‘
‘‘ऐसा है रमा बाई मेरा पैसा जो बाकी है उसका तो तुमने कोई नाम ही नहीं लिया। कुछ जेवर जेवरात तो होंगे ही........ ले आओ........फिर सोचते हैं । ‘‘
‘‘बाबू जी हम जेवर कहॉ से लायेंगे ?घर में पहनने के लिए ढ़ंग के कपड़े तक तो हैं नहीं ।‘‘
महाजन का लहजा कड़क हो गया। ‘‘रमा बाई पैसे कमाने के हजारों रास्ते हैं । सड़क वाले ढाबे पर देखो रोज शाम को ट्रकों पर चढ़ती हैं और सबेरे पॉच छः सौ लेकर लौटतीं हैं । लेकिन तुम बेवकूफों को कौन समझाए ।जब तुम्हारे पास कुछ नहीं है तो मेरे पास कौन सा खजाना रखा है? ‘‘
      रमा बाई का चेहरा लाल हो चुका था। अचानक ही आपे से बाहर हो गयीं । -‘‘ बाबू जी ट्रकों पर जिसकेा जाना होगा वह जाए । मैं इसी गॉव में मर जाऊॅगी और कहीं नहीं जाऊॅगी ...........समझे ? ये जो तुम्हारी कार कोठी है , ये सब मेरे मरद के खून पसीने की कमाई से चूसी गयी है। मुझको ट्रकों पर भेजने की सलाह देने वाले तुम कौन होते हो ? अपने घर वाालों कों ट्रकों पर क्यों नहीं भेजते............. ?‘‘
‘‘ रमा !................तुमको ज्यादा बदतमीजी आ गयी है। अगर एक शब्द भी बाहर निकाला तो तेरी जुबान काट लूंगा। .........साली ......कमीनी.....। जा भाग मेरे दरवाजे से नही ंतो  अभी कुत्ते बुला कर नोचवाउंगा। ‘‘
    रमा बाई की ऑखों में ऑशू आ गये और खामोशी के साथ अपने घर की ओर लौट पड़ी। घर लौट कर खाना का इन्तजाम भी करना था। कल रात में खाना नहीं बना था। सबेरे पड़ोसी के यहॉ से आटा उधार लेना था। बोडालकर के बच्चों की दूकान ठीक चलती थी,मगर अब वह भी उधार नहीं देता था। पड़ोसियों के यहॉ से भी कुछ खास सहयोग नहीं मिल पाता था। दोनों वक्त खाना बनना मुश्किल हो गया था। पिछले एक माह से एक बार ही बन पाता था। थोड़ी बहुत मेहरबानी धापोडकर के परिवार वालों कीे थी ।उनके यहॉ से पन्द्रह किलो आटा उधार मिल गया था। हॉ इस बीच जिन्दगी जीने कीे एक किरण जरूर नजर आ रही थी । घर पर बधी भैंस दस बारह दिनो में बच्चा देने वाली थी। दूध बेच कर घर के दाल रोटी का जुगाड़ तो हो ही जायेगा। डूबते घर को बचाने के लिए रमा बाई अपने नाबालिक बेटे को काम्टे के ईंट वाले भट्ठे पर काम करने के लिए भेजनें लगीं थीं।

    गोखले आज रिहा होकर घर आ चुका था। उसके घर आने की खबर प्राइवेट बैंक वालों को लग चुकी थी । रात आठ बजे बैंक के एजेंट लोग घर पर आ धमके ।
‘‘..गोखले !...........गोखले !.......।‘‘
‘‘हॉ साहब बताओ ?‘‘ गोखले ने सहमें हुए अन्दाज में पूॅछा।
‘‘ क्यों मेरी नौकरी खाने पर तुले हो?मेरा मैनेजर अब मुझे नहीं बख्सेगा। या तो पैसा दो या फिर अपना खेत दो। अगर कोर्ट  कचहरी से देना चाहते हो तो वह भी बताओ। तुम्हारी जमीन तो जायेगी ही ऊपर से जेल भी जााना पड़ेगा। ;;
एक बार फिर गोखले के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं ।
‘‘नहीं साहब......... जेल नहीं जाऊॅगा। क्या करूं पन्द्रह दिन तक जेल में रहने से मेरी खेती खराब हो गयी है। मैं बहुत परेशान हूॅ साहब। थोड़ मोहलत जरूर चाहिए। आपका एक एक पाई अदा कर दूंगा। ‘‘
‘‘नहीं गोखले तुम गलत बोलते हो।आज मुझे हर हालत में रकम चाहिए।
 ‘‘आज तो मेरे पास कुछ भी नहीं है साहब।‘‘
‘‘है क्यों नहीं ,तुम्हारा खेत तो कुछ हम कुछ सरकारी बैंक वाले लेंगे। मगर अभी तो तुम्हारी भैंस तो है ही इसे ले जाऊंगा । बोली लगने पर जो भी कीमत वसूल होगी वह तुम्हारे खाते में जमा हो जायेगी ।‘‘
‘‘नहीं साहब भैंस तो नहीं दे पाउंगा।‘‘
‘‘तुम्हारी औकात है जो तुम हमें रोक लोगे । जाओ तुम थाने में बताओ मैं तो ले जा रहा हूॅ।‘‘
       गेाखले जानता था कि ये लोग एजेंट कम गुण्डे अधिक हैं। मुॅह लगने का मतलब था मार पीट होना। देखते  देखते उन लोगों ने भैस खोल लिया । बार बार मुड़ मुड़ कर गोखले की भैंस गोखले और रमा बाई को निहार रही थी।रमा और गोखले का कलेजा फटा जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई गोखले और रमा बाई के मुॅह पर पट्टी बॉधकर उनके बच्चे का अपहरण कर रहा हो।शायद भगवान ने उनकी ओर से मुॅह फेर लिया हो। अब तो कोई चारा भी नहीं है। जमीन की कुड़की आज नहीं तो कुछ महीनों तक में जरूर हो जायेगी ।जेल जाने से फसल तो खराब हो ही चुकी है। महाजन अब मदत नहीं करेगा । कैसे चलेगी जिन्दगी। अखिर ऐसे किसानों को कौन मदत करता है। सब मतलब के प्यारे हैं।

         रात दो बज चुके थे । गोखले की नींद गायब थी । आज वह बहुत भावुक हो चुका था। उसकी ऑखों से ऑशू बन्द होने का नाम नहीं ले रहे थे। रमा बाई ने बहुत समझाया , बेटे ने बहुत समझाया पर वह नहीं सो सका । धीरे धीरे रमाबाई और बच्चे को सवेरे की ठंढ़ी हवाओं ने झपकी दे दी थी । अब भी गोखले की ऑखों से नीद कोसों दूर थी।

        सवेरे पॉच बजे रमा की ऑख खुल गयी । गोखले बिस्तर से गायब था। रमा ने सोचा शायद खेत की तरफ गये होंगे । थोड़ देर बाद धापोडकर के लड़के ने खबर दी -
‘‘चाची !............ चाची! ....दौड़ो ...दौड़ो ...गजब हो गया।‘‘
‘‘क्या हो गया रे ?‘‘ रमा बाई ने पूछा।
‘‘गोखले चाचा पीछे वाली बाग में रस्सी से झूल गये हैं । ‘‘
रमा बाई के पैरों तले जमीन खिसक चुकी थी । एक लम्बी सी चीख के साथ बेहोश हो गयीं । लोगों ने पानी का छींटा मार कर होश में लाया । मॉ बेटे का चीखना चिल्लाना रोना जारी था। दस बजे तक थानेदार साहब आ गये । लाश उतारी गयी जेब से कोई सोसाइट नोट नहीं मिला । गॉव वाले सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे थे । महाजन जोर जोर से चिल्ला चिल्ला कर बता रहे थे कि तहसीलदार ने जेल भेजा था इस लिए उसने आत्महत्या कर ली है। गॉव वाले अन्दर ही अन्दर खुश भी हो रहे थे । उन्हें फिर उम्मीद थी कि विपक्षी दल जन आन्दोलन के लिए शंखनाद करेंगे। फिर गॉव में विकास की गंगा बहेगी। सबके कर्जे माफ होंगे। लेकिन इस बार सब कुछ अलग था। कोई विपक्षी दल नहीं आया। चुनाव का माहौल नहीं था। नहीं हो सका कोई शंखनाद। नेताओं के लिए यह एक सामान्य घटना के अतिरिक्त कुछ नहीं था।



                                      प्रस्तुति।

                                              नवीन मणि त्रिपाठी
                                                 जी0वन0/28
                                           अरमापुर इस्टेट कानपुर
                                                 उ0प्र0

गुरुवार, 3 मई 2012

गाँधी तेरे देश में


                              
भ्रष्टाचार के निमित्त कुछ  छंद

गाँधी  तेरे  देश  में  विडम्बना  का हाल  ये  है ,भ्रष्टता  परंपरा  की  रीत बन जाएगी |.
आधी अर्थ  शक्ति तो विदेशियों के हाथ में है ,उग्रता तो जनता की प्रीत बन जाएगी ||.
लाज शर्म  घोल के  पिया  है जननायकों  ने ,लोकपालवादियों  की नीद  उड़ जाएगी |
कली है  कमाई अब देश के  प्रशासकों , की अब तो  लुटेरों वाली  नीति  बन जाएगी ||

हो रहा  अवैध  है खनन  इस देश  में  तो भट्टा  परसौल  की  मिसाल मिल जाएगी |
टू जी का घोटाला है तो खेलों में भी घाल-मेल ,ऐसे जननायकों की चाल दिख जाएगी||
हत्यारे ये रोगियों की दवाओं को लूटते हैं , जाँच  की मजाल की जुबान सिल जाएगी |
कौन  से भरोसे से तू  वोट मांग पायेगा रे , चोर  सी निगाह  तेरी  उठ  नहीं  पायेगी ||.

होड़ सी  लगी है आज देश  को खंगालने  की ,देश में  विषमता की  खाई  खुद जाएगी |

टूट रही देश भक्ति  टूट रहा आत्मबल  , और क्या व्यथाओं  की निशानी  चुभ जाएँगी |
रोटी दाल थाली  मजदूर  से भी  दूर चली ,महगाई  मौत  की  कहानी  लिख  जाएगी ||
लोकतंत्र  का  मजाक  बन  गया  देश आज , वन्दे  मातरम वाली  वाणी  उठ  जाएगी||

अर्थ के गुलाम बन  जिन्दगी जियेंगे  नही , दूसरी आजादी की  लडाई  छिड़  जाएगी |
काले  कारोबारियों को  देश से उखाड़ फेंक , देश में प्रसन्नता  की  फिर  घडी आएगी ||
धैर्य की  परीक्षा अब  देंगे  नही  देश वासी,  अर्थतंत्र  वाली  बलि- बेदी  चढी   जाएगी |
बांध  के  कफ़न  आज युद्ध में  तो कूद कर , भ्रष्टाचारी  ताज पर  मौत  जड़ी  जाएगी ||

लूट  तंत्र ,  घूस  तंत्र , भ्रष्टता  के  षड्यंत्र  ,गणतंत्र  शक्ति  वाली  कीर्ति   धुल  जाईगी |
जाति  क्षेत्र  धर्मवाद  जैसी  ही  जकड़ता  में, अभिशप्त उन्नति की मूर्ति बन जाएगी ||
जाग  नहीं  पाए   तो  ये देश  टूट  जाएगा भी ,दुर्भाग्य   चरम  की  पूर्ती  कर  जाएगी |
मरना जरूरी है  तो देश के  लिए  ही  मरो , बलिदानी  मृत्यु तेरी  जीत  बन  जाएगी ||

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

छेड़ी जो ग़ज़ल



 

छेड़ी  जो  ग़ज़ल  रात  उसकी  याद  आ  गयी |
पलकों में टिप टिपाती सी  बरसात  आ  गयी ||

खुद को छिपा लिया था  ज़माने से इस  कदर |
परदे   हज़ार    फेंक   के   जज्बात आ  गयी ||

मैंने  सुना  था  जख्म को भरता है वक्त भी |
हर वक्त  से  जख्मों  में नयी जान आ गयी ||

 गैरों   के  क़त्ल   होने  की  चर्चाएँ आम   हैं |
अपनों के क़त्ल होने  की फरियाद आ  गयी ||

उन  कांपते  होठों  ने जो  पूछा था मेरा हाल |
खामोसियाँ    लबों   पे   सरेआम   आ   गयी ||

अश्कों  ने  भिगोया  है  किसी कब्र की  चादर |
नम  होती   हवाओं   से  ये  आवाज  आ गयी || 
                                                                       -नवीन

रविवार, 8 अप्रैल 2012

ऊर्जा संरक्षण बनाम आयुध निर्माणियॉ

ऊर्जा संरक्षण बनाम आयुध निर्माणियॉ

                    -                 नवीन मणि त्रिपाठी

            शक्ति के विद्युत कण जो व्यस्त
           विकल   विखरे   हैं  वे   निरूपाय।
           समन्वय   उनका   करो   समस्त
           विजयनी    मानवता  बन   जाय।।


        उक्त पंक्तियॉं कामायनी के रचनाकार महान कवि जय शंकर प्रसाद जी की हैं ।ऊर्जा संरक्षण की दिशा में प्रसाद जी का गम्भीर चिन्तन वर्षों  पूर्व ही प्रारम्भ हो चुका था । आवश्यकता है आज पुनः प्रसाद जी की इस विचारधारा के मर्म की गहन समीक्षा की जाए और विखरी हुई ऊर्जा का सार्थक समन्वय कर उसे मानव कल्याण व राष्ट्र हित हेतु प्रयोग किया जाए।  

       आज भारत में ऊर्जा की खपत का विस्तार असीमित होती जा रही है। हमारे जीवनशैली की मौलिकता में भी स्वाभाविक रूप से परिवर्तन आ चुका है। हमारे वित्त मंत्री के एक बयान के अनुसार देश की वार्षिक पेट्रौलियम  की खपत 10 करोड़ टन है अर्थात 49 हजार करोड़ रूपये की खपत मात्र ऊर्जा के एक स्रोत   पर है। साथ ही ऊर्जा के अन्य क्षेत्रों में भी भारत को अधिक व्यय करना पड़ रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप देश महगाई की गम्भीर समस्याओं से जूझ रहा है। किसी भी देश की खुशहाली देश में उपलब्ध उर्जा व्यवस्था पर निर्भर करती है। ऊर्जा भण्डार देश के विकास का महत्वपूर्ण अंग है। महॅगी दरों पर पेट्रौलियम का आयात हमारी विवशता है। अतः हमें चाहिए कि पेट्रौलियम ऊर्जा का यथा सम्भव जहॉ तक हो सके इसका सदुपयोग करें। किसी भी दशा में अपव्यय को हमें रोकना ही होगा। आर्थिक विकास की मूलभूत आवश्यकता में ऊर्जा का सर्वोपरि स्थान है। समाज के अनेकानेक क्षे़त्र उद्योग ,परिवहन, कृषि,व्यापार, घर सभी स्थानों पर ऊर्जा के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। विगत वर्षों में प्रगति के साथ साथ ऊर्जा की आवश्यकताओं में उत्तरोत्तर बढोत्तरी देखी जा रही है। ऊर्जा की इस बढती खपत में जीवश्म ईंधनों जैसे कोयला पेट्रौलियम और प्रकृतिक गैस पर निर्भरता बढती जा रही है। इन्हीं ईधनों के माध्यम से बिजली की आपूर्ति भी जुड़ी है।स्पष्ट तौर पर प्रदूषित पर्यावरण और स्वस्थ्य की समस्याओं के कारण इन जीवश्म ईधनों का उपयोग स्वच्छ ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के विकास एवं उपयोग की जरूरतें भी प्रभावशाली ढंग से बढ चुकीं हैं। जीवश्म ईधनों की बढती कीमतें और भविष्य में इनकी कमी के गम्भीर संकट से ऊर्जा के विकास हेतु स्थायी मार्ग के सृजनात्मकता पर बल देने की आवश्यकता का आभास हो चुका है। इसके लिए दो सर्वोत्तम विधियां हैं-

1.    पर्यावरणीय अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को प्रयोग में लाना ।

2.    ऊर्जा संरक्षण को प्रोत्साहित करना।



भारत में ऊर्जा की मांग और उसकी आपूर्ति के बीच अन्तराल को कम करने के लिए सबसे अधिक लागत विधि ऊर्जा दक्षता को प्रोत्साहन देना तथा इसका संरक्षण करना है। ऊर्जा संरक्षण कम खपत के जरिए प्रयोग की जा रही ऊर्जा की मात्रा कम रखने का व्यहार करने अथवा प्रकाश बल्ब या एअर कंडीशन में विद्युत दक्ष युक्तियों का उपयोग करने के माध्यम से किया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 2500 मेगावाट क्षमता विद्युत क्षेत्र में केवल ऊर्जा दक्षता के माध्यम से बचत की जा सकती है।इस बचत की अधिकतम क्षमता औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्रों से अनुमानित है।



   इस पर गम्भीरता से विचार करने के बाद भारत सरकार ने ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001का अधिनियमन किया है। इस अधिनियम में कानूनी रूपरेखा संस्थागत व्यवस्था और केन्द्र तथा राज्य स्तर पर एक विनियामक प्रक्रिया प्रदान की गयी है,जो भारत में ऊर्जा दक्षता को बढावा देने का अभियान प्ररम्भ कर सकेगी। ऊर्जा कार्य कुशलता ब्युरो भी ऊर्जा दक्षता की कार्ययोजना के साथ आगे आया है। जिससे बिजली की बचत हेतु विभिन्न योजनाएं ,जागरूक अभियान ,बच्चों की प्रतियोगिताएं ,राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरष्कार आदि शामिल हैं।

 अपनाएं ऊर्जा संरक्षण

   ऊर्जा संरक्षण से ऊर्जा की लागत में कमी आती है। नए विद्युत संयत्रों की जरूरत कम की जा सकती है और बढती आबादी तथा अर्थ व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ऊर्जा आयात में कमी लायी जा सकती है। उत्सर्जन की कमी से स्वच्छ परिवेश और नागरिकों के लिए स्वस्थ जीवन शैली को बढावा मिलता है। ऊर्जा की कमी के लिए सबसे मितव्ययी समाधान यही है। साथ ही अक्षय ऊर्जा विकल्पों का पूर्ण प्रयोग भी आवश्यक है।



 महत्वपूर्ण है अक्षय ऊर्जा

  अक्षय ऊर्जा का सृजन प्राकृतिक संसाधनों जैसे सूर्य के प्रकाश ,पवन ,पानी ,अपशिष्ट उत्पादों और ऐसे अन्य स्रोतों से किया जाता है जिनकी प्रकृतिक रूप से पुनः पूर्ति हो जाए। भारत इन स्रोतों की अधिकता के साथ एक भाग्यशाली देश कहा जा सकता है। ऊर्जा के ये स्रोत पूरे वर्ष स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं। और इनके वितरण के लिए किसी लम्बी चौड़ी व्यवस्था की जरूरत नहीं है। इससे ये दूर दराज के क्षेत्रों में उपयोग के लिए विकेन्द्रीकृत अनुप्रयोगों में उचित रूप से इस्तेमाल किये जा सकते हैं। अक्षय ऊर्जा स्रोतों के अन्य लाभ इनका पर्यावरण अनुकूल तथा अल्प प्रचालन लागत वाला होना है।



    भारत सरकार नवीन और नवीकरण ऊर्जा मंत्रालय अक्षय ऊर्जा के विकास एवं उपयोगिता के लिए इन्हें व्यापक कार्ययोजना के रूप में उपलब्ध कराने के लिए उत्तरदायी है। यह अनेक प्रद्यौगिकियों एवं युक्तियों को प्रोत्साहन देता है जो अब वाणिज्यिक रूप में उपलब्ध हैं।वर्तमान में अक्षय सौर उर्जा स्रोत देश में संस्थापित कुल विद्युत क्षमता का 9 प्रतिशत योगदान देते हैं। ऊर्जा के अन्यान्य वैकल्पिक स्रोतों के बारे में भी हमें अधिकतम जानकारी रखनी चाहिए जिसे निम्न दिया जा रहा है।



बायोगैस

 

    बायोगैस कार्बनिक उत्पादों ,प्रथमिक रूप से पशुओं के गोबर ,रसोई के अपशिष्ट तथा कृषि वानिकी उत्पादों से तैयार की जाती है। इसका उपयोग मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता है। सरकार द्वारा राष्ट्रीय बायोगैस एवं खाद प्रबंधन के जरिए बायोगैस के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाता है। वायोगैस का इस्तेमाल भोजन पकाने और तापन,रोशनी पैदा करने कुछ विशिष्ट गैस इन्जनों में मोटिव पावर पैदा करने तथा जुड़े हुए अल्टरनेटर के जरिए विद्युत उत्पादन में किया जा सकता है। देश में 12 मिलियन पारिवरिक प्रकार के बायोगैस संयत्रों की अनुमानित संभाव्यता है। वर्तमान में भारत बायोगैस के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है।

बायोमास

   बायोमास का उपयोग सभ्यता के आरम्भ से ही किया जा रहा है। इसमें लकड़ी ,गन्ने के अवशेष गेहूॅ के सरकण्डे तथा पौधों की अन्य सामग्रियॉ शामिल हैं। यह कार्बन उदासीन होता है और इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में उल्लेखनीय रोजगार प्रदान करने की संभाव्यता है।सरकार द्वारा प्रोत्साहित की जा रही तीन मुख्य बायोमास प्रद्यौगिकियॉ हैं चीनी मिलों में सह उत्पादन,बायोमास विद्युत उत्पादन और बायोमास गैसीफिकेशन द्वारा तापीय तथा वैद्युत अनुप्रयोग।हाल ही में बायोमास विद्युत 1000 करोड़ रूपये से अधिक निवेश आकर्षित करने वाला उद्योग बन गया है,जबकि इससे प्रति वर्ष 9 बिलियन यूनिट का उत्पादन किया जाता है।

सौर ऊर्जा

   भारत पर्याप्त धूप वाला देश है जिसके अधिकांस भागों पर 250 से 300 दिनों धूप वाले दिनों सहित प्रतिदिन लगभग 4से 7 किलो घण्टा सौर विकिरण प्रति वर्ग मीटर प्राप्त होते हैं।इससे सौर उर्जा विद्युत विद्युत और ताप दोनों ही उत्पन्न करने के लिए आकर्षक विकल्प बन जाती है। तापीय मार्ग में पानी गर्म करने ,भोजन पकाने ,सुखाने ,पानी के शुद्धि करण ,विद्युत उत्पादन तथा अन्य अनुप्रयोगों के लिए सूर्य की गर्मी का उपयोग किया जाता है। प्रकाश वोल्टीय मार्ग में सौर के प्रकाश को बिजली में बदला जाता है। जिसका उपयोग रोशनी करने, पम्पिंग,संचार तथा गैर विद्युतीकृत क्षेत्रों में विद्युत की आपूर्ति हेतु किया जाता है।

अपशिष्ट से ऊर्जा

      तीव्र औद्यौगिकीकरण ,शहरी करण तथा जीवन शैली में बदलाव ,जो आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया के साथ आते हैं ,अपशिष्ट की मात्रा में वृद्धि होती है हवा तथा पानी के प्रदूषण की तथा मौसम परिवर्तन के पर्यावरण संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं ।हाल के वर्षों में एैसी प्रौद्योगिकियों का विकास किया गया है जो ना केवल पर्याप्त विकेन्द्रीकृत ऊर्जा के उत्पादन में अपशिष्ट पदार्थो का इस्तेमाल करती है बल्कि इनके सुरक्षित निपटान हेतु इनकी मात्रा में कमी लाती है। शहरी और औद्योगिक अपशिष्ट से 3500मेगावाट से अधिक ऊर्जा की प्राप्ति की अनुमानित संभाव्यता है। सरकार द्वारा शहरी अपशिष्ट से ऊर्जा की प्राप्ति पर कार्यक्रम का कार्यान्वयन किया जाता है।



पवन ऊर्जा



  भारत वर्तमान में यू एस ए ,जर्मनी ,स्पेन और चीन के बाद पवन ऊर्जा के क्षेत्र में पॉचवां सबसे बड़ा उत्पादक है। पवन ऊर्जा का उपयोग पानी की पम्पिंग ,बैटरी चार्जिंग और बडे विद्युत उत्पादन में किया जाता है। यह एक सरल संकल्पना का कार्य करता हैं। बहती हुई हवा एक टर्बाइन के पंखों को घुमाती है ,जो एक जनरेटर में बिजली को उत्पन्न करते हैं। मार्च 2009 तक कुल 10242 मेगावाट पवन विद्युत क्षमता स्थापित करने में सफलता प्राप्त की जा चुकी है। सरकार ने पवन संसाधनों के आकलन परियोजनाओं स्थापित करने को बढावा देने तथा पवन ऊर्जा को देश में बिजली के एक पूरक स्रोत के रूप में प्रोत्साहन देने के लिए पवन विद्युत कार्यक्रम आरंभ किया है।



लघु पन विजली



  पन बिजली विद्युत उत्पादन में अक्षय ऊर्जा का सबसे बडा स्रोत है। यह एक ऊचाई से गिरने वाले पानी की ऊर्जा से प्राप्त की जाती है,जिसे जनरेटर से जुडे टर्बाइन के इस्तेमाल से बिजली में बदला जाता है। भारत में 25 मेगावाट तक की क्षमता वाली पनविजली परियोजनाओं को लघु पन बिजली परियोजना कहा जाता है। अधिकांश संभाव्यता लगभग 15000 मेगावाट है।



हाइड्रोजन ऊर्जा

हाइड्रोजन एक रंग हीन गंध हीत स्वाद हीन ज्वलनशील गैस है। जिसमें ऊर्जा की मात्रा काफी अधिक है। जब इसे जलाया जाता है तब एक उप उत्पाद के रूप में पानी उत्पन्न होता है। इस लिए यह ऊर्जा का एक दक्ष स्रोत और पर्यावरण की दृष्टि से स्वच्छ ईंधन है। इसका इस्तेमाल विद्युत उत्पादन ,परिवहन अनुप्रयोगों के साथ अंतरिक्ष यान के ईधन के रूप में किया जा सकता है।



       सरकार भूतापीय ऊर्जा ,महासागरीय ऊर्जा ईधन सेलों ,जैव ईधनों तथा ज्वारीय ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा के स्रोतों की उन्नत प्रौद्योगिकियों के विकास हेतु भी कार्य कर रही है,ताकि भावी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।



आयुध निर्माणियों में ऊर्जा संरक्षण



 आयुध निर्माणियॉ हमारे देश के रक्षा उत्पादों की महत्वपूर्ण औद्योगिक शक्ति हैं। निर्माणियों को चलाने हेतु अधिक ऊर्जा के खपत की आवश्यकता होती है।इसमें विद्युत ,पेट्रोलियम, जीवश्म ईधन कोयला आदि की विशेष आवश्यकता होती है। ऊर्जा दक्षता की युक्तियों के  साथ साथ ऊर्जा संरक्षण हेतु अनेकों उपाय अपनाये जा रहें हैं जिसमें तेल और पानी को अलग करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट जागरूकता अभियान आदि शामिल हैं। यहॉ परिचालनों अथवा रखरखाव में सुधार हेतु और नयी परियोजनाएं विकसित करना ,दोनों दृष्टियों से ऊर्जा संरक्षण पर लगातार जोर दिया जाता है। अत्याधुनिक उच्य स्तरीय उपकरणों से ईधन खपत ,हाइड्रोकार्बन हानि फ्लेयर हानि ,हीटर बायलर प्रर्दशन पर लगातार व्यवस्थित नजर रखी जाती है। विश्लेषण रिर्पोट और एकत्रित डेटा लाभ पाने वाले अनुभागों को भेजी जाता है ,और किसी असामान्य मामले में कार्यवाही भी की जाती है। अभी भी इन निर्माणियों में ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मसलन हमारे देश की भारत पेट्रौलियम ( बीपीसीएल )ने उर्जा संरक्षण के क्षेत्र में विशेष कदम उठाये हैं ठीक इसी प्रकार हमें भारतीय आयुध निर्माणियों में भी उठाना चाहिए।



   हाल ही में बीपीसीएल के द्वारा लागू किये गये ऊर्जा संरक्षण के उपाय इस प्रकार हैं जिसे लागू करना हमारी आयुध निर्माणी की अनिवार्यता होनी चाहिए-



1.    सीमांत लागत लाभ के अधार पर गैस टर्बाइन /स्टीम टर्बाइन जनरेटर (जीटी/एसटीजी) आपरेशन का इष्टतमीकरण ।

2.    यूटिलिटी बायलर ड्राइव्स और आक्सीलियरीज में ऊर्जा की खपत का इष्टतमीकरण।

3.    बायलर्स के लिए डिएइरेटर सिस्टम का इष्टतमीकरण।

4.    हाइड्रोजन यूनिट में मर्ज गैस फेरिंग में कमी।

5.    क्रूड प्रीहीट बढाने के लिए क्रूड सर्कुलेटिंग रीफ्लेक्सेस को अधिकतम करना।

6.    एफसीसीयू में प्रीहीट तापमान का इष्टतमीकरण।

7.    मेटेलिक ब्लेड एयर फिन फैन के बदले एफ आर पी ब्लेन्ड एयर फिल फैन का इस्तेमाल ताकि ऊर्जा बचत की जा सके।

8.    मिनरल यूल इन्सूलेशन के बदले अधिक कुशल परलाइट इनसूलेशन।



           उक्त के अलावा नियमित ऊर्जा संरक्षण विघियॉ भी जारी रखनी होंगी।



        सामान्य तौर पर भारत के निर्माणियों में उपयोग मे लाये जा रहे लैंप बल्ब एवं अन्य उपकरणों के द्वारा अधिक ऊर्जा खपत करने के कारण आज लगभग 80 प्रतिशत विजली बेकार चली जाती है। काम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लाइट (सीएफएल)बल्ब का उपयोग कर हम बिजली की लागत में बचत कर सकते हैं। सीएफएल बल्ब परंपरागत बल्ब की अपेक्षा पॉच गुना प्रकाश देेता है,साथ ही सीएफएल बल्ब की टिकाउ क्षमता परंपरागत बल्ब की अपेक्षा 8 गुना अधिक है। फ्लोरोसेंट ट्यूबलाइट व सी एफ एल जलने पर कम ऊर्जा की खपत होती है तथा ज्यादा गर्मी भी प्रदान नही करती है। यदि हम 60 वाट के साधारण बल्ब के स्थान पर 15 वाट के सीएफएल बल्ब का प्रयोग करते हैं तो हम प्रति घण्टा 45 वाट ऊर्जा की बचत कर सकते हैं। इस प्रकार हम प्रति माह 11 युनिट विजली की बचत कर सकते है ,और बिजली पर आने वाले खर्च को कम कर सकते हैं।



आयुध निर्माणियों में ऊर्जा संरक्षण हेतु कुछ उपाय

1.   आयल फरनेसों में नियमित चेकिंग करके ऊर्जा लीकेज वाले स्रोतों को बन्द करना चाहिए।

2.   आवश्यकता के अनुसार ही निर्माणी के वाहनों का उपयोग किया जाए।

3.   वाहनों की सर्विसिंग समया नुसार तथा वाहनों के पहियों के हवा की चेकिंग प्रतिदिन होनी चाहिए।

4.   निर्माणी में विद्युत सप्लाई का पावर फैक्टर नियंत्रित रखने हेतु सतत जागरूक रहना चाहिए। 

5.   सौर ऊर्जा का विकल्प प्रकाशीय व्यवस्थाओं के लिए अपनाना चाहिए।

6.   मशीनों की आयलिंग ग्रीसिंग पर समुचित ध्यान दिया जाए जिससे फ्रिक्शन लासेज को रोका जा सके।

7.   निर्माणी की समस्त लाइटों को स्वचलित स्विचों द्वारा नियंत्रित किया जाए।

8.   मशीनों व प्लांटो के आयल लीकेज पर विशेष ध्यान दिया जाए।

9.   मशीनों के कटिंग टूल्स उत्तम कोटि के ही प्रयोग में लाये जाएं।

10. मशीनों के इलेक्ट्रिक पैनल ,डी बी, स्विचों के कनेक्शन की रूटीन चेकिंग सप्ताह में एक बार अवश्य होनी चाहिए। लूज कनेक्शन ऊर्जा की खपत को बढाते हैं।

11. अर्थ और न्युटल तारों के मध्य शून्य वोल्ट होना चाहिए।

12. निर्माणी में विद्युत पंखों व ओवर हेड लाइटों का नियोजन इस प्रकार होना चाहिए कि एक पंखा व एक लाइट दो या दो से अधिक मशीनों पर प्रकाश व हवा की आवश्यकता को पूरी कर सके।

13. लीकेज करण्ट रोकने के लिए भवनों व आफिसों की वायरिंग का इन्सूलेशन टैस्ट करते रहना चाहिए।



14. निर्माणी में सभी कम्प्रेशरों की पाइप लाइन के एअर लीकेज नियंत्रित रखना चाहिए साथ ही कम्प्रेशर में लगी स्लिपरिंग मोटर के कार्बन बुश तथा रजिस्टैंस बाक्स के आयल की रूटीन जॉच करते रहना चाहिए।

15.  यथा सम्भव  कार्य समय ही फोर्जिंग प्लांट की मोटरें आन रहें कार्य नहीं होने की स्थिति में अथवा ब्रेकडाउन के समय अनावश्यक मोटरों को बन्द करके बिजली की बचत की जा सकती है।

16. पानी और तेल को अलग करने के लिए आवश्यकतानुसार ट्रीटमेंट प्लांट की संख्या बढानी चाहिए।

17. जाड़े अथवा गर्मी में तापमान नियंत्रण हेतु अधिकांश क्षेत्रों में प्राकृतिक तौर तरीके ही अपनाएं एअर कंडीशन अथवा हीटर के उपयोग से बचने का प्रयास करना चाहिए।

18. ऊर्जा संरक्षण हेतु प्रत्येक कर्मचारी को जागरूक किया जाए साथ ही ऊर्जा संरक्षण की दिशा में समर्पित कर्मचारियों व अधिकारियों को प्रोत्साहन हेतु पुरष्कृत किया जाए।



       यदि हम उर्जा संरक्षण को आयुध निर्माणियों में पूर्ण सर्तकता के साथ अपनाएं तो ना केवल राष्ट्र की बचत करेंगे बल्कि उत्पादों में भी आशातीत सुधार कर गुणवत्ता क्रान्ति में अपना उत्कृष्ट योगदान भी देंगे। हमें निर्माणियों में अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर निरन्तर विचार करते रहना चाहिए ऊर्जा दक्षता युक्तियों के माध्यम से हम अपनी निर्माणियों में ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में बहुत कुछ कर सकने की संभाव्यता से इनकार नहीं कर सकते है।



   हमारे देश में ऊर्जा उत्पादन का भविष्य चुनौतियों से भरा हुआ है।अक्षय ऊर्जा प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त की जाती है इसलिए इन प्रौद्योगिकियों को अपना कर हम प्रदूषण को कम कर सकेंगे और हमारे राष्ट्र के अरबों रूपये बच सकेंगे जिन्हें तेल आयात में हम खर्च करते हैं। सार्वजनिक जागरूकता अभियानों द्वारा इन स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाना महत्वपूर्ण है। जब नागरिक ऊर्जा बचत के व्यवहार को सीखेंगे और अपनायेंगे तथा इन प्रद्योगिकियों अपने व्यापार एवं घरों में प्रयोग करेंगे तो राष्ट्र प्रगति के क्षेत्र में दस कदम आगे होगा।

   प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण यह देश ......भला यहॉं कौन नहीं रहना चाहेगा।यह महत्वपूर्ण है कि हम यही स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण अपनी पीढियों को भी सौपें । अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना तथा ऊर्जा संरक्षण के उपाय करना ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।



                               इति



                                 नवीन मणि त्रिपाठी

                            

                                आयुध निर्माणी कानपुर