तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

रविवार, 1 मई 2016

गीत

" नवगीत "

हो गयी बिम्बित किसी अनुबन्ध की अभिव्यक्ति सी ।
वासना  की  ध्वनि   सदा  गुंजित  हुई  अतृप्ति  सी ।।

मेघ  अभिशापित धरा  को  देखता  है ।
क्यों कुमुदिनी पर भ्रमर की रिक्तता है ।
स्फुटित  स्वर  में  प्रणय  संलिप्तता है ।
मौन  पर   स्थिर   हुई   स्निग्धता  है ।।

फिर उपेक्षित सर्जना कुंठित लगी परित्यक्ति सी ।
वासना की ध्वनि  सदा गुंजित  हुई अतृप्ति सी ।।

कुछ विहग की रीति में भी द्वन्द होगा ।
चिर व्यथाओ में  छिपा आनंद  होगा ।।
कुछ क्षुधा का वेग किंचित मन्द होगा ?
वाटिका में क्या सुलभ मकरन्द होगा ?

हिमखण्ड से निकली नदी बहने लगी अनुरक्ति सी।
वासना  की  ध्वनि  सदा  गुंजित  हुई  अतृप्ति सी ।।

बाँसुरी   की  प्रीति  अधरों  से  सदा  है ।
राग  का  स्वर  किन्तु  प्रहरों से बंधा है ।।
सेतु  का  विस्तार  लहरों  से  सजा  है ।
ज्वार का उन्माद कब किसको पता है ।।

रक्तिम आभा को लिए तुम नेह की निष्पत्ति सी ।
वासना  की  ध्वनि सदा गुंजित हुई अतृप्ति सी ।।

व्योम  में अनुनाद  की आवृत्ति  जीवित ।
कण्ठ  से  अनुराग  के  है गीत मण्डित ।।
हो  रही  कोई  बसन्ती  गन्ध  मुखरित ।
हाँ किसी मधुमास का यौवन सुशोभित ।।

अब घटा समदृश्य अलकें हो गयीं आसक्ति सी ।
वासना की ध्वनि सदा  गुंजित  हुई अतृप्ति सी।।

उर के अंतर  में  लिखी तुम  कामना हो ।
सिद्ध  जीवन  मन्त्र की तुम साधना हो ।।
छंद  की  कल्पित  समर्पित  भावना  हो ।
तुम निशा  की  जीत की  प्रस्तावना  हो ।।

है दृष्टि से तेरी छुवन अब पीर की उन्मुक्ति सी ।
वासना की ध्वनि सदा गुंजित हुई अतृप्ति सी ।।

                         -- नवीन मणि त्रिपाठी

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