-------******ग़ज़ल******---------
2122 1212 22
कोई खुशबू भरी हवा आई ।
याद शब् भर कई दफ़ा आई।।
दर्द दिल का नही मिटा पाया।
जब से हिस्से में बेवफा आई ।।
कौन कहता है नासमझ है वो ।
दुश्मनी वक्त पर निभा आई ।।
उम्र गुजरी जिसे मनाने में ।
आज लेकर नई फ़िज़ा आई ।।
कुछ तो नीयत में फासले होंगे ।
वो अदब में नजर झुका आई ।।
चन्द लम्हे थे जिंदगी खातिर ।
बेरहम हो के फिर क़ज़ा आई।।
है अलग बात भूल जाने की ।
काम उसके मेरी दुआ आई ।।
ये मुसीबत भी क्या बुरी शय है ।
जब भी आई ख़फ़ा खफा आई ।।
रूठ जाने की जिद के क्या कहने ।
मुद्दतो बाद फिर रज़ा आई ।।
खूब चर्चा है शहर में देखो ।
क्यूँ रकीबों से दिल लगा आई ।।
उस की किस्मत बुलन्द थी यारों ।
उसकी महफ़िल में दिलरुबा आई ।।
लोग हैरान हो गए तब से ।
आग पानी में जब लगा आई ।।
थी अदा इंतकाम के काबिल ।
हौसला फिर कहीं डुबा आई ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
2122 1212 22
कोई खुशबू भरी हवा आई ।
याद शब् भर कई दफ़ा आई।।
दर्द दिल का नही मिटा पाया।
जब से हिस्से में बेवफा आई ।।
कौन कहता है नासमझ है वो ।
दुश्मनी वक्त पर निभा आई ।।
उम्र गुजरी जिसे मनाने में ।
आज लेकर नई फ़िज़ा आई ।।
कुछ तो नीयत में फासले होंगे ।
वो अदब में नजर झुका आई ।।
चन्द लम्हे थे जिंदगी खातिर ।
बेरहम हो के फिर क़ज़ा आई।।
है अलग बात भूल जाने की ।
काम उसके मेरी दुआ आई ।।
ये मुसीबत भी क्या बुरी शय है ।
जब भी आई ख़फ़ा खफा आई ।।
रूठ जाने की जिद के क्या कहने ।
मुद्दतो बाद फिर रज़ा आई ।।
खूब चर्चा है शहर में देखो ।
क्यूँ रकीबों से दिल लगा आई ।।
उस की किस्मत बुलन्द थी यारों ।
उसकी महफ़िल में दिलरुबा आई ।।
लोग हैरान हो गए तब से ।
आग पानी में जब लगा आई ।।
थी अदा इंतकाम के काबिल ।
हौसला फिर कहीं डुबा आई ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
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