1222 1222 122
हुई तारीफ गुस्ताखी नहीं है ।
तुम्हारे हुस्न का सानी नहीं है ।।
चली आओ हमारी बज्म में भी ।
हमारी बज्म अनजानी नहीं है ।।
तेरी यादों से ये शम्मा है रोशन ।
मेरी चाहत अभी हारी नहीं है ।।
मुकद्दर आजमाइस कर रहा हूँ ।
मेरा फ़तबा कोई जारी नहीं है ।।
हमारी इल्तज़ा है लौट आओ ।
हमारे पास मक्कारी नहीं है ।।
बहुत नाराज़ हो यह जानकर भी ।
सिवा तेरे कोई यारी नहीं है ।।
ग़ज़ल की रूह से वाकिफ नहीं जो ।
ग़ज़ल उनसे लिखी जाती नहीं है ।।
मुहब्बत बन गई तासीर जिसकी ।
फ़ना वो शायरी होती नहीं है ।।
कभी बेदर्द मत समझा करो तुम ।
खुदा की बेरुखी भाती नहीं है ।।
मेरी आवारगी का फिक्र उसको ।
उसे भी नींद अब आती नहीं है ।।
फलक में चाँद का चेहरा हो जब भी ।
पलक तक आंख झपकाती नहीं हैं ।।
अजब है हाल इस दीवानगी का ।
हमारी तिश्नगी जाती नहीं है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
हुई तारीफ गुस्ताखी नहीं है ।
तुम्हारे हुस्न का सानी नहीं है ।।
चली आओ हमारी बज्म में भी ।
हमारी बज्म अनजानी नहीं है ।।
तेरी यादों से ये शम्मा है रोशन ।
मेरी चाहत अभी हारी नहीं है ।।
मुकद्दर आजमाइस कर रहा हूँ ।
मेरा फ़तबा कोई जारी नहीं है ।।
हमारी इल्तज़ा है लौट आओ ।
हमारे पास मक्कारी नहीं है ।।
बहुत नाराज़ हो यह जानकर भी ।
सिवा तेरे कोई यारी नहीं है ।।
ग़ज़ल की रूह से वाकिफ नहीं जो ।
ग़ज़ल उनसे लिखी जाती नहीं है ।।
मुहब्बत बन गई तासीर जिसकी ।
फ़ना वो शायरी होती नहीं है ।।
कभी बेदर्द मत समझा करो तुम ।
खुदा की बेरुखी भाती नहीं है ।।
मेरी आवारगी का फिक्र उसको ।
उसे भी नींद अब आती नहीं है ।।
फलक में चाँद का चेहरा हो जब भी ।
पलक तक आंख झपकाती नहीं हैं ।।
अजब है हाल इस दीवानगी का ।
हमारी तिश्नगी जाती नहीं है ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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