2122 1122 1122 22
पूछ मुझसे न सरे बज़्म यहाँ क्या होग़ा ।
महफ़िले इश्क़ में अब हुस्न को सज़दा होगा ।।
बाद मुद्दत के दिखा चाँद ज़मीं पर .कोई ।
आप गुजरेंगे गली से तो ये चर्चा होगा ।।
वो जो बेचैन सा दिखता था यहां कुछ दिन से ।
ज़ह्न में उसके तेरा अक्स ही उभरा होगा।।
रोशनी सी जो दरीचे से नज़र आती है ।
तज्रिबा कहता है वो चाँद का टुकड़ा होगा ।।
जानता होगा तेरे हुस्न की फितरत वो सनम ।
हाल रह रह के कई बार जो .पूछा होगा ।।
हिचकियाँ याद की गहराइयों से वाक़िफ़ थीं ।
हो न हो उसने मुझे दिल से पुकारा होगा ।।
मेरे आने की खबर पा के यकीनन उसने ।
गेसुओं को तो सलीके से सँवारा होगा ।।
वक्त करता ही नहीं रहम किसी पर सुन ले ।
गर ढला हुस्न जरा सोच तेरा क्या होगा ।।
भूल पाएंगे वफाओं को भला वो कैसे ।
जिक्र उनसे तो मेरा शह्र .भी करता होगा ।।
मेरे दिल पे ही न इल्ज़ाम .लगाया .जाए ।
कुछ तो नजरों से किया उसने इशारा होगा ।।
डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
पूछ मुझसे न सरे बज़्म यहाँ क्या होग़ा ।
महफ़िले इश्क़ में अब हुस्न को सज़दा होगा ।।
बाद मुद्दत के दिखा चाँद ज़मीं पर .कोई ।
आप गुजरेंगे गली से तो ये चर्चा होगा ।।
वो जो बेचैन सा दिखता था यहां कुछ दिन से ।
ज़ह्न में उसके तेरा अक्स ही उभरा होगा।।
रोशनी सी जो दरीचे से नज़र आती है ।
तज्रिबा कहता है वो चाँद का टुकड़ा होगा ।।
जानता होगा तेरे हुस्न की फितरत वो सनम ।
हाल रह रह के कई बार जो .पूछा होगा ।।
हिचकियाँ याद की गहराइयों से वाक़िफ़ थीं ।
हो न हो उसने मुझे दिल से पुकारा होगा ।।
मेरे आने की खबर पा के यकीनन उसने ।
गेसुओं को तो सलीके से सँवारा होगा ।।
वक्त करता ही नहीं रहम किसी पर सुन ले ।
गर ढला हुस्न जरा सोच तेरा क्या होगा ।।
भूल पाएंगे वफाओं को भला वो कैसे ।
जिक्र उनसे तो मेरा शह्र .भी करता होगा ।।
मेरे दिल पे ही न इल्ज़ाम .लगाया .जाए ।
कुछ तो नजरों से किया उसने इशारा होगा ।।
डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
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