2122 1212 22
बाद मुद्दत खुला मुक़द्दर था ।
मेरी महफ़िल में चाँद शब भर था ।।
देख दरिया के वस्ल की चाहत ।।
कितना प्यासा कोई समंदर था ।।
जीत कर ले गया जो मेरा दिल।
हौसला वह कहाँ से कमतर था ।।
दर्द को जब छुपा लिया मैने ।
कितना हैराँ मेरा सितमगर था ।।
अश्क़ आंखों में देखकर उनके ।
सूना सूना सा आज मंजर था ।।
जंग इंसाफ के लिए थी वो ।
कब ज़माने से मौत का डर था ।।
वो भी पहचान कर गए खारिज़ ।
जिनके दिल में कभी मेरा घर था ।।
क्यों कहूँ दुश्मनों को अब क़ातिल ।
दोस्त के हाथ मे ही ख़ंजर था ।।
मिल गयी है उसे जमानत फिर ।
साफ इल्ज़ाम जिसके सर पर था ।।
यूँ ही जज़्बात आ गए लब तक ।
कह गये जो भी दिल के अंदर था ।।
--डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
बाद मुद्दत खुला मुक़द्दर था ।
मेरी महफ़िल में चाँद शब भर था ।।
देख दरिया के वस्ल की चाहत ।।
कितना प्यासा कोई समंदर था ।।
जीत कर ले गया जो मेरा दिल।
हौसला वह कहाँ से कमतर था ।।
दर्द को जब छुपा लिया मैने ।
कितना हैराँ मेरा सितमगर था ।।
अश्क़ आंखों में देखकर उनके ।
सूना सूना सा आज मंजर था ।।
जंग इंसाफ के लिए थी वो ।
कब ज़माने से मौत का डर था ।।
वो भी पहचान कर गए खारिज़ ।
जिनके दिल में कभी मेरा घर था ।।
क्यों कहूँ दुश्मनों को अब क़ातिल ।
दोस्त के हाथ मे ही ख़ंजर था ।।
मिल गयी है उसे जमानत फिर ।
साफ इल्ज़ाम जिसके सर पर था ।।
यूँ ही जज़्बात आ गए लब तक ।
कह गये जो भी दिल के अंदर था ।।
--डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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