क्यों अदू के साथ ही बनते गए रिश्ते कई ।
टूट कर देखा शज़र से उड़ गए पत्ते कई ।।
चुग गई जब खेत चिड़िया क्या करेंगे लोग अब ।
हाथ को मलते हुए अब देखिए मिलते कई ।।
मुल्कमें दहशत का आलम हर तरफ खामोशियाँ
गिर गयी हो जब सियासत नाग तो डसते कई।
किस तरह से मुल्क हो आज़ाद इस आतंक से
जब हमारे देश मे गद्दार ही पलते कई ।।
हरकतें तुमने तो कर दी अब रहो तैयार तुम ।
अब पड़ेंगे गाल पर तेरे यहां जूते कई ।।
ऐ भिखारी चादरें फैला के तू जिंदा यहां ।
बिक चुकी तेरी रियासत दिख रहे बिकते कई ।।
कोई महबूबा हो फारूक या कोई सिद्धू दिखे ।
देश की बेशक दलाली नीच हैं करते कई ।।
अब इरादा कर लिया है कुछ सबक तुझको मिले,
हौसलों से हमने देखे हैं किले ढहते कई ।।
जय हिंद
(अदू - दुश्मन)
जय हिंद
टूट कर देखा शज़र से उड़ गए पत्ते कई ।।
चुग गई जब खेत चिड़िया क्या करेंगे लोग अब ।
हाथ को मलते हुए अब देखिए मिलते कई ।।
मुल्कमें दहशत का आलम हर तरफ खामोशियाँ
गिर गयी हो जब सियासत नाग तो डसते कई।
किस तरह से मुल्क हो आज़ाद इस आतंक से
जब हमारे देश मे गद्दार ही पलते कई ।।
हरकतें तुमने तो कर दी अब रहो तैयार तुम ।
अब पड़ेंगे गाल पर तेरे यहां जूते कई ।।
ऐ भिखारी चादरें फैला के तू जिंदा यहां ।
बिक चुकी तेरी रियासत दिख रहे बिकते कई ।।
कोई महबूबा हो फारूक या कोई सिद्धू दिखे ।
देश की बेशक दलाली नीच हैं करते कई ।।
अब इरादा कर लिया है कुछ सबक तुझको मिले,
हौसलों से हमने देखे हैं किले ढहते कई ।।
जय हिंद
(अदू - दुश्मन)
जय हिंद
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