2122 1122 1122 22
ये तो चाहत का ही पुरज़ोर इशारा निकला ।
जब किताबों से कोई फूल तुम्हारा निकला ।।
डूब जाती मेरी कश्ती भी भँवर में बेशक़ ।
यार तूफ़ां में तू दरिया का किनारा निकला ।।
रात भर जलते रहे ख़ाब मेरे आँगन में ।
जब शबे हिज़्र में उल्फ़त से शरारा निकला ।।
दर्द सागर का तसव्वुर किया है तब उसने ।।
जब समंदर की तरह अश्क़ भी खारा निकला ।।
इश्क़ नाकाम हुआ तब कहा है दुनिया ने ।
आदमी ठीक था पर वक्त का मारा निकला ।।
ईद का जश्न मनाया है रक़ीबों ने क्यों ।
जब मेरे छत पे कोई चाँद दुबारा निकला ।।
इस तरह लोग लगा रक्खे तिलस्मी चहरे ।
गैर समझा था जिसे वो ही सहारा निकला ।।
मुद्दतों बाद निगाहें किसी पे जब ठहरीं ।
अज़नबी शख़्स तेरी आँख का तारा निकला ।।
ये तो चाहत का ही पुरज़ोर इशारा निकला ।
जब किताबों से कोई फूल तुम्हारा निकला ।।
डूब जाती मेरी कश्ती भी भँवर में बेशक़ ।
यार तूफ़ां में तू दरिया का किनारा निकला ।।
रात भर जलते रहे ख़ाब मेरे आँगन में ।
जब शबे हिज़्र में उल्फ़त से शरारा निकला ।।
दर्द सागर का तसव्वुर किया है तब उसने ।।
जब समंदर की तरह अश्क़ भी खारा निकला ।।
इश्क़ नाकाम हुआ तब कहा है दुनिया ने ।
आदमी ठीक था पर वक्त का मारा निकला ।।
ईद का जश्न मनाया है रक़ीबों ने क्यों ।
जब मेरे छत पे कोई चाँद दुबारा निकला ।।
इस तरह लोग लगा रक्खे तिलस्मी चहरे ।
गैर समझा था जिसे वो ही सहारा निकला ।।
मुद्दतों बाद निगाहें किसी पे जब ठहरीं ।
अज़नबी शख़्स तेरी आँख का तारा निकला ।।
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