तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

रविवार, 17 अगस्त 2014

प्रणय के नाम



तुम्हारी झील सी आँखों  में, अक्सर खो चुके हैं हम ।
प्यास जब भी हुई व्यकुल तो बादल बन चुके हैं हम।।
ये अफसानों  की है दुनिया, मुहब्बत  की कहानी है ।
सयानी  हो  चुकी  हो  तुम ,सयाने हो  चुके  हैं  हम ।।


कदम फिसले नहीं जिसके वो रसपानो को क्या जाने।
मुहब्बत की नहीं जिसने ,वो बलिदानों को क्या जाने ।।
ये  दरिया  आग  का  है , ईश्क में जलकर जरा देखो ।
समा  देखी  नहीं  जिसने, वो परवानो  को क्या जाने ।।


तेरे  जज्बात  के  खत  को , अभी  देकर गया  कोई ।
दफ़न    थीं   चाहतें  ,उनको   भी  बेघर  गया  कोई ।।
हरे  जख्मों के  मंजर  की , फकत इतनी निशानी है ।
हमें   लेकर   गयी   कोई,  तुम्हे   ले कर गया   कोई ।।


मिलन  की  आस को लेकर, वियोगी  बन  गया था मै।
ज़माने  भर  के लोगों का , विरोधी  बन  गया  था मै ।।
रकीबो  के  शहर   में  ,जुल्म   के  ताने   मिले  इतने ।
बद चलन बन गयी थी तुम , तो भोगी  बन गया था मै।।


                  -नवीन मणि त्रिपाठी
(सारे तथ्य काल्पनिक हैं
मुक्तक में मेरे अथवा किसी
अन्य के जीवन से कोई
 सरोकार नहीं है ।)

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम की राह में आने वाली हर बात को बखूबी कह दिया है आपने.

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  2. कदम फिसले नहीं जिसके वो रसपानो को क्या जाने।
    मुहब्बत की नहीं जिसने ,वो बलिदानों को क्या जाने ।।
    ये दरिया आग का है , ईश्क में जलकर जरा देखो ।
    समा देखी नहीं जिसने, वो परवानो को क्या जाने ।।
    ...वाह! बहुत खूब निकले हैं जज्बात!

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  3. आप सभी आदरनीय को आभार के साथ धन्यवाद।

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  4. कदम फिसले नहीं जिसके वो रसपानो को क्या जाने।
    मुहब्बत की नहीं जिसने ,वो बलिदानों को क्या जाने ।।
    ये दरिया आग का है , ईश्क में जलकर जरा देखो ।
    समा देखी नहीं जिसने, वो परवानो को क्या जाने ।।
    -सुन्दर ,पर यह सब मुहब्बत कर के ही अनुभव होता है

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