तीखी कलम से

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

लूटा गया वतन है ,ये अफवाह नहीं है

उनको  जम्हूरियत  की  तो  परवाह  नहीं है ।
लूटा  गया  वतन  है ,ये   अफवाह   नहीं  है ॥


चोरों  के गुनाहों  की सजा  मांगी थी जिसने ।
पर्दा   उठा   के   देखा  वही   शाह    नहीं   है ॥


विस्फोट कर  रहे  हैं  वो  आवाम   के  लिए ।
कैसे    कहोगे   अब   उसे   गुमराह  नहीं  है ॥


जुल्मो सितम को सहती बेटियों को बचा लो ।
तहजीब   डूबने    से   वो  , आगाह   नहीं   है ॥


बैठे  हैं  वो  घोटालों   के  दम  पर अमीर बन ।
उनकी  नजर  में   ये  कोई   गुनाह   नहीं   है ॥


उनकी सजाये   मौत  पे  बरपा  है  शोर  क्यों |
अमनो  शुकुं  की  ओर  अब   निगाह नहीं है ॥