तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

नववर्ष के आगमन पर अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?

पिछले वर्ष मैंने की थी ,
मंगलमय वर्ष की कामना ।
पर ये कैसी विडम्बना !
वर्ष 2012 तुमसे क्या पूछना ?
लाख मिन्नतों के बाद भी तुमने ,
जरी रखा रंग बदलना ।
देश में  भ्रष्टाचार की बुलंदियों पर
तिरंगा लहरा  रहा है ।
देश का भ्रष्टाचारी,
अपनी सफलता पर इतरा रहा है ।
लोकपाल हो या काला  धन
मसला गरम है ,
पर संसद नरम है ।
एफ डी आई पर सांसदों का बिकना ,
आरक्षण की आग पर
फिर से रोटियों को सेकना ।
असंवैधानिक तुष्टिकरण ।
किसानों का मृत्यु वरण ।
कानून मंत्री का
कानून भक्षकों को संरक्षण ।
और जाते जाते ,
पूरे देश की आँखों में आंशू दे गये ।
भारत की स्मिता बन चुकी दामिनी को
साथ ले गये ।
सन 12 तुम दामिनी के दागदार निकले
अपराधियों के वफादार निकले
हे वर्ष 2013 !
पिछले वर्षों की तरह कहीं तुम भी तो नहीं
लाज शर्म घोल के पी लोगे ।
एक शक ......
कहीं तुम भी ,
दगाबाज तो नहीं निकलोगे  ?
अब मैं किस दिल से तुम्हारा स्वागत करूं ।
मै कैसे खुशियों की झोली भरूँ ।
गुजरे कुछ वर्षों से नववर्ष मंगलमय होने का
भरोसा टूटता जा रहा है ।
मानवता-संस्कार सब कुछ छूटता जा रहा है ।
हमारे प्रधानमंत्री फिर साल के अंत में बोलेंगे
" ठीक है "
न्याय  पर अन्याय की जीत है ।
इन बलात्कारियों  के परिवेश में
कहाँ मिलेगे मन के  मीत ?
सन 13 .....! 
तुम्हीं बताओ  ?
नववर्ष के आगमन पर
अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?
अब कौन लिखेगा मंगल गीत ???

                       नवीन

रविवार, 23 दिसंबर 2012

गज़ल

मरहम  के लिए अब कोई सरकार  नहीं है ।
मजदूर  को  एहसान  की  दरकार  नहीं  है ।।

गुम  हो रहीं हैं अब तो  सहादत की फाइलें ।
ज़माने को अब तो  उनका ऐतबार  नहीं है ।।

क्यूँ शौक से पढ़ते मेरे दिल की किताब को ।
कुछ तो करो  जनाब  ये  अख़बार  नहीं  है ।।

कश्ती  के डूबने का फ़िक्र क्यूँ हुआ उनको  ।
सूखी नदी  में जब  यहाँ  मजधार  नहीं  है ।।

बिखरी हुई है लाली जो  होठों पे  उनके आज ।
अब  वक्त  का  उन्हें  भी  इंतजा
र  नहीं  है ।।

सहमी हुई कली है क्यों भौरों की  नजर से ।

मतलब के लिए प्यार का बाजार   नहीं है ।।


बुधवार, 7 नवंबर 2012

हिंदी की व्यथाएं

    





सदा देश की पीड़ा को कविता के पट पर लिखता हूँ ।
भारत माँ के वक्षस्थल की हर धड़कन को पढ़ता हूँ ।।

विचलित पथ पर भटक रहे हैं हम भारत की व्यथा लिए ।

दंभ खोखले लेकर फिरते इतिहासों की कथा लिए ।।

संस्कार के दीपक की बाती बुझती है अब तेल बिना ।

अंधकार पसरा है जग में भाषाओँ के मेल बिना ।।

लोकतंत्र के इस उपवन में बोलो अब मर्यादा क्या है ।

दुनिया हम से पूछ रही है भारत तेरी भाषा क्या है ?


 
हम गुलाम की प्रबल निशानी को अब गले लगा बैठे ।

राष्ट्र पंगु है निज भाषा बिन स्वाभिमान गवा बैठे ।।

यहाँ गुलामी के प्रतीक की भाषाओँ से लड़ता हूँ ।

स्वाभिमान के लिए सदा सौ सौ जन्मो से मरता हूँ ।।

सदा देश की पीड़ा ......................................।

भारत मां .............................................।


हिन्दुस्तानी परम्परा है सबका तुम सम्मान करो ।
हक कैसे मिल गया तुम्हें है हिंदी का अपमान करो ।।


आजादी के हर मुकाम पर हिंदी है ललकार बनी ।
बलिदानी के गीतों में वह ओजस्वी अंगार बनी ।।


मंगल या  ,आजाद ,हो बिस्मिल सबकी यही कहानी है ।
फाँसी के तख्तो से निकली हिंदी सबकी बानी है ।।


अक्षुण करती  देश एकता गरिमा का इतिहास लिए ।
भारत मन की प्यारी बेटी रोती  क्यों संत्रास लिए ।।


भाषा की है अमर बेल यह भारत की फुलवारी में ।
हिंदी अब तो पनप रही है दुनिया भर की क्यारी में ।।


भारत के कोने कोने को  हिंदी से  मैं  रंगता हूँ ।
अमर रहे हिंदी भारत में दीप प्रज्वलित करता हूँ ।।


सदा देश की पीड़ा को .................................।
भारत माँ  के वक्षस्थल की .........................।।



हिन्दुस्तानी संस्कृति की जननी तो ये  हिंदी है ।
संस्कार के खेतो की  पावन  माटी  सी हिंदी है ।।


जन गन मन के राष्ट्र गान को झंकृत करती हिंदी है ।

बन्दे मातरम देश राग के स्वर में ढलती हिंदी है ।।


सेना के कण कण में सबका मान  बढाती हिंदी है ।

अग्नि या ब्रह्मोस धनुष पृथ्वी को बनाती  हिंदी है ।।


तकनीकी की शब्द श्रृखला रोज बढाती हिंदी है ।

मानवता के खातिर जग को एक  कराती हिंदी है ।।


तुलसी सूर कबीर और रसखान पढाती हिंदी है ।

दिनकर मीरा और निराला से मिलवाती हिंदी है ।।


हिंदी का विरोध जो करते राष्ट्र विरोधी कहता हूँ ।

मैं भारत का भाषा प्रहरी भाषा मान  सजोता हूँ ।।


सदा देश की पीड़ा को ....................।

भारत माँ के वक्षस्थल की  ................।।



भारत की माटी  की भाषा का श्रृंगार करा दूंगा ।
हिंदी के खातिर इस  जग में अपना शीश चढ़ा दूंगा ।।


यहाँ गुलामी के चिन्हों पर मैं तलवार चला दूंगा ।

हिंदी राष्ट्र शीर्ष पर होगी वह आदित्य दिखा दूंगा ।।


देश मिला है बलिदानों से  अभिमान जगा दूंगा ।

हिंदी की मसाल लेकर के हिंदुस्तान जगा दूंगा ।।


देश रहेगा नहीं मूक भाषा का मर्म सिखा दूंगा ।

हिंदी का विरोध करने पर तीखा सबक सिखा दूंगा ।।


सूत्र एकता की  हिंदी  है क्रांति बिगुल बजा दूंगा ।

हिंदी की गरिमा  का मैं तो  नव इतिहास  लिखा दूंगा ।।


भाषा वादी राजनीति  के हर पन्ने को पढ़ता हूँ ।

लोकतंत्र का कला पन्ना छोड़ के आगे बढ़ता हूँ ।।


सारे देश की पीड़ा ..........................................।

भारत माँ के .................................................।।


                           नवीन मणि त्रिपाठी 




शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

आम आदमी

 आम आदमी 
                      -नवीन मणि त्रिपाठी 
भारतीय अर्थ व्यवस्था में
बढ़ती महँगाई ।
भ्रष्टाचार से
काले धन की कमाई ।
वह पिस जाता है ,
घिस जाता है ,
पथराई सी आँखे ,
किसी सूखे लहसुन की कली की तरह ।
निस्तेज हो जाती हैं ।
थाली से रोटियां निकल जाती हैं ।
वह चिल्लाता है ....
रोता है ....
न्याय मांगता है ।
कौन सुनता है ?
आखिर कौन है वह ?
यही है देश का भोला भला इंशान ।
भीड़ जुटाने का सामान ।
पहचाना ?
क्या
यही है आम आदमी ?
यही है आम आदमी ??


* * * *


आम आदमी कौन है ?
वह आश्चर्य जनक ढंग से
 क्यों मौन है ?
इस गूढ़ प्रश्न का जबाब कौन दे सकता है ?
गाँव वालों ने
चार व्यवस्था के महत्वपूर्ण कर्णधारो  को बुलाया ।
सब के सामने प्रश्न  दोहराया  ।
पहले कर्णधार ने बताया ।
सबको समझाया
कहा !
आम आदमी को हम
मैंगो पीपुल कहते हैं ।
जिस तरह से आम को
आखिरी स्वाद तक पंजे से  निचोड़ते और चूसते हैं ।
ठीक ऐसे ही हम इसे निचोड़ते हैं ।
इस आम का रस हर क्षेत्र में मिलता  है ।
खेल हो या स्पेक्ट्रम
सब में दिखता है ।
जमीन के मामले में तो यह खास है ।
विकलांगो का ट्रस्ट हो या कोयला ।
सब में मिठास है ।
ऐसा आदमी जो बिना किसी आवाज के,
पीड़ा को सहता रहे  ।
अपने ही वतन में चुप चाप लुटता रहे ।
जिसके सर उठाने  के लिए
ना हो आसमान ।
और बस जाने के लिए न हो जमी ।
हाँ
वही  है आम आदमी ।
वही  है आम आदमी ।।


*                   *                    *                    *             *


दूसरे कर्णधार को नहीं रहा गया ।

पहले की बातों  में उलझ गया ।
झट से बोल पड़ा
"तुम्हारी आम आदमी के बारे में जानकारी अधूरी है ।
क्या मुझे अपनी बात कहने की मंजूरी है ?
सहमति है ! तो सुनो .....
आम आदमी का आधार जाति होता है ।
मनुवादी संस्कृति का विरोधी होता है ।
जिसे आसानी से जाति के आधार पर
बेवकूफ बनाया जाता  है ।
जातिवादी विष बीज से जिसे  भड़काया जाता है ।
उत्थान के झूठे आश्वासनों से बहकाया जाता है ।
जिसके पैसों से मूर्तियाँ और पार्क बनते हैं ।
खाद्यानो के घोटालों से बंगले सजाते हैं ।
जब वह  किसी अस्पताल की चौखट पर
बच्चे की जिन्दगी बचाने  के लिए
जान की भीख मागता है ।
अपने हिस्से की इलाज की दवा के लिए
डाक्टरों का मुह ताकता है ।
इंसान मर जाता है इलाज के बिना
नेता दवा पी जाता है शर्म लाज के बिना ।
जब वह शोर मचाता है ।
आँका के हाथी से रौंद दिया जाता है ।
दिखती  रहती है उसकी आँखों में ,
छले जाने की नमी ।
जी हाँ ,
यही है आम आदमी ।
यही हैं आम आदमी ।।



*                          *                          *                  *



तीसरे कर्णधार ने बात काटी
तोड़ दी सारी परिपाटी
चुप रह ! तुझे क्या पता ?
मूर्खता की पहचान ना जता ।
आम आदमी वह होता है ,
जो गुंडों के आतंक से आतंकित होता है ।
गुंडा टैक्स देता है ।
साम्प्रदायिकता के दंस का शिकार  होता है ।
शोषित मानसिकता से
बीमार होता है ।
वह बहुत भोला होता है ।
साम्प्रदायिक दंगो का गोला होता है ।
जैसा चाहो वैसा समझा दो ,
पूरे शहर में दंगे भड़का लो ,
बस थोड़ी सी स्कूल की फीस और
भत्तों का लाली  पाप ।
पूरा  हो जाता है
आम आदमी का ख्वाब ।
भ्रष्टाचार करते जाओ
उसे सड़क  बिजली और
पानी से तरसाओ ।
इसके बाद भी वह तुम्हारे सायकल की तीलियों को
अशोक चक्र की तीलियाँ समझने  लगे
तुम्हारी लाल टोपी के खतरनाक संकेत को
जिन्दगी की गाड़ी का ग्रीन  सिग्नल समझने  लगे ।
जब उसे जलाकर खाक करने लगे
दहकती आग मजहबी ।
बस समझ लेना 
यही है आम आदमी ।
यही है आम आदमी ।।


*                        *                     *                            *




चौथे साहब थोडा मुस्कराए
अपने आडम्बर का जाल  बिछाए
और फिर धड़ल्ले से उछल गये
अपनी ताकत पर मचल गये
मैं बताऊंगा !
प्रत्यक्ष दिखाऊंगा ।

अरे भाई अवैध खनन कर लो ।
देश के अधिकारीयों को
ट्रैक्टर से कुचल दो ।
ड्राइवर हो या ज्योतिषी
किसी को कम्पनी मालिक
तो किसी को डायरेक्टर बना दो ।
जब चाहो जैसे चाहो
जिन्दगी को कमल सा खिला लो ।
जमीन हथियाओ
सिचाई के पानी से फैक्ट्री  चलाओ ।
भगवन के नाम पर जीता है
मस्जिद में कुरान और मंदिर में रखता गीता है ।
धर्म के नाम पर
जो अति संवेदनशील होता है ।
राज नेताओं की नाव का कील होता है ।
जो धर्म के नाम पर साम्प्रदायिक हो जाता है ।
जाति  के नाम पर जातिवादी हो जाता है
जो रोटी के नाम पर स्वाभिमानी नहीं होता
देश के नाम पर हिन्दुस्तानी नहीं होता
जिसके चरित्र की कीमत में
रह जाती है कमी
वही है आम आदमी ।
वही है आम आदमी ।।


*                    *                  *                        *


इतना सुनते ही
आम आदमी का स्वाभिमान जाग गया
चारो तरफ हाहा कार मच गया
उसका रौद्र रूप देख कर
सिंघासनों में आ गया भूचाल
सिहर गया है भ्रष्टाचारी
जो है मालोमाल ।
फिर भी
आज आम आदमी
बड़े ही तहजीब के साथ आगे आया है ।
साफगोई से कुछ कहने  आया है ।
" साहब मैं हूँ
आम आदमी
जिसे आप सब ने लूटा है ।
थाने  ले जाकर पीटा  है ।
हमारे खेतो का पानी  आप  पीते  हो
हमारी बिजली से जिन्दगी  जीते हो ।
आप ने धर्म के नाम पर
जानवर की तरह लड़ाया है ।
जाती के नाम पर आप ने आपने
चुनाव में जीत का बिगुल बजाया  है ।
आज आप की नज़रों में ये आम आदमी
कितना घिनौना हो गया है ।
यह तो गुलाम भारत से भी ज्यादा
बौना हो गया है ।
पर याद  रहे साहबान !
आम आदमी अब नहीं होगा मेहरबान ।
अब उसे अपना आत्म सम्मान चाहिए ।
एक एक  रुपयों का हिसाब चाहिए ।
देश के लुटेरों का वापस मॉल चाहिए ।
उन्हें पकड़ने का हथियार लोकपाल चाहिए ।
जब देश का आम आदमी जगता  है ।
अपना स्वाभिमान मागता है ।
खो जाती है शासकों की शांति ।
देश में आती है महाक्रान्ति ।
भ्रष्टाचारियो से देश को निजात चाहता है ।
गाँधी का देश रामराज्य चाहता है ।।
सावधान !
सत्ता के मद में चूर भ्रष्टाचारियों ।
शोषण करने वाले मत के भिखारियों ।
तुम्हारे घिनौने  कर्मों से नहीं रह गया हूँ अजनबी ।
जानो ........ !  पहचानो ......!
यही है आम आदमी
यही है आम आदमी ।।

रविवार, 23 सितंबर 2012

हिंदी पर चार छंद

हिंदी पखवाडा पर हिंदी को समर्पित  अवधी भाषा  में चार छंद



हिंद  की   शान  की  ताज  बनी   निज  गौरव  माँ   बढ़ावत   हिंदी |
सूर  कबीर  बिहारी   के  नवरस  छंद   का    पान   करवट   हिंदी ||
तुलसी  केहि  मानस  सागर  में यह मोक्ष का ध्यान करावत हिंदी |
मीरा  की भक्ति  की  प्रेम  सुधा बन प्रेम  की  राह  दिखावट  हिंदी ||

निर्माणी है  आयुध  की  अपनी   पर  ताल  से  ताल  मिलावत हिंदी |

तकनीकी की सूक्ष्म से सूक्ष्म विधा जन मानस तक पहुचावत हिंदी ||
पृथ्वी  अग्नि   ब्रह्मोश  के  शब्द   से दुश्मन  को    दहलावत   हिंदी |
अर्जुन  टंक पिनाका  परम  से ये  देश   की   लाज   बचावत   हिंदी ||

देश  के  जंग  की  अंग  बनी  बलिदानी  को  मन्त्र  बतावत  हिंदी |

वीर  शहीदों  के  फाँसी के  तख़्त से भारत  माँ को  बुलावत  हिंदी ||
जब देश के मान पे आंच पड़ी तब क्रांति  बिगुल को बजावत हिंदी |
सोये   हुए   हर  बूद  लहू  को  वो   अमृत   धार   पिलावत  हिंदी ||

राष्ट्र  की  भाषा  उपाधि  मिली  नहीं  शर्म का  बोध  करावत हिंदी |

राज  की  भाषा  की नाव  नहीं  यह  राष्ट्र  की पोत चलावत  हिंदी ||
कुछ  शर्म  हया  तो  करो  सबही  करुणा  कइके  गोहरावत हिंदी |
भारत  माँ  की  दुलारी लली  केहि  कारण  मान  ना  पावत हिंदी ||

रविवार, 16 सितंबर 2012

हिंदी का सम्मान ना काटो

                                    14 सितम्बर हिंदी दिवस पर 


हिंदी का सम्मान ना काटो|
मेरा   हिंदुस्तान ना  बाँटो ||


                    तुम भारत के जन नायक हो |
                 जन गन मन अधिनायक हो |
                 इस  लोक तंत्र के दायक  हो |
                 जन मानस के  निर्णायक हो |


 

लोकतंत्र  के  इस उपवन से ,

भाषाओँ की डाल ना छांटो ||
हिंदी का सम्मान ना  काटो
मेरा  हिंदुस्तान  ना  बाँटो ||


                   यह    देश   टूटता  जायेगा | 
                 अपराध  बोध   हो जायेगा  |
                 माथे  कलंक  लग  जायेगा | 
                 इतिहास  शर्म   दोहराएगा | 


 

तुच्छ स्वार्थ के खातिर जग में

तीखा   तीखा  विष  ना  चाटो|| 
हिंदी  का  सम्मान  ना   काटो
मेरा   हिंदुस्तान   ना    बाँटो ||


              कलुषित  क्षेत्रवाद    को  धोना | 
            बीज    राष्ट्र   वाद   के   बोना  |
            दूर  रखो   हर   कर्म  घिनौना |
            हर  भाषा   का   पुष्प  पिरोना |  


 


भारत  माँ  का  माल्यार्पण  कर 

मन के  कुटिल  राग  को  डाटों ||
हिंदी   का  सम्मान  ना   काटो |
मेरा     हिंदुस्तान  ना     बाँटो ||


                          हर  भाषा   के  बलिदानी  थे |
                       वे   स्वतंत्रता   के    दानी  थे |
                       भारत  की  अमर  कहानी थे |
                       वे   दुर्लभ   राष्ट्र   निशानी  थे |


 

बहुत   बनाई   गहरी   खाई |

शर्म  करो  जाओ  तुम पाटो ||
हिंदी  का  सम्मान ना काटो |
मेरा   हिंदुस्तान   ना   बाटो ||
                       


शनिवार, 25 अगस्त 2012

दो कवितायेँ

     शान्ति
वह मिलती है क्या ?
अरबों रुपयों के गोल मॉल में ,?
उद्योगपतियों  के 

वैभवशाली परिवार में ?
दूरदर्शन पर प्रायोजित 

महत्माओं की दूकान में ?
शायद वह वहाँ   नहीं |
गलत है तलाश की दिशा !
अनंत अंधकार युक्त निशा |
तुम्हारी असंख्य इच्छाओं ने ,
जीवन की कुटिल धाराओं में |
कार कोठी बंगला ,
जिसे चाहा दिल से पुकारा |
वह सब कुछ मिल गया |
कामनाओं का कमल खिल गया |
.......तुमने !
एक बार भी उसे नहीं पुकारा !
......असीम
आनंद का कलश लिए
तुम्हारी निकटता पाने के लिए
बेचैन .......
प्रतीक्षारत नैन .....
उसकी ओर अपना मुँह 

फेरो तो सही |
उसकी भावनाओं को 
समझो तो सही |
लेकर जीवन के 
नव सृजन के कांति ,
मिलेगी तुम्हे
 मिलन की व्याकुलता लिए ,
तुम्हारी शान्ति |
तुम्हारी शान्ति |
तुम्हारी शान्ति ||
 

           प्रतीक्षा




चिर परिचित आँखें
अब वे धंस चुकी हैं
उनके गुलाबी होठों की लालिमा
अब बदल चुकी है |
काली कालिमा में
तेजहीन आकृति ,
और झुलसा रही हैं उसे
पश्चाताप की अग्नि |
एक गलती ....................
एच आई वी की एंट्री
विवश हो गयी अब
उत्सुकता के साथ साथ
अंत की प्रतीक्षा ||

        नवीन