तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

लूटा गया वतन है ,ये अफवाह नहीं है

उनको  जम्हूरियत  की  तो  परवाह  नहीं है ।
लूटा  गया  वतन  है ,ये   अफवाह   नहीं  है ॥


चोरों  के गुनाहों  की सजा  मांगी थी जिसने ।
पर्दा   उठा   के   देखा  वही   शाह    नहीं   है ॥


विस्फोट कर  रहे  हैं  वो  आवाम   के  लिए ।
कैसे    कहोगे   अब   उसे   गुमराह  नहीं  है ॥


जुल्मो सितम को सहती बेटियों को बचा लो ।
तहजीब   डूबने    से   वो  , आगाह   नहीं   है ॥


बैठे  हैं  वो  घोटालों   के  दम  पर अमीर बन ।
उनकी  नजर  में   ये  कोई   गुनाह   नहीं   है ॥


उनकी सजाये   मौत  पे  बरपा  है  शोर  क्यों |
अमनो  शुकुं  की  ओर  अब   निगाह नहीं है ॥



रविवार, 24 मार्च 2013

बे हिचक तुमने जब, बेवफा कह दिया


तेरी   तारीफ   में  उसने   क्या   कह  दिया ।
वह   तो  खामोश  सबकी  जुबां  कर  दिया ॥
मयकशी   की   भी   चर्चा   हुई  जब  कभी ।
तेरे    पैमाने   को ,  मयकदा    कह   दिया ॥



एक   उलझी   हुई   सी , कथा   पढ़   लिया ।
मन  के  सपनों की  सारी, व्यथा  पढ़ लिया ॥
उसकी  जज्बात  लिखने , कलम  जब चली ।
सोच  कर  कुछ  मुझे,  अन्यथा  कह  दिया ॥ 



जिक्र चिलमन की महफ़िल में क्यूं कर दिया ।
चाँद   को   बादलों   ने ,  छिपा   फिर  लिया ॥
दर्द    माँगा   था     मैंने ,   तेरे    प्यार   में ।
तूने   इजहार   में   क्यूँ ,   दवा   रख   दिया ॥



एक   मुद्दत   से   जलता ,  रहा   वह   दिया ।
रोशनी   से   मोहब्बत  , बयाँ    कर    दिया ॥
नूर   आँखों   का   भी  , आज   शरमा  गया ।
बे  हिचक   तुमने   जब, बेवफा  कह   दिया ॥



एक   सहमी  नजर   को,  हया   कह   दिया ।
मैंने  कातिल  को  अहले  फिजा  कह  दिया ॥
जुल्फे  लहरायीं  जब,  क़त्ल   की   चाह  में ।
मैंने  रुखसत  चमन  अलविदा   कह  दिया ॥

                              

         -नवीन मणि त्रिपाठी

सोमवार, 18 मार्च 2013

गीत

         गीत 
                                               - नवीन मणि त्रिपाठी 


गीत सजे निकले जुबान से ,
मधुमय होठ तुम्हारा है ।
एहसासों  से शब्द थिरकते ,
अरमानों की धारा है ।
मैं तो लुटा दूं जीवन अपना
देश प्रेम की चौखट पर ।
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?


मृत्यु वरण करते किसान हैं ,
भारत तेरी माटी पर ।
भ्रष्ट तंत्र का नव विधान है ।
मानवता की छाती पर ।
बीच सड़क पर चीर खीचते
इक अबला की भारत में ।
फिर भी मौन बने रहते हो ,
ये अपराध तुम्हारा है ॥
बलिदानों को क्या समझोगे
क्या ऐतबार तुम्हारा है ॥


अस्मत बिकती रोज यहाँ है
इज्जत की गलियारों में ।
लग जाते जीवन के मोल हैं
घोटालों के पालों में ।
आह निकलती है गरीब की
मौत की जिम्मेदारी लो ।
सारी दवा बेच खाते हो
कैसा पाप तुम्हारा है !!
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?

बृद्ध जनों की मर्यादा का
होता है उपहास यहाँ ।
आम आदमी के लुटने का
पाओगे आभास यहाँ ।
माँ के पेट में रोती कन्या
टूटी जीवन की आशा ।
नारी के सम्मान का झंडा ??
क्या ये राज तुम्हारा है ??
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?






















मंगलवार, 22 जनवरी 2013

सावधान पाकिस्तान !

                            सावधान पाकिस्तान !



निर्दोषों    का   लहू   पुकारे , अब   जबाब   देना   होगा ।
गीदड़   बन   कर  सर  काटोगे, तो   हिसाब  देना होगा ।।

चुन  चुन  कर  तुम खूब भेजते, आतंकी की  फ़ौज यहाँ ।
बिना  मौत   मारे  जाते  हैं, तेरे   विषधर   रोज   यहाँ ।।

घोर   निराशा  अंधकार  में,  पहुँच   चुका  आतंक  तेरा ।
 फौलादी  हैं  अमन   इरादे , पस्त  हुआ  ये  डंक  तेरा ।।

छल दंभ  द्वेष   पाखण्ड  ईंट   की नीव बनाई है  तुमने ।
झूठ  राग  व  गहन  कुटिलता   को  अपनाई है तुमने ।।

लादेन  की मौत पे नंगा , विश्व  पटल   पर नाचा था ।
धूल  झोकने  वाले  का तो  निकल चुका  दीवाला था ।।

फिर कसाब की फांसी पर क्यों तुमको शर्म नहीं आयी ।
तेरा  भेजा  आतंकी  था,  तेरी  लाज  न   बच   पायी ।।

अजहर  दाउद  व   हाफिज   का  तू  ही   पालनकर्ता है ।
दिल्ली   हो   कंधार   मुंबई,  दहशत   गर्द   प्रणेता  है ।।

अग्नि  बीज   बोया है तुमने अब  तुमको जलना होगा ।
अंगारों  पर  चलने  का  तो  स्वाद  तुम्हें  चखना होगा ।।

निर्दोषों   का   लहू   पुकारे   अब   जबाब   देना  होगा ।
गीदड़  बन  कर  सर  काटोगे , तो हिसाब करना होगा ।।

*     *        *           *              *           *           *

तालिबान  को  पाल - पोश  कर ,  सर्प  बनाने वाले हो ।
अमेरिका  के    निर्दोषों   को  तुम   मरवाने   वाले  हो ।।

तुम  पंजाबी  अमन  चैन  के  खून  खराबा  वाले  हो ।
करगिल  काली  करतूतों  से  जान  बचाकर  भागे हो ।।

यहाँ  मुंबई  बम  कांड  के   साजिश   रचने  वाले  हो ।
होटल  ताज  जलाने  वाले  कितने  दिल  के  काले हो ??

लोकतंत्र  के  भक्षक  हो  तुम  संसद  के  हमलावर हो ।
पीठ  दिखा  कर   जाने वाले   इकहत्तर के  धावक  हो ।।

बेशर्मी की  ताज  पहन  कर  राज  करोगे क्या अब तुम ।
विश्व  समझता खूब  है तुमको  सीधी  हो जायेगी  दुम ।।

तुम दुनियां  को  ठगने  वाले   नीति  भ्रष्ट  नियंता  हो ।
धोखेबाजी  है  नस  नस  में  क्रूर  सत्य  के  हन्ता हो ।।

राक्षस  हो  तुम  मानवता  के अब तुमको मरना  होगा ।
सत्य अहिंसा  की  शक्ति से तिल तिल  क्र जलना होगा ।।

निर्दोषों   का    लहू   पुकारे  , अब  जबाब   देना   होगा ।
गीदड़  बन  कर  सर  काटोगे, तो   हिसाब  देना   होगा ।।

*            *                  *               *              *          *

पाक  तेरे  नापाक   इरादों   से  भारत  भी   वाकिफ   है ।
पाप  तुम्हारा  सर  चढ़  बोले  दंड  मिले अब वाजिब है ।।

लोकतंत्र   को  डसने  वाले  आडम्बर   क्यों  करते   हो ।
खोल   फैक्ट्री   आतंकी  की  चाल   फरेबी  चलते   हो ।।

विध्वंसक  है   नीति   तुम्हारी  मानवता  अपराधी  हो ।
हाथ   रंगा  मासूम  रक्त  से   दुनियां   के  संतापी   हो ।।

हाय  लगी  है   मानवता   की   नष्ट  भ्रष्ट  हो  जाओगे ।
कायरता  वाली  करनी  से  अस्त   सदा   हो  जाओगे ।।

कश्मीर है  भारत का  सिरमौर  समझ  ले  आज अभी ।
देर   हुई    तो   पायेगा   रावलपिंडी   खो   गया  कहीं ।।

हमें  बलूच  पंजाब   प्रान्त  को  देश  बनाना  आता है ।
दुश्मन  को   दुश्मन  की  भाषा  में समझाना आता है ।।

भारत  के  हर  अपराधी  को  अब  तुमको  देना  होगा ।
भारत  माँ   के  शर्तों  पर  ही  अब  जीवन जीना होगा ।।

निर्दोषों    का   लहू  पुकारे ,अब   जबाब   देना   होगा ।
गीदड़  बन  कर  सर  काटोगे, तो   हिसाब  देना होगा ।।

*                *                  *                *             *

विश्व  तुम्हारी  कायरता  को   हैरत  से  अब देख रहा ।
तेरे घृणित कारनामो पर  जी  भर तुमको  कोस  रहा ।।

छ्दम  युद्ध  आतंक  सहारे  कुछ  बिगाड़  न  पाओगे ।
लक्ष्मण  रेखा  पार  करोगे  स्वयं  भस्म  हो जाओगे ।।

तेरे   स्वागत   की   खातिर   बारूद   बिछाए  बैठे  हैं ।
बम  परमाणु  के  निशान  पर  तुमको  लाये  बैठे हैं ।।

तेरी  गीदड़  भभकी  से  अब  कोई  फर्क  नहीं पड़ता ।
बातों  के  हो  भूत  नही  लातों  से  जाती  है  जड़ता ।।

पलक  झपकते  मानचित्र  से  तू  गायब  हो जाएगा ।
तेरी  करनी   ले   डूबेगी  शांति   मार्ग  खो   जायेगा ।।

तेरा   सारा   अहंकार   सब   यहाँ   धरा   रह  जाएगा ।
आतंकी  का  राष्ट्र  सदा  के  लिए  खाक  हो  जायेगा ।।

एक  एक  लाशों  का  कर्जा  ब्याज सहित भरना होगा ।
काश्मीर  का   बाकी  हिस्सा  भारत  को   देना  होगा ।।

निर्दोषों   का   लहू  पुकारे , अब   जबाब   देना   होगा ।
गीदड़  बन  कर  सर  काटोगे, तो   हिसाब  देना होगा ।।



                                                    प्रस्तुति - नवीन मणि त्रिपाठी

रविवार, 6 जनवरी 2013

आँधियों की इस हवा में, ये दिया जलता है क्यों

उसके छिप जाने से पहले, दिन यहाँ ढलता है क्यों ।
आँधियों  की इस हवा में, ये  दिया जलता है क्यों ।।

शोर  बरपा  मौत  से  है ,इस  शहर   की  जुस्तजू ।
दामिनी
 की रूह से, शिकवा- गिला  करता  है क्यों ।।

हम मुसाफिर  ,तुम मुसाफिर  ,मंजिलों की चाह  में ।
बे अदब के  कायदे  पर  ,इस तरह   चलता  है क्यों ।।

उसको  आनी एक   दिन  तुझको  बुलाने के लिए ।
रोज उसकी  फ़िक्र में, तू उम्र भर  मरता  है  क्यों ।।

नाम  चस्पा   हो  रहा   है , शहर  की   दीवार  पर।
शातिरों  के  इस झमेले  में, भला  पड़ता  है क्यों ।।

जिस्म  को  बेचीं  थी  उसने  घर  की  रोटी वास्ते ।

फिर बिकेगी तेरी महफ़िल ये तुझे लगता है क्यों ।।

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

नववर्ष के आगमन पर अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?

पिछले वर्ष मैंने की थी ,
मंगलमय वर्ष की कामना ।
पर ये कैसी विडम्बना !
वर्ष 2012 तुमसे क्या पूछना ?
लाख मिन्नतों के बाद भी तुमने ,
जरी रखा रंग बदलना ।
देश में  भ्रष्टाचार की बुलंदियों पर
तिरंगा लहरा  रहा है ।
देश का भ्रष्टाचारी,
अपनी सफलता पर इतरा रहा है ।
लोकपाल हो या काला  धन
मसला गरम है ,
पर संसद नरम है ।
एफ डी आई पर सांसदों का बिकना ,
आरक्षण की आग पर
फिर से रोटियों को सेकना ।
असंवैधानिक तुष्टिकरण ।
किसानों का मृत्यु वरण ।
कानून मंत्री का
कानून भक्षकों को संरक्षण ।
और जाते जाते ,
पूरे देश की आँखों में आंशू दे गये ।
भारत की स्मिता बन चुकी दामिनी को
साथ ले गये ।
सन 12 तुम दामिनी के दागदार निकले
अपराधियों के वफादार निकले
हे वर्ष 2013 !
पिछले वर्षों की तरह कहीं तुम भी तो नहीं
लाज शर्म घोल के पी लोगे ।
एक शक ......
कहीं तुम भी ,
दगाबाज तो नहीं निकलोगे  ?
अब मैं किस दिल से तुम्हारा स्वागत करूं ।
मै कैसे खुशियों की झोली भरूँ ।
गुजरे कुछ वर्षों से नववर्ष मंगलमय होने का
भरोसा टूटता जा रहा है ।
मानवता-संस्कार सब कुछ छूटता जा रहा है ।
हमारे प्रधानमंत्री फिर साल के अंत में बोलेंगे
" ठीक है "
न्याय  पर अन्याय की जीत है ।
इन बलात्कारियों  के परिवेश में
कहाँ मिलेगे मन के  मीत ?
सन 13 .....! 
तुम्हीं बताओ  ?
नववर्ष के आगमन पर
अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?
अब कौन लिखेगा मंगल गीत ???

                       नवीन

रविवार, 23 दिसंबर 2012

गज़ल

मरहम  के लिए अब कोई सरकार  नहीं है ।
मजदूर  को  एहसान  की  दरकार  नहीं  है ।।

गुम  हो रहीं हैं अब तो  सहादत की फाइलें ।
ज़माने को अब तो  उनका ऐतबार  नहीं है ।।

क्यूँ शौक से पढ़ते मेरे दिल की किताब को ।
कुछ तो करो  जनाब  ये  अख़बार  नहीं  है ।।

कश्ती  के डूबने का फ़िक्र क्यूँ हुआ उनको  ।
सूखी नदी  में जब  यहाँ  मजधार  नहीं  है ।।

बिखरी हुई है लाली जो  होठों पे  उनके आज ।
अब  वक्त  का  उन्हें  भी  इंतजा
र  नहीं  है ।।

सहमी हुई कली है क्यों भौरों की  नजर से ।

मतलब के लिए प्यार का बाजार   नहीं है ।।