तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

बुधवार, 31 मई 2017

शायर हूँ यकीनन मेरी पहचान यही है

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सबसे  न   बताओ   के  परेशान  यही  है ।
 शायर हूँ यकीनन  मेरी  पहचान यही है ।।

यूँ ही न् गले मिल तू जरा सोच  समझ ले ।
इस शह्र  के  हालात  पे  फरमान यही है ।।

कहने लगी है आज से मुझकोभी सरेआम ।
ठहरा है जो  मुद्दत से वो  मेहमान यही है ।।

बर्बाद गुलिस्तां को सितम गर ने किया जब।
लोगो  ने   कहा  प्यार  का  तूफ़ान  यही है ।।

अक्सर  ही  नकाबों  में छुपाते  हैं ये चेहरा ।
बैठा  जो  तेरे   हुस्न   पे   दरबान  यही  है ।।

लाती  हैं  हवाएं  मेरे  महबूब   की  खुशबू ।
शायद  मेरी  तक़दीर  में   बागान  यही   है।।

ठहरो  किसी दीवाने को मुजरिम न् बनाओ ।
मिलता  जो  मुहब्बत  वो  इंसान  यही  है ।।
         -- नवीन मणि त्रिपाठी

सोमवार, 29 मई 2017

ग़ज़ल गर चाहते हो रिन्द को तो इश्तिहार हो।

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 थोड़ी  तसल्लियों   में   कोई  इंतजार  हो ।
माना  कि  आज तुम जियादा बेकरार हो ।।

वह  मैकदों के पास से  गुजरा नहीं कभी ।
 गर चाहते हो  रिन्द  को तो इश्तिहार हो ।।

निकला हैआज चाँद शायद मुद्दतों के बाद।
अब वस्ल पर वो फैसला भी  आरपार  हो।।

आया शिकार पर न् वोखुद  ही शिकार हो।            इतना  खुदा  करे उसे  बेगम  से प्यार हो ।।

लिक्खा दरख़्त पर किसी पगली ने कोई नाम।
शायद  गरीब  दिल   की  कोई यादगार  हो।।

हालात हैं खराब क्यों कुछ सोचिये  जनाब ।
मुमकिन कहीं  नसीब में  गहरी  दरार  हो ।।

कुछ इस तरह से क़ैद में रखिये उसे  हुजूर ।
ऐसा न् हो कि इश्क का मुजरिम फरार हो।।

आये नही वो आज भी महफ़िलके आसपास ।
पूछो  कहीं  न् और भी  सजता दयार  हो ।।

रोते दिखे  हैं आप भी रुख़सत पे बेहिसाब ।
शायद किसी अदा पे कोई जाँ  निशार हो ।।

                           -- नवीन मणि  त्रिपाठी

                          मौलिक अप्रकाशित

हसरतें तब हलाल करती हैं

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ताकतें    पायमाल   करती   हैं ।
ख्वाहिशें तब हलाल करती हैं ।।

खा  रहे  वे  हराम  की  दौलत ।
रोटियाँ  तक मलाल  करती हैं ।।

मर  रहे  भूंख  से   यहां   अदने।
कुर्सियां क्या खयाल  करती  हैं ।।

हाल   कैसे   तुझे   बताएं   हम ।
चुप्पियां  ही  सवाल  करती  हैं ।।

वह  नमाज़ी  भी  हो  गया तेरा ।
तेरी आंखें  कमाल  करती   हैं ।।

आज मुश्किल है यार से मिलना ।
वस्ल  में   अंतराल   करती   हैं ।।

उस का चेहरा  बुझा बुझा सा है ।
तोहमतें कब  निहाल  करतीं  हैं ।।

हैं कहाँ  वे वफ़ा के काबिलअब ।
बे  अदब  का मज़ाल करती  हैं ।।

यह ज़माने  का  है असर   देखो ।
वे   दुपट्टा   रुमाल   करती   हैं ।।

ग़ज़ल --जहां मतलब परस्ती हो वहां उल्फ़त नहीं अच्छी

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यहां  की  नाज़नीनो  में पली  हसरत  नहीं  अच्छी ।
जहाँ मतलब  परस्ती हो  वहाँ  उल्फत नहीं अच्छी ।।

बड़ा   खतरा   मुहबत  से  ये   हिंदुस्तान   है  यारों ।
हसीनों के चमन में अब कोई ग़फ़लत नहीं अच्छी ।।

हुए  बरबाद   हम   तेरी  निगाहों   की  शरारत  से ।
मेरी बर्बादियों  पर  फिर तेरी  रहमत  नहीं अच्छी ।।

गुजर   जातीं   हैं  ये   रातें  कई  मजबूरियां   लेकर ।
सनम  से  लोग कहते  हैं  मेरी सोहबत नहीं अच्छी ।।

बड़ी कमसिन  अदाएं हैं  नज़र को  फेरना  मुश्किल ।
है मौसम आशिकाना भी मगर किस्मत नहीं अच्छी ।।

बड़े  जालिम  इरादे   हैं  ये  कातिल   हुस्न  वाले  हैं ।
इन्हें  सर  पर  चढ़ाने   की  नई  आदत  नहीं अच्छी ।।

ज़रूरत  पर  जो  दौलत  काम आने से  मुकर जाए ।
हिफ़ाज़त  में  रखी  ऐसी  कोई  दौलत  नहीं अच्छी ।।

बनावट  का  तबस्सुम  हो  दिलों  में खार हो जिंदा  ।
मियां!मक़सद के चाहत में हुई खिदमत नहीं अच्छी ।।

सुकूँ  गर  चाहिए  तो सिर्फ  बेगम की  खुशामद कर ।
किसी  से  इश्क  कर लाई गई  आफ़त नहीं अच्छी ।।

कहा  तू  मान  ले  मेरा   या   फिर  कोई  तरीका  दे ।
ग़ज़ल  के  वास्ते  हमसे  तेरी   हुज़्ज़त  नही अच्छी ।।

अगर  मंजूर   तुझको  है  तो  मेरा  हक़  मुझे  दे  दे ।
कभी  खैरात  में  बटती  कोई  इज्जत नहीं अच्छी ।।

हमारे   पास  जो   भी   था   तुम्हारे   वास्ते   ही  था।
लगी अपनों की जेबों पर तेरी हिकमत नहीं अच्छी ।।

              -- नवीन मणि त्रिपाठी

ग़ज़ल पढ़ने वालों ने पढ़ लिया होगा

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उसके चेहरे  पे  कुछ लिखा  होगा ।
पढ़ने  वालों  ने  पढ़  लिया होगा ।।

यूँ   नही    हैं     तमाम     दीवाने ।
हुस्न  शायद   नया   नया   होगा ।।

सिलवटें    दे   रहीं    गवाही  सब ।
मौत  से  वह   बहुत  लड़ा   होगा ।।

जुल्म से अब भला  है  डरना क्यों ।
मेरे    खातिर    मेरा  खुदा   होगा ।।

सुर्ख   लब   से  शराब   पीकर  वों।
होश   खोकर   कहीं   पड़ा  होगा ।।

तुझसे मिलना भी इक  कयामत है ।
क्या  मुकद्दर   का   फैसला  होगा ।।

उनसे   कह    दो   न  रास्ता   रोकें ।
मेरा  दिलवर   बहुत   खफा  होगा ।।

आ   भी  जाओ   मेरी  जरूरत  हो ।
तुझसे  मिलकर  मेरा  भला  होगा ।।

छोड़ कर चल  दिया शराफत को ।
कोई    धोखा   कहीं   हुआ होगा ।।

वस्ल तय  था मगर ख़बर क्या थी ।
इस  तरह  से  कभी  जुदा  होगा ।।

लोग  कहते  हैं  खास  अफसर है ।
ढूढ़िये   धन    कहीं   दबा   होगा ।।

घर   जलाकर    मेरा  चले   आये ।
ये  रकीबों   का   मशबरा    होगा ।।

पत्थरों  पर  है   सियासत  काफी ।
मुल्क  करवट  बदल  रहा   होगा ।।

हैं   उमीदें  तमाम   जनता     की।
उसके आने से कुछ भला होगा ।।

             -- नवीन मणि त्रिपाठी

कुछ लहू भी लगता है आशियाँ बनाने में

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चाहतें    जवाँ   होगी  इस तरह ज़माने  में ।
है  कहाँ  तेरा  सानी  बिजलियाँ  गिराने  में ।।

दौलतें   नही  काफी  प्यार  भी  जरूरी   है ।
कुछ लहू भी लगता है आशियाँ  बनाने  में ।।

बे नकाब  मत  आना  ये मेरा  तकाज़ा  है ।।
उम्र    बीत  जाएगी   हुस्न  को  भुलाने   में ।

रूठ  कर  नहीं  जाना बेकरार  महफ़िल से ।
हस्तियां  मिटी  कुछ  हैं महफिले  सजाने में ।।

वो किसीकी ख्वाहिश में घरको छोड़ आई है ।
लुट  गए  हजारों  घर  इश्क़ आजमाने  में ।।

रात   के  अंधेरों   में   आरजू  बिखरती  है ।
रोज  टूट जाता हूँ दिल से  दिल मिलाने में ।।

मुद्दतों की यादें थीं  जल  गई वो  बस्ती भी ।।
क्या  मिला  रकीबों  से आग  को लगाने  में ।।

सुर्ख  है  तेरा  चेहरा  मैकसी  का  आलम  है ।
रूह क्यों  हिचकती है जिस्म को जगाने में ।।

तेरी   आसनाई  में  कुछ  नया  तो  होगा ही।
आसुओं से भीगे हम  इक  ग़ज़ल सुनाने में ।। 

                   -- नवीन मणि त्रिपाठी

ग़ज़ल - कहीं ये नीयत फिसल न जाये

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नई    जवानी     नई      अदाएं 
कहीं  ये नीयत फिसल न् जाए ।।
जरा  सँभालो   अदब  में  पल्लू 
कोई  इरादा  बदल  न्    जाए ।।

कबूल   कर   ले   सलाम   मेरा 
ऐ  हुस्न  वाले  तुझे  है  सज़दा ।
मेरी  मुहब्बत  का  दौर  यूं   ही 
तेरी  ख़ता से निकल  न्  जाए ।।

बड़ी  तमन्ना  थी  महफ़िलो  की 
ग़ज़ल  में  उसके  पयाम   होगा ।
उधर  है   दरिया  में   बेरुखी  तो 
इधर  समंदर  मचल  न्   जाए ।।

है  क़त्ल   का  गर   तेरा   इरादा 
तो  दर्द  देकर  गुनाह  मत  कर ।
हराम      होगा  ये   इश्क़     तेरा 
ख़ुदा के घर तक दखल न् जाए ।।

अगर ज़मीं  में  है   तिश्नगी  कुछ 
तो   बादलों   पर  यकीन  रखना ।
तेरी     बेसब्री    बड़ी   जुदा    है 
तमाम ख्वाहिश निगल  न् जाए ।।

ये   गर्म    झोंके    बता    रहे   हैं  
वो आग अब  तक  बुझी  नहीं है ।
खुदा  से   इतनी   सी  इल्तज़ा  है 
वो मोम का  घर  पिघल न्  जाए ।। 

न्    राज   पूछो    मेरी    जुबाँ   से 
मेरी     मुहब्वत    तबाह    होगी ।।
मैं   जख़्म  अपना   छुपा  गया  हूँ  
ये   दिल  तुम्हारा  दहल  न् जाए ।।

                 --नवीन मणि त्रिपाठी