तीखी कलम से

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

मै एक चिकित्सक हूँ

             मै एक  चिकित्सक हूँ

                                                                                           नवीन मणि त्रिपाठी
                              
                                                           जी वन /२८ अरमापुर
                              
                                                            कानपुर 
                              
                                                         दूरभाष ०९८३९६२६६८६


जी हाँ मै एक चिकित्सक हूँ .
आपकी बिमारियों का निरीक्षक  हूँ .
लोग मुझे भागवान का दूसरा रूप मानते हैं .
इस बात को हम अच्छी तरह जानते हैं .
जब हम किसी सरकारी अस्पताल में होते हैं .
निःशुल्क इलाज करते हैं .
गरीब भूखे नंगे सब आते हैं .
हजारों बीमारियाँ साथ लेट हैं .
सरकारी दवाओं से कुछ बीमारियाँ ,
ठीक हो जाती हैं .
मगर कुछ   ढीठ हो जाती हैं .
कभी कभी लम्बा इलाज करता हूँ .
एक्स रे ,अल्ट्रासाउंड , व् मेडिकल स्टोर वालों से ,
कनेक्सन रखता हूँ .
लम्बे लम्बे पर्चे लिखता  हूँ .
वेतन के सहारे कभी नहीं जीता हूँ .
नौकरी का पैसा बैंक में रख देता हूँ .
कमीशन के  सहारे  जेब खर्च चल जाता है .
जरुरत का मतलब निकल जाता है .
मेरी जरुरत उन्हें भी होती  है ,
जिनकी आवश्यकता  फर्जी रिपोर्ट होती है .
अगर किसी को फर्जी मुक़दमा कायम करना होता है .
तो एक लम्बे बज़ट का मेडिकल रिपोर्ट जरुरी होता है .
लीव मेडिकल मैं  दिन में दस बनता हूँ .
डेंगू मलेरिया चिकन गुनिया सब कुछ दर्शाता हूँ
.पूर्व जन्मों की तपस्या है
इस जनम में नहीं कोई समस्या है .
लोगों को जीवन दान करता हूँ .
चिकित्सा हो या कानून सब में योगदान करता हूँ .
आज के ज़माने में इलाज कोई खेल नहीं है .
गरीब और अमीर के इलाज में कोई मेल नहीं है .
कुछ पैसे वाले मरीज आते हैं .
अधिकांश मनो रोगी होते हैं .
सरकारी इलाज में उन्हें लोचा दिखता है .
प्राइवेट इलाज में  भरोसा दिखता है .
ऐसे मरीज मेरे लिए अधिक उपजाऊ होते हैं .
किसी पूत की तरह कमाऊ होते हैं .
अगर कोई ठीक ठाक पैसे वाला
कोई मरीज मेरे पास आता है .
उसकी माली हालात मेरी समझ में आ जाता है .
धीरे से घर का पता बताता हूँ .
बिलकुल ठीक होने का भरोसा दिलाता हूँ .

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एक दिन एक महगी कार से एक साहब ,
बीबी के साथ आये .
काफी परेशान नज़र आये .
आते ही बोले .....
सर मुझे आपको प्राइवेट दिखाना है .
बीबी का इलाज करना है .
मैंने उन्हें धीरे से घर का पता बताया .
छः बजे शाम को घर पर बुलाया .
शाम को महाशय घर आये .
अपनी मैडम  को साथ लाये .
"मैंने मरीज से पूछा क्या परेशानी है ."
 "सर मन में वीरानी है ."
सर्दी जुकाम खांसी से परेशान हूँ .
सर दर्द आँख और नाक में पानी है ."
मैंने उन्हें तुरंत टेबल पर लिटाया .
हाथ पीठ छाती पर आला लगाया .
आँख जीभ नाक पर टार्च जलाया .
बी ० पी ० मशीन का नुस्खा आजमाया .
चार बार  बी ० पी ० की रीडिंग निकलवाया .
साथ में थर्मामीटर भी लगाया .
मरीज को सही जगह आने का भरोसा दिलाया .
जाँच के लिए एक लम्बा सा पर्चा बनाया .
और फिर मरीज के पतिदेव को समझाया .
" इनकी समस्या गम्भीर हो सकती है .
जाँच की कमी से बीमारी बढ़ सकती है .
अगर सर्दी है तो डी० एल० सी ०, टी० एल ० सी ०
की जाँच करनी ही पड़ेगी .
जाँच नमूनों की रिपोर्ट मगानी ही पड़ेगी .
खांसी तो खतरनाक बीमारियों का लक्षण है .
ये बीमारी तो जड़ से ही गड़बड़ है .
इस लिए चेस्ट एक्स रे , मान्टूस टेस्ट ,
व् एलर्जी की रिपोर्ट लानी ही पड़ेगी .
रहा सवाल सर दर्द का ,
यह तो चक्कर है न्यूरो का .
स्पेंडलैटिस सर्वाइकल हो सकता है .
इसका पता तो सी ०  टी ० स्केन व्,
 ऍम ० आर ० आई ० से चलता है .
आपको ठीक करना मेरी मजबूरी है
इसलिए ये सारी जांचे जरूरी हैं .
कुछ दवाएं देता हूँ .
चार  दिन बाद बुलाता हूँ .
मरीज मेरे बिचारों से सहमत हो गया .
हजारों के कूरियर का रहमत हो गया .
चौथे दिन मरीज फिर आया .
खांसी जुकाम से निजात पाया .
डाक्टर सर मै तो ठीक हो गयी हूँ .
बीमारियों के डर से बेचैन हो गयी हूँ .
देखिये मेरी बिमारियों की ये रिपोर्ट .
दीजिये मुझे मानसिक सपोर्ट .
मैंने रिपोर्ट पर नज़रें दौडाई .
आड़ी तिरछी कर लाइट लगाई .
सारी की सारी रिपोर्ट ओ ० के ० निकल पड़ी .
महिला ख़ुशी से उछल पड़ी .
चिकित्सक का धंधा नहीं होता ठंढा .
क्योंकि सही इलाज का यही है फंडा.
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जब किसी नर्सिंग होम से मेरी काल आती है .
तो थोड़ी किस्मत बदल जाती है .
नर्सिंग होम का तो विचित्र धंधा है .
मरीज के पैसों पर हर तरफ फंदा है .
अगर देश में नार्मल डिलेवरी का औसत अस्सी प्रतिशत होता है .
तो नर्सिंग होम में सिजेरियन डिलेवरी का औसत
निन्न्यानबे प्रतिशत होता है .
अगर आपके हाथ पैरों की हड्डी टूट जाती है .
तोह पलास्टर छोड़ . आपरेशन की सलाह दी जाती है .
मरे हुए मरीज को भी एक दो दिन तक वेंटीलेटर पर रखते हैं .
इलाज के लिए घर वाले पैसे भरते हैं .
जब तक मरीज के बकाया धनराशी का भुगतान नहीं होता .
तब तक मरीज के घोषित मृत्यु का बयान नहीं होता .
जरुरत पड़ने पर हर फंदा झोंक देते हैं .
किसी मरघट के डोम की तरह लाशें भी रोक लेते हैं .
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नर्सिंग होम में इलाज करना स्टेटस सिम्बल होता है .
इस से तय मैरिज रिलेशन लेबल होता है .
जब कोई अल्प बेतन भोगी केन्द्रीय कर्मचारी .
उसे परेशान करती है कोई बीमारी .
सी ० जी ० एच० एस० का लाभ उठता है .
किसी महगे नर्सिंग होम में ,
भारती हो जाता है .
कर्मचारी का सामजिक स्तर बढ़ जाता है .
महागा इलाज समाज की नज़र में ,
चढ़ जाता है .
लौट क्र आने पर परिणाम अच्छे मिलते हैं .
बेटे की शादी के लिए बड़े घरों से ,
रिश्ते निकलते हैं .
इस तरह पैसे कमाने की,
 आदत बन जाती है .
हर मरीज से रुपये ऐठने की नीयत बन जाती है .
जब भी कोई गरीब माँ,
अपने बच्चे की जान बचाने के लिए गिड़गिडाती है .
तो सबसे पहले मेरी नज़रें उसके फटे आँचल के ,
सिक्कों पर ठहर जाती है.
बार बार मन में विचार आता है ,
हवन करने में तो हाथ जलता है .
अगर मैं इनकी ही सुनता रहा तो शायद ,
बहुत पिछड़   जाऊंगा .
कुछ दिनों बाद इनके जैसा बन जाऊंगा.
लोग बड़े बड़े घोटाले कर जाते हैं
इन्सान क्या जानवरों के चारे खा जाते हैं .
विदेशी बैंकों के धन से ,
कई पीढियां आबाद हो जातीं हैं .
युग तो भ्रष्टता का है ,
ईमानदारी हमेशा मर खाती है .
यहाँ अमीर और गरीब के मौत में अन्तेर होता है .
अमीर ए०सी ० वार्ड में ,
पेन किलर दवाओं के साथ मरता है.
वहीँ गरीब जनरल वार्ड में ,
दर्द से तड़प तड़प कर मरता है .
सब कुछ देखते देखते संवेदनाएं शून्य हो जातीं हैं .
पैसों के होड़ में आत्मा मर जाती है .
सारी की सारी भावनाएं बिखर जातीं हैं .
आज चिकित्सक का रूप बदल गया है .
वह भागवान के रूप से फिसल गया है .
किसी रोबोट मशीन की तरह ,
यंत्रवत होता जा रहा है .
रिमोट इसका ,
अमीरों के केन्द्र्वत होता जा  रहा है .
अब इसे नहीं दिखाई देतीं ,
मानवता ......... संस्कार .......राष्ट्र की संवेदनाएं .
नहीं सजो पाटा वह,
 नैतिकता की कल्पनाएँ .
भ्रष्ट हो चुके समाज का,
 एक शुभ चिन्तक हूँ .
तड़पती गिड़गिडाती ,
नैतिकता का निन्दक हूँ .
दम तोड़ती मानवता का भक्षक हूँ .
जी हाँ गौर से पहचान लो ......
मै एक चिकित्सक हूँ .
मैं एक चिकित्सक हूँ .


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