तीखी कलम से

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

आज का पंडित ,महा दलित हो गया है

आज का पंडित ,महा दलित हो गया है




भिक्षा के सहारे ,जिन्दगी की आस |
सदियों से उसका इतिहास |
कुछ मिल गया तो खाया ,
वरना भूखा ही सोया |
सदैव लक्ष्मी को दुत्कारा |
सरस्वती को पुकारा |
विद्या का पुजारी बन
जीवन बिताया |
विद्या का दान कर समाज को उठाया |
सात्विकता का पाठ पढाया |
नीति -अनीति का ज्ञान कराया |
भारतीय समाज को सभ्य बनाया |
नहीं बनना चाहा  ऐश्वर्य का प्रतीक |
विलासिता से नहीं कर सका प्रीति |
सर्वत्र जीवन मानव कल्याण में लगाता रहा |
वेद,पुराण ,ज्योतिष ,खगोल को
सजोता रहा |
वैज्ञानिकता को धर्म में पिरोता रहा |
पवित्रता की गंगा से सबको भिगोता रहा |
नहीं टूटा वह मुगलिया भायाक्रंतों से |
नहीं डिगा वह आपने सिद्धांतों से |
कभी दधीची तो कभी परशुराम बन
अनीति का दमन किया |
कभी मंगल तो कभी आजाद बन ,
गुलामी को दफ़न किया |
राष्ट्र हित में उसकी असंख्य कुर्बानियां |
भारतीय गौरव की अनगिनत निशानियाँ |
आखिर क्या दिया उसको इस देश ने ?
तुच्छ राजनीती के गंदे परिवेश ने |
आज वह मौन है |
अब उसकी सुनता ही कौन है |
अब उसका अस्तित्व खतरे में है |
जातीय संघर्ष के कचरे में है |
योग्यता के बाद भी अब वह अयोग्य है |
अपमान तिरष्कार व आभाव ही
उसका भोग्य है |
आज उसकी प्रतिभाएं कुंद हो रही हैं |
जीवन की आशाएं धुंध हो रहीं हैं |
भारतीय राजनीती की ओछी मानसिकता
की शिकार है |
गरीबी के दंस से ,
टूटता बिखरता उसका परिवार है |
दो वक्त की रोटी में बदहवास .....
पेट की आग में जलता अहसास......
बच्चों को पढ़ाना..|
अपने पैरों पर चलाना ...
कितना दूर हो गया है |
आरक्षण की तलवार से ,
सब कुछ चकना चूर हो गया है |
अब उसके बच्चे होटलों पर मिलते |
वे वहाँ कप प्लेट धुलते |
अब उसके घर की महिलाएं,
ब्यूटी पार्लर चलती हैं |
जिन्हें दलित कहते हैं ,
उनको सजातीं हैं |
अब वह भी शहर में रिक्शा चलाते मिलता है |
जिन्हें दलित कहते हैं ,
उनको वह ढोता है |
मजदूरी करके पाल रहा है पेट
उसके चरित्र का भी लग रहा है रेट |
ऐसे लोकतंत्र को बारम्बार धिक्कार है |
जहाँ योग्यता नहीं जाति आधार है |
आरक्षण
प्राकृतिक सिद्धांतो के बिरुद्ध है |
प्रकृति में
अयोग्यता का मार्ग अवरुद्ध है |
वैसाखी के सहारे राष्ट्र का विकास ,
एक कोरी कल्पना है |
टूट रहा लोकतंत्र का विश्वास ,
ये कैसी विडम्बना है |
हे भारतीय नेताओं !
अपने निहित स्वार्थों के खातिर |
सामाजिक समरसता को विषाक्त ,
कर ही दिया आखिर |
कब तक सेकोगे
जातिवाद की आग पर रोटियां ?
तुम्हारे मत -लोभ से,
देश टूट जायेगा |
वक्त तुम्हारी करतूतों पर ,
कालिख पोत जायेगा |
अब भी समय है ,
जागो और देश बचाओ |
अमूल्य प्रतिभाओं को पहचानो ,
और देश में सजाओ |
तुम्हारी करनी का परिणाम ,
परिलक्षित हो गया है |
सामाजिक विघटन
से वह विचलित हो गया है |
वह तुम्हारे देश की सम्पदा है ,
उसे डूबने से बचाओ |
उसकी योग्यता को सम्मान दिलाओ |
जाति आधारित आरक्षण को मिटाओ |
तुम्हारी छुद्रता से राष्ट्र कलंकित हो गया है |
हाँ यही सच है |
आज का पंडित महा दलित हो गया है ||
आज का पंडित महा दलित हो गया है ||

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही विचारपरक रचना.राजनीत में नीत के बजाय केवल अनीति ही रह गयी है ,

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  2. आरक्षण विशवृक्ष के चंगुल में गुणवान।
    वह ही अब अपमान है था जो तब प्रतिमान॥
    बड़ी सुन्दरता से कटुसत्य का निरूपण किया है आपने। आभार

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  3. BRAHMIN HAMESHA BRAHMIN HI RAHEGA.SAFED HANS PAR YADI KALA RANG PADE TO WAH KSHANIK HOTA HAI SASWAT NAHI ATAEB HUM NIRANTAR SE CHALI AA RAHI PARIPATI KO ANBARAT BANAE RAKHNE KA EK BAR PHIR SE SANKALP LE OR APNI YASH KO SABHALE RAHE. KALI NITIYAN JO MAHAJ CHAND LOGON KO KHUS KARANE MATRA KE LIYE LI JATI HAIN WO CHADAR SAMAY BITATE OR NITI BADALTE DHUMIL HO JAYENGI OR AAP AISE HI KHILKHILATE RAHENGE.

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  4. tripathi ji jaldi dua karo ki brahmin dalit ho jaye aur S.C ka reservation mile.

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