तीखी कलम से

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

नववर्ष के आगमन पर अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?

पिछले वर्ष मैंने की थी ,
मंगलमय वर्ष की कामना ।
पर ये कैसी विडम्बना !
वर्ष 2012 तुमसे क्या पूछना ?
लाख मिन्नतों के बाद भी तुमने ,
जरी रखा रंग बदलना ।
देश में  भ्रष्टाचार की बुलंदियों पर
तिरंगा लहरा  रहा है ।
देश का भ्रष्टाचारी,
अपनी सफलता पर इतरा रहा है ।
लोकपाल हो या काला  धन
मसला गरम है ,
पर संसद नरम है ।
एफ डी आई पर सांसदों का बिकना ,
आरक्षण की आग पर
फिर से रोटियों को सेकना ।
असंवैधानिक तुष्टिकरण ।
किसानों का मृत्यु वरण ।
कानून मंत्री का
कानून भक्षकों को संरक्षण ।
और जाते जाते ,
पूरे देश की आँखों में आंशू दे गये ।
भारत की स्मिता बन चुकी दामिनी को
साथ ले गये ।
सन 12 तुम दामिनी के दागदार निकले
अपराधियों के वफादार निकले
हे वर्ष 2013 !
पिछले वर्षों की तरह कहीं तुम भी तो नहीं
लाज शर्म घोल के पी लोगे ।
एक शक ......
कहीं तुम भी ,
दगाबाज तो नहीं निकलोगे  ?
अब मैं किस दिल से तुम्हारा स्वागत करूं ।
मै कैसे खुशियों की झोली भरूँ ।
गुजरे कुछ वर्षों से नववर्ष मंगलमय होने का
भरोसा टूटता जा रहा है ।
मानवता-संस्कार सब कुछ छूटता जा रहा है ।
हमारे प्रधानमंत्री फिर साल के अंत में बोलेंगे
" ठीक है "
न्याय  पर अन्याय की जीत है ।
इन बलात्कारियों  के परिवेश में
कहाँ मिलेगे मन के  मीत ?
सन 13 .....! 
तुम्हीं बताओ  ?
नववर्ष के आगमन पर
अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?
अब कौन लिखेगा मंगल गीत ???

                       नवीन

रविवार, 23 दिसंबर 2012

गज़ल

मरहम  के लिए अब कोई सरकार  नहीं है ।
मजदूर  को  एहसान  की  दरकार  नहीं  है ।।

गुम  हो रहीं हैं अब तो  सहादत की फाइलें ।
ज़माने को अब तो  उनका ऐतबार  नहीं है ।।

क्यूँ शौक से पढ़ते मेरे दिल की किताब को ।
कुछ तो करो  जनाब  ये  अख़बार  नहीं  है ।।

कश्ती  के डूबने का फ़िक्र क्यूँ हुआ उनको  ।
सूखी नदी  में जब  यहाँ  मजधार  नहीं  है ।।

बिखरी हुई है लाली जो  होठों पे  उनके आज ।
अब  वक्त  का  उन्हें  भी  इंतजा
र  नहीं  है ।।

सहमी हुई कली है क्यों भौरों की  नजर से ।

मतलब के लिए प्यार का बाजार   नहीं है ।।