तीखी कलम से

रविवार, 24 मार्च 2013

बे हिचक तुमने जब, बेवफा कह दिया


तेरी   तारीफ   में  उसने   क्या   कह  दिया ।
वह   तो  खामोश  सबकी  जुबां  कर  दिया ॥
मयकशी   की   भी   चर्चा   हुई  जब  कभी ।
तेरे    पैमाने   को ,  मयकदा    कह   दिया ॥



एक   उलझी   हुई   सी , कथा   पढ़   लिया ।
मन  के  सपनों की  सारी, व्यथा  पढ़ लिया ॥
उसकी  जज्बात  लिखने , कलम  जब चली ।
सोच  कर  कुछ  मुझे,  अन्यथा  कह  दिया ॥ 



जिक्र चिलमन की महफ़िल में क्यूं कर दिया ।
चाँद   को   बादलों   ने ,  छिपा   फिर  लिया ॥
दर्द    माँगा   था     मैंने ,   तेरे    प्यार   में ।
तूने   इजहार   में   क्यूँ ,   दवा   रख   दिया ॥



एक   मुद्दत   से   जलता ,  रहा   वह   दिया ।
रोशनी   से   मोहब्बत  , बयाँ    कर    दिया ॥
नूर   आँखों   का   भी  , आज   शरमा  गया ।
बे  हिचक   तुमने   जब, बेवफा  कह   दिया ॥



एक   सहमी  नजर   को,  हया   कह   दिया ।
मैंने  कातिल  को  अहले  फिजा  कह  दिया ॥
जुल्फे  लहरायीं  जब,  क़त्ल   की   चाह  में ।
मैंने  रुखसत  चमन  अलविदा   कह  दिया ॥

                              

         -नवीन मणि त्रिपाठी

सोमवार, 18 मार्च 2013

गीत

         गीत 
                                               - नवीन मणि त्रिपाठी 


गीत सजे निकले जुबान से ,
मधुमय होठ तुम्हारा है ।
एहसासों  से शब्द थिरकते ,
अरमानों की धारा है ।
मैं तो लुटा दूं जीवन अपना
देश प्रेम की चौखट पर ।
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?


मृत्यु वरण करते किसान हैं ,
भारत तेरी माटी पर ।
भ्रष्ट तंत्र का नव विधान है ।
मानवता की छाती पर ।
बीच सड़क पर चीर खीचते
इक अबला की भारत में ।
फिर भी मौन बने रहते हो ,
ये अपराध तुम्हारा है ॥
बलिदानों को क्या समझोगे
क्या ऐतबार तुम्हारा है ॥


अस्मत बिकती रोज यहाँ है
इज्जत की गलियारों में ।
लग जाते जीवन के मोल हैं
घोटालों के पालों में ।
आह निकलती है गरीब की
मौत की जिम्मेदारी लो ।
सारी दवा बेच खाते हो
कैसा पाप तुम्हारा है !!
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?

बृद्ध जनों की मर्यादा का
होता है उपहास यहाँ ।
आम आदमी के लुटने का
पाओगे आभास यहाँ ।
माँ के पेट में रोती कन्या
टूटी जीवन की आशा ।
नारी के सम्मान का झंडा ??
क्या ये राज तुम्हारा है ??
बलिदानों को तुम समझोगे ,
क्या एतबार तुम्हारा है ?