तीखी कलम से

बुधवार, 14 अगस्त 2013

ये तिरंगा झुके ना कभी देश का , ज्ञान का दीप घर मे जला लीजिये

डूब  जाये   ना  ईमान   का  हौसला ,भ्रष्टता   की   लहर से बचा  लीजिये |
खो ना जाए कहीं ये अमन की हवा ,अब  झरोखों से  परदे  हटा  लीजिये ||

मौत सस्ती है  दंगों  के बाजार मे , अर्थियाँ   उठ  रहीं  उनके   व्यापार  में |
मंदिरों  मे वही  मस्जिदों मे वही , देश   के  राग  मे  स्वर  मिला लीजिये ||

कट  रहे  सर  शहीदों  के शरहद पे अब ,जागना है जरूरी तो जागोगे कब |
एक हुंकार भर लो वतन के लिए ,कुछ सबक आज उनको सिखा दीजिये ||

आज  गंगा ने आँसू  को छलका दिया ,राह में
उसके तुमने  जहर  भर दिया |
आ ना जाए यहाँ  जलजला फिर कहीं ,उसकी पावन छटा को बढ़ा दीजिये ||

आज इंसानियत की नजर खो गई ,अब तो हैवानियत  की  निशा  छा गई |

आत्मा  दामिनी  की  सिहर  सी गई ,फिर  ना आए  घड़ी वो दुआ कीजिये |। 

जो जलाता था दीपक सदा ज्ञान का ,डस गया है तिमिर उसको अज्ञान का |
ये   तिरंगा  झुके  ना कभी देश का , ज्ञान  का  दीप  घर  मे  जला लीजिये ||


                                                                       नवीन मणि त्रिपाठी 

7 टिप्‍पणियां:

  1. सब समझें और देश बचायें,
    अपने घर से आगे आयें।

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  2. देशप्रेम से ओतप्रोत बहुत सुंदर गजल ,,,
    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.

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  3. नवीन शुभप्रभात
    स्वतन्त्रता दिवस की
    हार्दिक शुभकामनायें

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  4. बहुत बढ़िया.. स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

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  5. खुबसूरत अभिवयक्ति...... आपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ....

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  6. दीवाने तो कभी ये झंडा झुकने नहीं देगे ... हां आज कल के नेता इसका अपमान जरूर कर रहे हैं हर पल ... देश प्रेम से ओत-प्रोत, प्रभावी गज़ल है ...

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