मुक्तक
यहाँ उदगार के स्वर में ह्रदय करता है स्पंदन |
बहुत आभार के संग में है मन करता तुम्हे बंदन ||
आज निःशब्द हूँ स्वागत करुँ किस भाव से श्रीमन|
आगमन पर है शत शत आज निर्माणी में अभिनन्दन ||
आने से बहारें आ गयीं हैं आज उपवन में |
नजर बहकी है फूलों कि फिजा महकी है चन्दन में ||
दिलों में बस गए हैं आप अब जाना है बा मुश्किल |
सुमन श्रद्धा के अर्पित हैं आपके कोटि बंदन में ||
मोहब्बत की निशानी हो, यहाँ के हर दिलों की तुम |
रौशनी की कहानी हो , कार्य के मंजिलों की तुम ||
कि जलते दीप बन करके, बढ़ाया मान भारत का |
नाज बन के दिखे हो अब हमारे हौसलों के तुम ||
तुम्हारे हर तबस्सुम की यहाँ पर याद आएगी |
कमी तेरी यहाँ हर शख्स को इतना सताएगी ||
तुम हमसे दूर जाके भी ये वादा भूल न जाना |
चले आना प्रेम की डोर जब तुमको बुलाएगी ||
छंद
प्रेम प्रबलता की से शब्द मौन होते नहीं आगमन आपका प्रदीप बन जायेगा |
भावना का पुष्प गुच्छ स्वागत समर्पण श्रद्धा का सुमन भी प्रदीप बन जायेगा ||
निर्माणी कण कण उत्साह में विलीन ,जज्बा भी जीत का उम्मीद बन जायेगा |
आप जो पधारे आज निर्माणी द्वारे मेरे कोटि कोटि स्वागत में शीष झुक जाएगा ||
निर्माणी उन्नति विकास को निहारती है एक दीप उन्नति का आज भी जलाइए |
लक्ष्य उत्पादन बुलंदियों को पार करे हौसलों से स्वाभिमान देश का बढाइये ||
आयुध प्रतीक आज सभा में विराज रहे , संकल्प शंखनाद करके दिखाइये |
उनकी उम्मीद में भरोसे का भी पुष्प गूंथ ,स्वागत में आज एक माला पहनाइए ||