ग़ज़ल
चलो उनसे सलाम हो जाए ।
इस तरह इंतकाम हो जाए ।।
चाँद से डर था बेवफाई का ।
उसका किस्सा तमाम हो जाये ।।
बहुत लम्बी है दास्तां तेरी ।
कुछ अधूरा कलाम हो जाए ।।
बे वजह जिद है रूठ जाने की ।
अब तेरा इंतजाम हो जाए ।।
टूट के गिरना ही उसकी फितरत ।
बेवफा उसका नाम हो जाए ।।
बड़ी सहमी अदा तबस्सुम की ।
कत्ल की एक शाम हो जाए।।
नवीन
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2015) को "रह गई मन की मन मे" { चर्चा - 1937 } पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
"चलो उनसे सलाम हो जाए ।
जवाब देंहटाएंइस तरह इंतकाम हो जाए ।।"
.. बहुत सुन्दर!
लाजवाब, बहुत ही सुंदर ...
जवाब देंहटाएंbahut khoob ....
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