तीखी कलम से

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

कैसे कह दूं

"----****कैसे कह दूं ?****---"

मैंने देखा है  आज तुझे
नज़रे चुराते
और फिर
बड़ी अदा के साथ
नजरें मिलाते ।
मेरे प्यार का असर
तुझे खीच लाया था तेरी दहलीज तक ।
वो सावन की हरियाली जैसे
कपडे ।
आँखों में गहरा आकर्षण ।
किसी बालकनी से चलते
हुए नयन के तीर ।
और फिर शर्मा कर
पलकें झुका लेना ।
अद्भुद सौंदर्य ।
मौन आमन्त्रण ।
प्रतीक्षा है तुम्हे मेरे पहल की
मैं जानता हूँ प्रिये ।
तुम्हारे एहसासों को पहचानता हूँ प्रिये ।
तुम्हारी खामोश चाहतें
मुझे रोज एक नई जिंदगी दे जातीं है ।
तुम्हारे हृदय से निकली तरंगे
अब पहुचने लगी है मेरे पास ।
किसी सम्मोहन की भांति
मेरे अवचेतन मन पर
तुम्हारा ही तो अधिकार है ।
फिर भी तुम भी मौन हो ।
और मैं भी मौन हूँ ।
नहीं खुल पाते मेरे शब्द ।
सिर्फ आत्मीय मिलन ही तो है
दोनों के देह पर कब्जा तो किसी और का है ।
कैसे कह दूं .........??????
मुझे .......तुमसे .....प्यार.... है ।

             नवीन

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-08-2015) को "आया राखी का त्यौहार" (चर्चा अंक-2082) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक
    रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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