तीखी कलम से

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

ग़ज़ल

उजड़ जाएगी  ये बस्ती ख़ाक हो जाएगा  कसबा ।
तेरी जुल्फे अदा करके गयी दिल में बहुत बलबा ।।

बड़ी शिद्दत से तुमने पढ़ लिया मेरी ग़ज़ल लेकिन ।
तेरी  खामोशियो  की  दास्ताँ  से  है  कहर बरपा ।।

तुम्हारी  चाहतों  का  दर्द है लिखती  कलम मेरी  ।
तुम्हारी  याद  में मैं रात भर हूँ किस तरह तड़पा । ।

शेर  मेरे  पढ़े  तुमने  तसल्ली  हो  गयी  दिल  को ।
मुहब्बत  हो  मेरी पहली  तुम्हारा ख़ास है रुतबा ।।

परायी  हुश्न  हो पर  दिल  चुराने का हुनर  तुझमे  ।
तेरी  कातिल निगाहों  ने किया छोटा  मेरा रकबा ।।

जो दावत  थी  तेरी  झूठी  उसे  सच  मानता हूँ मैं ।
मिलूंगा मैं  सनम  तुझको जहाँ पर है तेरा कुनबा ।।

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