तीखी कलम से

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

ग़ज़ल

जवानी वक्त था  जालिम  तरस  जाते  थे  दीवाने ।
चाँद कह कर जले है रात दिन तुझ पे वो परवाने ।।

उम्र   पूरी  गुजारी  सिर्फ   तेरी   चाहतें  लिखकर ।
जेहन  में आज भी जिन्दा मिले जितने मुझे ताने ।।

शबाबो  की अदा  फिर जुल्फ लहराना बनी चर्चा ।
बेवफा  से  मेरी  नज़रें  लगी  थी  इश्क  फरमाने ।।

तौहीने  मुहब्बत का  खुदा ने  हक  दिया  तुझको ।
कातिलाना तस्सवुर में  लिखी तुम रोज अफ़साने ।।

हमारे  खत  को  न  पढ़ना फाड़कर  यूं जला देना।
जख्म भूला कहाँ मुझको लगी जब जुल्म को ढाने ।।

वक्त फिसला तेरी मुट्ठी से फिसली आशनाई सब ।
नहीं आते है अब  बादल तेरे आँगन  को बरसाने ।।

सनम  जब हुश्न ढल जाने  की  बारी आ गयी तेरी ।
फेर  कर  मुँह  गए  सारे  जो  तेरे  बिन  थे  बेगाने ।।

         - नवीन मणि त्रिपाठी

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