तीखी कलम से

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

कुछ तो है

----***ग़ज़ल***--- 

फिर   तिरंगे  में  सुनामी,.... कुछ तो है ।
देश   में  पलता  हरामी,....  कुछ तो है ।।

तुम   हुए  आज़ाद   बस   कहते   रहो ।
तेरी फितरत में गुलामी,....कुछ  तो  है ।।

 फिर  धुआं  दिखने  लगा   संसद  में है।
उसकी आदत में निजामी,....कुछ तो है।।

 मज़हबी साया में देखो हुश्न बेपर्दा हुआ ।
हो गयीं वह भी  किमामी,.....कुछ  तो है ।।

जिसकी  सत्ता  थी  नहीं   उसको  कबूल।
 दे  रहा  है  वो  सलामी ,....कुछ  तो  है ।।

पुख्ता   सबूतो   पर  मिली  फाँसी  उसे ।
क्यों  हुई   ये   ऐहतरामी,....कुछ तो है ।।

बापू - माँ  का   शक्ल  दागी  हो  गया है।
मैली   चादर   रामनामी ,....कुछ   तो  है ।।

है  खबर   शायद   इलेक्शन  हांरने   की।
देखिये    बद  इंतजामी,.... कुछ  तो  है ।।

   -- नवीन मणि त्रिपाठी

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