तीखी कलम से

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

हम शबे वस्ल में सिर्फ जलते रहे


उम्र  भर   कुछ   सवालात   चलते   रहे ।
हम  शबे  वस्ल   में   सिर्फ  जलते   रहे ।।

बेवफा  तुमने  कह   तो  दिया  फ़ख़्र  से।
रात  दिन  अश्क  आँखों में  ढलते  रहे ।।

जब  तेरी   शोख   नजरे  इनायत   हुई ।
तुम   मिलोगे  कभी  ख्वाब  पलते  रहे ।।

क्या  भरोसा  करू  तेरीे  जज्बात  का ।
तुम भी मौसम के माफिक बदलते  रहे ।।

फ़िक्र  बदनामियों   की   उन्हें  भी  रही ।
वह  नकाबों   में  घर  से  निकलते  रहे ।।

कुछ   तो   रुस्वाइयां  बर्फ   मानिंद  थीं ।
हसरतों   को   लिए  हम  पिघलते  रहे ।।

इक  तिजारत से दौलत  दफ़न  हो  गयी।
कीमत   ए   हुश्न  पर   हाथ  मलते  रहे ।।

ताल्लुक   मैकदे   की   हवाओं  से  था ।
वह    दुपट्टे   में   अपने  सम्भलते   रहे ।।

        --  नवीन मणि त्रिपाठी

1 टिप्पणी:

  1. जय मां हाटेशवरी....
    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 06/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है...
    इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...

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