तीखी कलम से

मंगलवार, 28 मार्च 2017

अइसे सीना उतान थोरै है

एक अवधी ग़ज़ल लिखने का प्रयास                 2122 1212 22

कोई   पक्का   मकान  थोरै   है ।
दिन दशा  कुछ ठिकान थोरै  है ।।

सिर्फ  कुर्सी  मा जान  है अटकी ।
ऊ  दलित  का   मुहान  थोरै  है ।।

ई वी ऍम में  कहाँ   घुसे   हाथी।
छोटा  मोटा   निशान  थोरै   है।।

रोज  घुड़की  है देत ऐटम  का ।
तुमसे   जनता   डेरान  थोरै  है ।।

लै लिहिस कर्ज पर नया टक्टर।
कौनो  गन्ना   बिकान  थोरै   है ।।

वोट खातिर पड़ा हैं चक्कर मा ।
हमरे  खातिर  हितान  थोरै   हैं ।।

रोज  दाउद  पकड़ि रहे तुम तो।
कौनो  घर  मा लुकान  थोरै  है।।

नोट  बन्दी  पे  है  बड़ा   हल्ला ।
एको    रुपया   हेरान  थोरै   है।।

है  कसाई   पे  अब  नज़र   टेढ़ी।
राह  तनिको   भुलान  थोरै   है ।।

अब  तो  सारा  हिसाब  हो  जाई ।
तुम से  अफसर  दबान  थोरै   है ।।

है  बड़े  काम  का  छोटका योगी।
अइसे   सीना   उतान   थोरै   है ।।

             --नवीन मणि त्रिपाठी

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