तीखी कलम से

बुधवार, 31 मई 2017

शायर हूँ यकीनन मेरी पहचान यही है

*221  1221  1221  122

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सबसे  न   बताओ   के  परेशान  यही  है ।
 शायर हूँ यकीनन  मेरी  पहचान यही है ।।

यूँ ही न् गले मिल तू जरा सोच  समझ ले ।
इस शह्र  के  हालात  पे  फरमान यही है ।।

कहने लगी है आज से मुझकोभी सरेआम ।
ठहरा है जो  मुद्दत से वो  मेहमान यही है ।।

बर्बाद गुलिस्तां को सितम गर ने किया जब।
लोगो  ने   कहा  प्यार  का  तूफ़ान  यही है ।।

अक्सर  ही  नकाबों  में छुपाते  हैं ये चेहरा ।
बैठा  जो  तेरे   हुस्न   पे   दरबान  यही  है ।।

लाती  हैं  हवाएं  मेरे  महबूब   की  खुशबू ।
शायद  मेरी  तक़दीर  में   बागान  यही   है।।

ठहरो  किसी दीवाने को मुजरिम न् बनाओ ।
मिलता  जो  मुहब्बत  वो  इंसान  यही  है ।।
         -- नवीन मणि त्रिपाठी

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरूवार (01-06-2017) को
    "देखो मेरा पागलपन" (चर्चा अंक-2637)
    पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर रचना
    आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

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