तीखी कलम से

गुरुवार, 13 जुलाई 2017

ग़ज़ल - हमारे इश्क़ की तहरीर

1222 1222 1222 1222
हमारे  इश्क की  तहरीर  गर मंजूर  हो  जाये ।

हमारे जख्म का  हर दर्द भी काफूर हो जाये ।।


दुपट्टे को हवा में यूं उड़ाकर क्या मिला तुझको ।

मुझे डर है  न दीवाना  कहीं  मशहूर  हो जाये ।।


अना के साथ उसके हुस्न की होती नुमाइश है ।

कहीं ऐसा न्  हो  तारीफ से  मगरूर हो जाये ।।


मुहब्बत रोज जिंदाबाद हो अहले चमन में अब ।

तुम्हारे शहर का भी  कुछ  नया दस्तूर हो जाये ।।


मुकम्मल हो तबस्सुम का नज़ारा इन फिजाओं में ।

कोई  सूखा  हुआ चेहरा भी अब अंगूर  हो  जाये ।।


तुम्हारी इस तरक्की से बहुत  डरने  लगा  है वो ।

 न हक से  बेदखल  कोई  यहां  मजदूर हो जाए ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें