तीखी कलम से

शनिवार, 29 जुलाई 2017

तेरी आँखों मे

2122  1212  1122  22

है   कोई   तिश्नगी  जरूर   तेरी  आँखों   में |
मीठे   एहसास  का  सरूर  तेरी  आँखों  में ||

जब भी देखा गया ये अक्स किसी दर्पण में ।
बे  अदब  आ  गया , गुरूर   तेरी  आँखों में ||

ख़ास मुश्किल के बाद ही तेरे दर तक पहुँचा ।
कुछ  उमीदें  दिखीं  हैं  दूर  तेरी  आँखों   में ।।

मैं तो  हाज़िर  था  तेरीे एक नज़र पर  साकी ।
बेसबब   क्यो  हुआ  फितूर  तेरी  आँखों  में ।।

जाम छलके नहीं  है आज तलकभी तुझसे ।
है   बड़ा   कीमती   शऊूर   तेरी  आँखों  में ||

मंजिलो की तलाश में ये भटकती  ख्वाहिश ।
देख   ली  जन्नतों  की  हूर   तेरी  आँखों  में ||

हार   बैठे  थे   जिंदगी  के  अंधेरों   से   हम।
मिल  गया  जिंदगी  का  नूर तेरी आँखों  में ||

हो  के  बेचैन  जब  मैं  तुझको  भुलाना चाहा |
फिर दिखा   है  मेरा   कसूर   तेरी  आँखों  में ||

                          नवीन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें