तीखी कलम से

बुधवार, 12 जुलाई 2017

ग़ज़ल - हाकिमों से मशबरा हो जाएगा

2122 2122 212 

वह   हमारा   आइना   हो   जाएगा ।
सच कहूँ दिल का खुदा हो जाएगा ।।

हैं   विचाराधीन  सारे   जुर्म   क्यों ।
फिर इलेक्शन में खड़ा हो जाएगा ।।

फैसले  होंगे उसी के हक़  में अब ।
हाकिमों से  मशबरा  हो  जाएगा ।।

इस सियासत में कोई जल्लाद भी ।
जिंदगी  का  रहनुमा  हो  जाएगा ।।

देखना  तुम  भी  इसी  बाजार  में ।
सच भी कोई मकबरा हो जाएगा ।।

फिर कहर ढाने लगा है वह शबाब ।
हुस्न पर  कोई  फ़ना  हो  जाएगा ।।

शरबती आंखों की हरकत देख कर ।
यह मुसाफ़िर गमज़दा हो जाएगा ।।

रिंद  चर्चा   कर   रहे   हैं  आपकी ।
आपका  घर  मैकदा  हो  जाएगा ।।

चन्द  लम्हा  ही  सही पर एक दिन ।
तू   हमारा   हौसला  हो   जाएगा ।।

बेवफा  पर  कर लिया मैंने यकीन ।
क्या खबर थी बावफ़ा हो जाएगा ।।

            नवीन मणि त्रिपाठी 
            मौलिक अप्रकाशित 
               कॉपी राइट

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-07-2017) को "झूल रही हैं ममता-माया" (चर्चा अंक-2666) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-07-2017) को "झूल रही हैं ममता-माया" (चर्चा अंक-2666) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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