तीखी कलम से

गुरुवार, 12 अक्टूबर 2017

ग़ज़ल - वफ़ा के साथ यकीनन है वास्ता मेरा

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अलग  है  बात  रखा नाम  बेवफा  मेरा ।
वफ़ा  के  साथ  यकीनन है वास्ता मेरा ।।

मेरे  गुनाह  का  चर्चा  है  शह्र  में काफी ।
तमाम   लोग  सुनाते  हैं   वाक्या   मेरा ।।

नज़र नज़र से मिली और होश खो बैठा ।
उसे भी याद है उल्फत का हादसा मेरा ।।

वो आसुओं से भिगोते ही जा रहे दामन ।
पढा जो खत है अभी,था वही लिखा मेरा ।

फ़िजा पेआज रकीबों का हो गया पहरा ।
बढ़ा  रही  हैं  हवाएं  भी  फ़ासला मेरा ।।

गरीब हूँ मैं शिकायतभी क्या करूँ उनकी ।
लड़ेगा  कौन रियासत  से मुकद्दमा मेरा ।।

अदालतों से मुहब्बत की बात मत कीजै ।
मेरे  ज़मीर   से  होगा  ये  फैसला  मेरा ।।

ये दिल सभाल के रखना,मेरीअमानत है ।
करेंगे  याद  कभी आप  फलसफा मेरा ।।

ज़माना  ढूढ  रहा  है  तेरी  निशानी को ।
कफ़न उठा के न चेहरा कहीं दिखा मेरा ।।

             --नवीन मणि त्रिपाठी 
            मौलिक अप्रकाशित

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