तीखी कलम से

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

निशानियां वो प्यार की मिटा गए

1212  1212  1212 
जगी  थीं  जो  भी  हसरतें, सुला  गए ।
निशानियाँ  वो   प्यार  की  मिटा  गए।।

उन्हें  था   तीरगी  से प्यार  क्या बहुत ।
उम्मीद का  चिराग  तक  बुझा   गए ।।

पता   चला   न, सर्द  कब  हुई   हवा।
ठिठुर  ठिठुर  के  रात  हम बिता गए ।।

लिखा  हुआ  था  जो  मेरे  नसीब में ।
रकीब  थे   जो  फैसले   सुना   गए ।।

नज़र  पड़ी  न  आसुओं  पे  आपकी ।
जो  मुस्कुरा  के  मेरा  दिल दुखा गये ।।

न   जाने  कहकशॉ   से  टूटकर   कई ।
सितारे  क्यों  ज़मीं  पे  आज  आ गए ।।

गुलों  के  हाल  पे  कली  जो थी दुखी ।
उसी   की   लोग  कीमतें   लगा   गए ।।

      --नवीन मणि त्रिपाठी

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