तीखी कलम से

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

ग़ज़ल -मिल गई नई नई

एक छोटी बह्र की ग़ज़ल 

212 1212 
मिल   गई   नई   नई ।
हुस्न  की  कोई  परी ।।

झुक  गई  नजर  वहीं।
जब नज़र कभी मिली।।

देखकर   उसे    यहां ।
खिल उठी कली कली ।

हिज्र  की थी रात वो  ।
लौ रही  बुझी  बुझी ।।

खा  गया मैं  रोटियां ।
बिन तेरे जली जली ।।

कुछ तो बात है जो वो।
रह  रही   कटी   कटी।।

बात  कुछ  छुपी नहीं ।
चल रही  गली  गली ।।

याद  है  अभी  तलक ।
जुल्फ थी खुली खुली।।

चूड़ियां  खनक उठीं ।
आपकी   हरी  हरी ।।

चाहतों   के  दौर  में ।
आशिकी पली बढ़ी ।।

कुछ पता न चल सका ।
दिल से कब घुली मिली।।

हार  प्रेम   का  बना ।
जुड़ गई कड़ी कड़ी ।।

वो    निहारती  मुझे ।
राह  में  खड़ी  खड़ी ।।

      नवीन मणि त्रिपाठी 
       मौलिक अप्रकाशित

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