तीखी कलम से

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

ग़ज़ल -तेरी आँखों में अभी तक है अदावत बाकी

2122 1122 1122 22
तेरी आँखों में अभी तक है अदावत बाकी ।
है तेरे पास बहुत आज भी तुहमत बाकी ।।

इस तरह घूर के देखो न  मुझे आप यहाँ ।
आपकी दिल पे अभी तक है हुकूमत बाकी ।।

तोड़ सकता हूँ मुहब्बत की ये दीवार मगर।
मेरे किरदार में शायद है शराफत बाकी ।।

ऐ मुहब्बत तेरे इल्जाम पे क्या क्या न सहा ।
बच गई कितनी अभी और फ़ज़ीहत बाकी ।।

मुस्कुरा कर वो गले मिल रहा है फिर मुझसे ।
कुछ तो होगी ही कोई खास ज़रूरत बाकी ।।

बात होती ही रही आपकी शब भर उनसे ।
रह गई कैसे भला और शिकायत बाकी ।।

वो मुलाकात पे बैठा है लगा कर  पहरा । 
तेरे दरबार में कुछ रह गई रिश्वत बाकी ।।

कौन कहता है वो मासूम बहुत है यारों ।
उसकी फितरत में बला की है शरारत बाकी ।।

इश्क़ फरमाए भला कौन हिमाकत करके ।
आप रखते हैं कहाँ गैर की इज़्ज़त बाकी ।

मेरे साकी तू अभी और चला दौर यहाँ ।
पास मेरे है अभी और भी दौलत बाकी ।।
             --- नवीन मणि त्रिपाठी

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