तीखी कलम से

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

फँसते गए जो लोग मुहब्बत के जाल में

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डूबा   मिला   है  आज   वो   गहरे   खयाल   में ।
जिसको  सुकून  मिलता  है  उलझे   सवाल  में ।।

बरबादियों    का   जश्न   मनाते   रहे    वो   खूब ।
फंसते  गए   जो  लोग   मुहब्बत   के  जाल   में ।।

मिलना था हिज्र मिल गया शिकवा खुदा से क्या ।
रहते  मियां  हैं  आप भी  अब  क्यों  मलाल  में ।।

करता   है   ऐश   कोई    बड़े    धूम   धाम  से ।
डाका  पड़ा  है  आज  यहां   फिर   रिसाल  में ।।

शेयर   गिरा  धड़ाम   से   सदमा   लगा   बहुत।
जिसने  लिया  था  माल  को  बढ़ते  उछाल में ।।

पोंछा था अश्क़  आप का उस दिन के बाद से ।
खुशबू    बसी  है  आपकी   मेरी   रुमाल  में ।।

कुछ दिन से था सनम के जो पीछे पड़ा हुआ ।
शायद  वो   रंग   आज  लगाएगा  गाल  में ।।

माना  मुहब्बतों  का   है  ये   जश्न   आपका ।
जुड़ता  नहीं  है  दिल  यहां  गहरे  गुलाल में ।।

        -- नवीन मणि त्रिपाठी 
        मौलिक अप्रकाशित

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