तीखी कलम से

गुरुवार, 10 मई 2018

गर हो सके तो होश में आने की बात कर

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बेबस  पे   और   जुल्म  न  ढाने   की  बात  कर।
गर  हो  सके  तो  होश  में  आने  की  बात कर ।।

क्या  ढूढ़ता  है  अब   तलक  उजड़े   दयार  में ।
बेघर  हुए   हैं  लोग   बसाने   की   बात   कर ।।

खुदगर्ज   हो   गया   है  यहां  आदमी   बहुत ।
दिल से कभी तो  हाथ मिलाने की बात  कर ।।

मुश्किल से दिल मिले हैं बड़ी मिन्नतों के बाद ।
जब हो गया है प्यार निभाने  की  बात  कर ।।

यूँ  ही  बहक  गये  थे  कदम  बेखुदी  में  यार ।
इल्जाम  मेरे   सर  से  हटाने  की   बात  कर ।।

मैंने  भी  आज  देख   ली  दरिया  दिली  तेरी ।
अब  तो  न  और  पीने  पिलाने  की बात कर ।।

मुद्दत  से   हँस   रहा  मेरी  मजबूरियों   पे  तू ।
कुछ  तो  मेरा  गुनाह  बताने  की  बात  कर ।।

गिरता रहे क्यों बारहा नजरों से कोई शख्स ।
शिकवे शिकायतों को मिटाने की बात कर ।।

क्यूँ  रट  लगाये  बैठा है बस  एक  बात  पर ।
तू  भी  कभी  कभार ज़माने  की बात कर ।।

        ---नवीन मणि त्रिपाठी
          मौलिक अप्रकाशित

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