तीखी कलम से

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

होता कहीं तलाक़ हलाला करे कोई

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इन्साफ   का   हिसाब  लगाया   करे   कोई।
होता   कहीं   तलाक़  हलाला   करे   कोई।।

उनको तो अपने वोट से मतलब था दोस्तों ।
जिन्दा  रखे  कोई  भी या  मारा  करे  कोई।।

मजहब को नोच नोच के बाबा वो खा गया ।
बगुला  भगत  के  भेष  में धोका करे कोई ।।

लूटी  गई  हैं  ख़ूब  गरीबों  की  झोलियाँ ।
हम  से  न दूर  और  निवाला  करे   कोई ।।

सत्ता  में  बैठ  कर  वो बहुत माल खा रहा ।
यह  बात भी कहीं तो  उछाला  करे  कोई ।।

आ  जाइये   हुजूर  जरा  अब  ज़मीन  पर ।
कब तक ज़मीं से चाँद निहारा करे कोई ।।

ख़ुशियाँ  हज़ार  लौट  के  आ जायेंगीं ज़रूर ।
थोड़ा  सा  बस्तियों  में  उजाला करे   कोई ।।

मंदिर में सर झुकाएं या मस्ज़िद में सज़दा हो ।
लेकिन ख़ुदा को दिल में भी ढूढा करे कोई ।।

इतना भी मत सहो कि सितम दिलही तोड़ दे ।
तुमको   यतीम   जान  सताया   करे   कोई ।।

इजहारे  इश्क़  आप  नही  कीजिये  जनाब ।
इस  उम्र   में  न  साथ   गुजारा  करे  कोई ।।

वो  मैकदे  को   पी  के  लियाकत   दिखाएंगे ।
बस  मुफ्त  में  ही  जाम  पिलाया करे कोई ।।

बूढा   हुआ   है  बाप  ज़रा  शर्म   तो  करो ।
कब तक तुम्हारा  बोझ  उठाया  करे  कोई ।।

        नवीन मणि त्रिपाठी

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