तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

नए हालात पढ़ पाए नहीं जय

1222 1222 122
नए  हालात  पढ़ पाए  नहीं  क्या ।
अभी तुम होश में आए नहीं क्या ।।

उठीं  हैं  उगलियां  इंसाफ ख़ातिर ।
तुम्हारे  ख़ाब  मुरझाए नहीं  क्या ।।

सुना  उन्नीस  में  तुम जा  रहे  हो ।
तुम्हें सब लोग समझाए नहीं क्या ।।

किये थे  पास तुमने जो  विधेयक ।
तुम्हारे  काम  वो आए  नहीं क्या ।।

जला सकती है साहब आह  मेरी ।
कहीं  तालाब खुदवाए नहीं क्या ।।

है  टेबल थप थपाना  याद मुझको ।
अभी तक आप शरमाए नहीं क्या ।।

यूँ  हक़  का  द्रौपदी सा चीर खींचे ।
तरस संसद में कुछ खाये नहीं क्या।।

दुशाशन  की  अभी  है  जांघ  टूटी ।
उन्हें  अंजाम दिखलाए  नहीं क्या ।।

यहां  चाणक्य  के  बंशज  बहुत हैं ।
वो मट्ठा जड़ में डलवाये नहीं क्या ।।

मिटाए  जा  रहे  सदियों से हम तो ।
हमें  तुम  भी मिटा  पाए नहीं क्या ।।

       -- डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी 
            मौलिक अप्रकाशित

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