तीखी कलम से

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

ग़ज़ल

221 1221 1221 212
गर हो सके तो  मुल्क  पे अहसान  कीजिये ।।
अब  और  न  हिन्दू  न  मुसलमान कीजिये ।।

भगवान  को  भी  बांट   रहे  आप जात में ।
कितना  गिरे  हैं  सोच  के अनुमान कीजिये ।।

मत रोटियों को सेंकिए  नफरत की आग पर ।
अम्नो  सुकूँ  के  वास्ते  फ़रमान कीजिये ।।

अब रोजियों के नाम भी हो जाए इंतजाम ।
कुछ तो किसी की राह को आसान कीजिये ।।

अपने ही उसूलों को मिटाने लगे हैं अब ।
कुर्सी के लिए आप न विषपान कीजिये ।।

ये फिक्र हमें भी है कि आबाद हो चमन ।
पैदा न वतन में कोई तूफ़ान कीजिये ।।

क़ातिल बना के छोड़ दिया आपने हुजूऱ ।
इंसान की औलाद को इंसान कीजिये ।।

जुड़ता कहाँ है दिल ये कभी टूटने के बाद ।
मुझको  न अभी  और  परेशान कीजिये ।।

उम्मीद मुझे कुछ नहीं है आप से जनाब ।
हक जो मेरा था शौक से कुर्बान कीजिये ।।

बदलेगी हुकूमत भी ज़माने के साथ साथ ।
छोटा न अभी आप ये अरमान कीजिये ।।

उनको जमी पे लाने का है वक्त आ गया ।
अब फैसलों पे आप भी मतदान कीजिये ।।

      ---नवीन मणि त्रिपाठी

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