तीखी कलम से

शुक्रवार, 7 जून 2019

उसकी फ़ितरत शराब की सी है

यह  ख़बर  इज़्तिराब   की  सी  है ।
बात  जब   इंकलाब  की  सी  है ।।

वह  बगावत  पे  आज   उतरेगा ।
उसकी  आदत  नवाब  की  सी है ।।

हम सफ़र  ढूढना बहुत मुश्किल ।
सोच जब  इंतखाब  की  सी  है ।।

देखकर   जिसको   बेख़ुदी   में  हूँ ।
उसकी  फ़ितरत शराब की सी है ।।

आ  रहे   रात  में   सनम  शायद ।
रोशनी  आफ़ताब   की  सी  है ।।

रोज  पढ़ता हूँ उसको  शिद्द्त  से ।
वो जो मेरी  किताब  की  सी  है ।।

उसकी  ख़ुश्बू  बता रही  मुझको ।
पंखुरी   वह  गुलाब  की   सी  है ।।

हिज्र  में  अश्क़  इस  तरह  बहते ।
धार कुछ तो "चिनाब" की  सी है ।।

कुछ तो होगी अना की फितरत भी ।
जो  ग़ज़ल  महताब   की   सी  है ।।

उसके  चहरे   से  हट  गई   देखो ।
ओढ़नी  जो   नक़ाब  की  सी  है ।।

        डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
         मौलिक अप्रकाशित

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