तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

रात भर यादें सताएं तो ग़ज़ल होती है

2122 1122 1122 22

दिल को छू जाएं अदाएं तो  ग़ज़ल होती  है ।
रात  भर  यादें  सताएं  तो  ग़ज़ल होती  है ।।

हुस्न का जलवा दिखाएं तो ग़ज़ल होती है ।
रुख़  से  पर्दा  वो उठाएं तो ग़ज़ल होती है ।।

दर्दो गम दे  के  न  अशआर  मिलेंगे  साहब ।
रोते  इंसा  को  हंसाएं  तो  ग़ज़ल होती है ।।

रब की मस्जिद में इबादत तो मैं भी कर लूंगा ।
आप मंदिर में जो आएं तो ग़ज़ल  होती  है ।।

इक मुलाकात का करके वो इशारा हम से ।
और नज़रों  को  चुराएं  तो  ग़ज़ल होती  है ।।

बेख़ुदी  इतनी  गुज़र  जाए हदों  से  उनकी ।
वो  दरीचों  से  बुलाएं  तो  ग़ज़ल  होती है ।।

राजे उल्फ़त पे लगाकर कोई पर्दा  वो जब ।
बारहा  इश्क़  छुपाएं  तो  ग़ज़ल  होती  है ।।

दर्द ज़ाहिर  न  हो  देखे न ज़माना हम को ।
अश्क़ आँखों में सुखाएं तो ग़ज़ल होती है ।।

किसी मुफ़्लिश की गरीबी का सितम सुनकर हम ।
सुब्ह तक  चैन गंवाएं  तो  ग़ज़ल  होती  है ।।

तेरी  रानाइयों    का   यार  तसव्वुर   करके ।
लफ्ज़ होटों पे आ जाएं तो ग़ज़ल होती है ।।

बह्र व रुक्न  रदीफ़ेन या  क्वाफ़ी ही नहीं ।
आप मफ़हूम निभाएं तो ग़ज़ल  होती  है ।।

         - नवीन मणि त्रिपाठी

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