तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

अच्छे दिनों का साथ दुआ में नहीं मिला

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कोई दरख़्त खुश तो फ़ज़ा में नहीं मिला ।।
फिर भी सितम का जिक्र सदा में नहीं मिला ।। 

उम्मीद क्यूँ लगाएं सियासत से आप जब ।
अच्छे दिनों का साथ दुआ में नहीं मिला ।।

नफ़रत की राजनीति बहुत हो चुकी हुजूर ।
अम्नो शुकूँ किसी को जफ़ा में नहीं मिला ।।

दहशत है लाइलाज नहीं मुल्क में मगर ।
बेफ़िक्र  मन रहे ये शिफ़ा में नहीं मिला ।।

यूँ तो पुकारा उसने कई बार है हमें ।
चाहत का इक असर भी निदा में नहीं मिला ।।

चलकर कदम ये रुक गए उल्फ़त की राह पर ।
अहसासे इश्क़ तेरी अदा में नहीं मिला ।।

ऐ बेवफ़ा न पूछ मेरा हाले दिल अभी ।
मुझको यकीं भी तेरी रज़ा में नहीं मिला ।।

बेमौत मर रहे हैं वो मज़हब के नाम पर ।
मौला तेरा  सवाब  दया में नहीं मिला ।।
(इस शेर में तनाफुर जानबूझ कर लिखा है )

अब बन्द हो फ़साद ख़ुदा के सवाल पर ।
जब रब किसी को यार क़ज़ा में नहीं मिला ।।

मत ढूढिये उन्हें जो जहाँ से चले गए ।
उनका कोई सुराग़ हवा में नहीं मिला ।।

इस बात पे बदल गये मुंसिफ़ के फैसले ।
क़ातिल का जब सबूत हया में नहीं मिला ।।

     --नवीन मणि त्रिपाठी

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