तीखी कलम से

रविवार, 15 मार्च 2020

कोई मुखिया निरुत्तर है अभी तक

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सवालों  का तो मंजर है अभी   तक l
कोई  मुखिया निरुत्तर है अभी तक ।।

उसे  इल्जाम का  डर  है अभी तक ।
कहीं सच्चा सुख़नवर है अभी तक ।।

ग़रीबी   और   बढ़ती   जा   रही  है ।
यहाँ  आबाद अंतर  है अभी  तक ।।

वहाँ  भी   देखिए  साहब  दिवाली ।
जहां  इंसान  बेघर  है अभी  तक ।।

वतन  को छोड़, ढूढो काम तुम भी ।
यहां का  हाल बदतर है अभी तक ।।

ऐ बादल तू बरस आकर किसी दिन ।
जमीं यह भी तो बंजर है अभी तक ।।

न जाने  कितनी  नदियां  हैं समाईं ।
मगर प्यासा समंदर है अभी  तक ।।

कटेंगे वो शज़र इस मुल्क में फिर ।
सुकूँ जिनसे  मयस्सर है अभी तक ।।

लुटेगा देश  कुछ दिन और शायद ।
तेरे हाथों  में खंजर  है अभी तक ।।

सिसकती भूख से , वो  बस्तियां हैं ।
वतन  का ये  मुकद्दर है अभी तक ।।

नया  कुछ  भी  नहीं  पाया  हूँ यारो ।
यहां भगवा में खद्दर है अभी तक ।।

     -- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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