तीखी कलम से

सोमवार, 21 मार्च 2022

कहो मत हुस्न का जलवा नहीं है

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नज़र  से अक्स  वो  हटता  नहीं  है ।

कहो मत हुस्न का  जलवा  नहीं है।।


गुले आरिज़ पे है काला सा तिल जो ।

सुकूँ  के   वास्ते   अच्छा  नहीं   है ।।


मनाए   दिल   हमारा   ईद  कैसे ।

क़मर  तो बाम पर उतरा नहीं  है ।।


बहाने  करके  वादे  से  मुकरना ।

मुहब्बत  का सही  लहज़ा  नहीं है ।।


मिला था जख़्म तेरे इश्क  में  जो ।

दवा  के  बाद भी भरता  नहीं  है ।।


ख़यालों  में  वो  आ  जाता  है अक्सर ।

तसव्वुर  पर  कोई  पहरा  नहीं  है ।।


करें हम क्या यकीं उस बेवफा पर ।

जुबाँ  पे  जो  कभी  ठहरा  नहीं  है ।।


ख़ुदा की  हो न  गर मर्ज़ी तो  यारों ।

कोई  पत्ता  यहां  हिलता नहीं है ।।


ऐ तूफाँ देख अपनी  हैसियत  तू ।

चमन  आबाद  है  सहरा  नहीं   है ।।


सजा  ए  हिज़्र  का  है  ख़ैर मक़दम ।

हमें   महबूब   से  शिकवा  नहीं   है ।।


जो  बीनाई   में  मंजर  आ   रहे  हैं ।

उन्हीं पर  आजकल चर्चा  नहीं है ।।

      -नवीन

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