तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

जो मिला है दर्द तुझसे वो कलाम तक न पहुंचे

 "इस्लाह ए सुख़न " 

(तरही मुशाइरः  से हासिल ग़ज़ल )

1121 2122 1121 2122


तेरे इश्क़ की कहानी यूँ अवाम तक न पहुंचे ।।

जो मिला है दर्द तुझसे वो कलाम तक न पहुंचे ।।1


जो करेगा बज़्म रोशन वो क़मर मुझे है प्यारा ।

वो है चाँद  ग़ैर  का जो मेरे बाम तक न पहुँचे ।।2


मुझे डर नहीं है मय से मुझे डर है तिश्नगी का ।

मेरा हाथ मैक़दे में कहीं जाम तक न पहुंचे ।।3


है रक़ीब यह ज़माना , ज़रा बोल तू सँभल के ।

ये मुहब्बतों की चर्चा , तेरे नाम तक न पहुँचे ।।4


ये ख़ुदा की आरजू थी या ख़राब ही थी किस्मत ।

मेरे ख़त वो लौट आए ,जो मुकाम तक न पहुँचे ।।5


तुझे जाना है तो जा पर , नहीं दूर जा तू इतना ।

तेरे हुस्न को हमारा ये सलाम तक न पहुंचे ।।6


न रुकीं ये ख्वाहिशें ही न मिली ही कोई मंज़िल ।

ये है सिलसिला ए चाहत जो क़याम तक न पहुँचे ।।7


        -- नवीन मणि त्रिपाठी

पेंटिग चित्र - राजा रवि वर्मा 

साभार- गूगल

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