तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

हाले दिल तन्हाइयों में उसने पूछा है कहाँ

 2122 2122 2122 212 


हाले  दिल  तन्हाइयों  में  उसने  पूछा  है  कहाँ ।

वक्त  के  इस दौर में  कोई  किसी  का  है कहाँ ।। 1


जिस दरीचे से था देखा इक ज़माना तक हिलाल।

अब  वहीं से  देखता हूँ चाँद  ढलता है कहाँ ।।2


चाहतें ही खींच लाईं इश्क़ की दहलीज़ तक ।

दरमियाँ  उनके हमारे  और  रिश्ता  है  कहाँ ।। 3


शोखियां देंगी अना को दावतें इक दिन हुजूर ।

आइने  के  सामने  वो  हुस्न आया  है  कहाँ ।।4


नोंच लेता है  सुकूनो  चैन  क्यूँ  मतलब परस्त ।

बेख़ुदी  में  आदमी  अब  जीने  देता  हैं कहाँ ।।5


रहगुज़र पर गुल बिछा कर मुन्तज़िर है पारिजात।

मेरी किस्मत में उधर से अब  गुज़रना है कहाँ ।।6


गर  शिफ़ा  है तो बताओ  ज़िंदगी  के वास्ते ।

ये  न  पूछो  दिल हमारा इतना  टूटा है कहाँ ।।7


           -डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

शब्दार्थ

हिलाल - पहले दिन का चांद

शोखियां - सौंदर्य

अना - अहं

रहगुज़र - पथ

पारिजात - एक प्रकार के पुष्प के पौधे का नाम 

शिफ़ा - दवा

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