तीखी कलम से

मंगलवार, 22 मार्च 2022

होली में

 गुलाबी आरिज़ों  पर  रंग  की बौछार  होली  में ।

सनम का  कीजिये  साहब ज़रा दीदार होली में ।।


बनी है ख़ास ठंढाई मिलाकर भंग की गोली ।

नहीं सुनना है कोई आपका इनकार होली में ।।


कहीं भीगी है चूनर तो कहीं धोती हुई गीली ।

हुए हैं ख़्वाब रंगों के सभी साकार होली में ।।


चुनावों का ये मंज़र  वोट पे पहरा दिखा ढीला।

नहीं दिखती हमें अब होश में सरकार होली में ।।


है चलना अम्न की राहों पे हिंदुस्तान को यारो ।

गिरा दें हर बड़ी दीवार को इस बार होली में ।।


चमन जितना ये हिन्दू का है उतना ही मुसलमाँ का।

करो अब बन्द नफ़रत का नया व्यापार होली में ।।


तकाज़ा है वतन का ये मुहब्बत आम हो जाये ।

दिलों में रह न जाये अब कहीं भी ख़्वार होली में ।।


    आरिज़ों-- गालों


        -- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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