तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

महिला आरक्षण

महिला आरक्षण


वह प्रतीक है,
किसी सभ्य समाज की .
वह पूजनीया है ,
भारतीयों के ताज की .
अर्धांग है,
भारतीय पुरषतत्व की .
शशांक है ,
मानवीय ममत्त्व की .
सबने देखा उसे ,
अन्तरिक्ष की सैर करते .
वायु यान उड़ाते जलयान चलाते.
गोलियां बरसाते देश पर कुर्बान होते .
हिंदुस्तान की बागडोर सँभालते .
सब कुछ बेहतर करने की क्षमता है .
फिर भी पुरुष प्रधान मानसिकता ,
चिल्ला चिल्ला कर कहती है ,
नारी का पुरषों से भला क्या समता है ?
* * * * * *

युगों युगों तक नारी को ,
कई तह पर्दों में लपेटा गया .
आपने स्वार्थ के लिए लोगों को परोसा गया .
उपभोग की बस्तु की उपमा दी गयी .
तो कहीं शोषण के मानचित्रों में .
अलंकृत की गयी .
धर्म के आडम्बर में ,
कहीं देवी तो ,तो कहीं माँ तो कहीं
बहन का सम्मान मिला .
यह सारा कपोल कल्पित कमल ,
खोखली सामाजिकता के आसपास ही खिला .
वर्षों से दबाया गया नारी जीवन को ,
शायद ...............
अब वे नहीं सहेंगी .
दृढ़ हो रहीं हैं भारतीय नारियां .
महिला आरक्षण ले के रहेंगीं .

* * * * * *

आज एक नर्सिंग होम में .
एक महिला आयी .
खुद को एक महिला डाक्टर को दिखाई .
डाक्टर मैडम ...
जाँच करके बताइए,
मेरे पेट में नर है या नारी ?
अगर नारी है ....... .
तो जन्म देना होगा भारी .
मुझे सिर्फ कुलदीपक चाहिए .
बंश परम्परा का द्द्योतक चाहिए .
तभी माँ के उदर से ,
निर्दोष बच्ची की बिलखती सी आवाज आयी .
माँ के फैसले से बच्ची अधिक तिलमिलाई .
ओ... मेरी ...इक्कीसवी शदी की माँ .........???
तुम तो नारी हो...... नारी की सोच ....
सिर्फ पार्लियामेंट में
बिल पास करवाने से क्या होगा ?
हमारी झोली में भी मानवता का अधिकार भर दे .
अगर पास करना है ..........
तो अपनी ही कोख में .......
महिला आरक्षण का बिल पास कर दे .
महिला आरक्षण का बिल पास कर दे .

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

नुक्ता चीं की भी सही तहजीब होनी चाहिए ।।

दिल की  जज्बातें बयां तरतीब होनी  चाहिए ।
नुक्ता चीं  की भी सही तहजीब  होनी चाहिए ।।

हर तरफ तो धुंध है ,छाया   हुआ  कुहरा घना ।
कातिलों की  बस्तियां  करीब   होनी चाहिए ।।

शायरों के शेर  को  करते हैं वो  अक्सर  फ़ना ।
बच  के  आये  शायरी,  नसीब   होनी  चाहिए ।।

क्यों सहादत माँगते हो उनके रुतबे की  भला ।
उनकी हिम्मते जमीर तो गरीब होनी चाहिए ।।

वह कहानी इश्क की, लिखता  रहा  वर्षों  से है ।  
ये   कहानी   भी   बड़ी , अजीब  होनी  चाहिए ।।

गर  मुहब्बत   है जरूरी, अपनी ही बेगम  भली ।
शर्त   ये   बेगम   मेरी,   हबीब   होनी   चाहिए ।। 

हर  कलम तारीफ लिखती जा रही  इस दौर में । 
वह   कलम   मेरे   लिए   रकीब   होनी  चाहिए।।

                                    नवीन  

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

तेरी आँखों में ......

तेरी आँखों में ......
                     


ग़ज़ल  की  तश्नगी  जरूर  तेरी  आँखों   में |
मीठे   एहसास  का  सरूर 
तेरी  आँखों  में ||

आइना  ने    अक्स , जब  तुझको  दिखाया |
बे  अदब  आ  गया , गुरूर   तेरी  आँखों  में ||


नज़र नज़र से मिली मुश्किलों के बाद मगर |
खास  तश्वीर   लगी   दूर    तेरी   आँखों    में ||

सुबूत दिल ने दिया दिल के सबब से तुमको |
है  बेवफाई   का    फितूर   तेरी    आँखों   में ||

जाम छलके भी हैं अक्सर यहाँ सलीके बिन |
मगर    है   कीमती   सहूर   तेरी   आँखों  में ||

तलाश   मंजिलों  के  आस  पास  से गुजरी |
मिली  वो  जन्नतों  की  हूर  तेरी आँखों में ||

जुल्फें हर वक्त क़यामत   का  जुल्म ढाती हैं |
लाल  डोरे  भी   हैं   मशहूर  तेरी   आँखों  में ||

दुआ मांगी थी जो मौला से मोहब्बत खातिर |
नफरतें   आयी   थीं   भरपूर  तेरी  आँखों  में ||

हार   कर  बैठ  गया  था  मैं  अधेरों  से  यहाँ |
पा  गया  जिंदगी  का   नूर  तेरी    आँखों  में ||

छुपा  छुपा  के  जतन लाख कर लिया तुमने |
बे   पर्दा   इश्क    है  हुजूर,  तेरी   आँखों   में ||

जब  भी  तनहा हुए, यादों के समंदर में गिरे |
अश्क  ढलने  लगे   मजबूर   तेरी  आँखों  में ||

हो  के  बेचैन  जब  मैं  तुझको  भूलना चाहा |
दिखा   है  मेरा   ही   कसूर   तेरी  आँखों  में ||

                          नवीन


शनिवार, 21 जनवरी 2012

सियासत में शातिरों का इजाफा कुछ और है ....

सियासत में शातिरों का इजाफा कुछ और है ....
                                                               नवीन

इस मुल्क के अमन का तकाजा  कुछ और है |
सियासत में शातिरों का इजाफा कुछ और है ||


बूढा  फ़कीर   देश   की  तश्वीर  क्या  बदले |
खुदगर्ज  ज़माने  का  शिगूफा  कुछ  और है ||

ढहने   लगे   मकान   क्यों   ईमानदार   के |
शक को यकीन ने भी  तराशा  कुछ और है ||

ढूढ़ा   था  एक   नूर    उम्मीदों   के  वास्ते |
पर वक्त पर लगा की तलाशा  कुछ और है ||

ख़त लिख रहे हैं रोज रियाया के लिए खूब |
मजबून है तो खास ,लिफाफा कुछ और है ||

दूकान  चल   रही है  यहाँ  हक़  खरीद कर |
धंधे  का हकीकत  में  मुनाफा कुछ और है ||

कागज में हैसियत का है वो आम आदमी |
देखा  चुनाव  में  तो  सराफा  कुछ और है ||

इंशानियत  की कद्र से वाकिफ नहीं थे जो |
उनको जम्हूरियत ने नवाजा कुछ और है ||

संसद में कसम खाते है हर कौम की खातिर |
मजहब के लिए उनका तमाशा कुछ और है ||

कुर्सी  पे  बैठ पी  गए  दौलत  वो मुल्क  की |
लगता है ज़माने को वो प्यासा कुछ और है ||

 

सोमवार, 16 जनवरी 2012

मेरा भारत महान है .

देश की बहुरंगी आकृति .                                              
निरूपति करती है हमारी संस्कृति .                                
हमारी सभ्यता,                                                                 
 विश्व की श्रेष्ठ सभ्यताओं में से एक है .            
हमारी भाषा वेश भूषा ,
सब कुछ अनेक है .
अनेकता में एकता है .
यही तो विशेषता है .
गत वर्षों में हमने ,
अनेक सभ्यताओं व संस्कृति का विकास किया है .
इस दर से किसी देश ने ,
कहाँ सभ्यता का विकास किया है ?
हमारे प्राचीन परिवेश बदल चुके हैं .
हम नूतन मौलिकता में प्रखर हो चुके हैं .
हमारी चेतना संयुक्त के बजाय ,
एकाकी जीवन की ओर उन्मुख है .
आधुनिकता का धरातल हमारे सन्मुख है .
संवेदनशीलता ...
हमारी  प्रगति में बाधक है .
देश की उन्नति में अवरोधक है .
संवेदनाओं को हमने ,
धुएं में उड़ना सीख लिया है .
हो रही किसानों की आत्म हत्त्याओं पर ,
मुस्कुराना सीख लिया है .
हमने सीख लिया है ,
बहू बेटियों को जलाना.
शोषण के सेज पर नारियों को लिटाना .
संस्कारों के क्षेत्र  में हमने ,
अभूत पूर्व परिवर्तन किया है .
बूढ़े माँ बाप को दूर किया है .
अब वे हमें अनावश्यक  भार लगते हैं .
इसलिए उन्हें घर के बजाय आश्रम में रखते हैं .
जाति धर्म की विलुप्तप्राय खाइयों का ,
 जीर्नोध्वार किया है .
धर्म निरपेक्षता पर भी करारा वार किया है .
भ्रष्टाचार का आधुनिकतम रूप ,
हमारा नया अनुसंधान है .
हमारी नयी तकनीक से पूरा विश्व हैरान है .
आनर किलिंग का पेटेंट कराने का हमें ,
पूरा अधिकार है .
क्यों की यह
हमारे तुच्छ जनमानस को स्वीकार है .
हमारी तकनीक से जाँच एजेंसियों को ,
सुबूत नहीं मिलता है .
इससे हमारी योग्यता को बल मिलता है .
हम आतंक वाद उग्रवाद नक्सलवाद को ,
हासिल कर चुके हैं .
अदभुद राष्ट्र भावना के अंतर्राष्ट्रीय पुरष्कारों की दौड़ ,
में शामिल हों चुके हैं .
जाति वाद क्षेत्रवाद की भावना को ,
विकृत रूप दिया जाये .
थोडा सा जहर और घोल दिया जाये .
तो सम्भव है .......
गिरी राष्ट्र भावना का अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार ,
तुम्हारा देश पा जाये .
इक्कीसवीं सदी का प्रथम चरण .
प्रगति का हो चुका है अनावरण .
हर तरफ घोटालों का भरमार .
टूट रहा अर्थ शक्ति द्वार .
अपराध जगत के चक्रवात में ,
जन नायकों का योगदान है .
सोचो .....................
कितना सुरक्षित देश का स्वाभिमान है ?
शदी के प्रथम चरण का ,
यही सोपान है .
मानवता की अवनति ,
संवेदनाओं का बलिदान है .
जी हाँ तुम गर्व से कहो ..........
और खूब कहो ......
मेरा भारत महान है .
मेरा भारत महान है .

शनिवार, 7 जनवरी 2012

यहाँ सस्ता नहीं कुछ भी

                 यहाँ सस्ता नहीं कुछ भी .....



यहाँ सस्ता नहीं कुछ भी, यहाँ तो  नाम बिकता है |
तुम्हारे  जहाँ   का  ईमान , तो  बेदाम  बिकता  है ||

सिसकती माँ के आँचल से, तड़प कर भूख से रोया |
मिला कर दूध में पानी, तो  सुबहो शाम बिकता है ||
  

वो  लज्जा है ,हया  है ,शर्म  है ,आँखों  का  पानी है |
शहर में आबरू अस्मत भी  खुले आम  बिकता है ||

 
उसे बिकता हुआ देखा तो ,अश्कों ने  भिगो डाला |
करूं क्या  एक  की चर्चा, यहाँ  आवाम बिकता है ||


बाप  मजबूर  था , बेटी  का दूल्हा  ला नहीं पाया |
मंडी  में  यहाँ  दूल्हा  भी , एक  दाम  बिकता  है ||
 

मौत   की   खातिर  शुकूं, ढूढ़ा   इसी  बाज़ार  में  |
 क्या  खबर  थी  अब  यहाँ  कोहराम  बिकता  है ||
 

वो  शातिर है  वो झूठा है जमाना  खूब वाकिफ है |
उसी को ताज है हासिल, यहाँ  ईनाम  बिकता  है ||

बेचने  वालों  ने  छोड़ा  नहीं, कुछ भी  यहाँ  यारों  |
कहीं जीसस ,कहीं अल्ला कहीं पर राम बिकता है ||
                                       "नवीन "


शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

2012 अवधी भाषा में छंद

             आप सब को नव वर्ष २०१२ पर हार्दिक बधाई देता हूँ | प्रभु की महान अनुकम्पा सदैव आप के साथ रहे तथा नूतन वर्ष में आपकी लेखनी साहित्य सृजन के क्षेत्र में अनवरत अनंत ऊँचाइयों   को छूती  रहे | 

       नव वर्ष 2012  आ गया है | मैंने अपनी भावनाओं के माध्यम से  अवधी भाषा में मंगल कामना हेतु  कुछ छंद समाज के चार वर्गों को समर्पित करने का प्रयास किया है | विश्वास  है, आपका स्नेह मेरी रचना के लिए जरूर मिलेगा | 



                   वर्ष २०१२ पर मंगल   कामना लिए हुए समाज के चारों वर्गों को समर्पित क्षेत्रीय अवधी भाषा में  छंद -

धन  धान्य  भरै,घर क्लेश मिटै, मिटि  जावहि जीवन कै अधियारो |
 यहि  बारह अंक से ,बारह राशि  को,  वर्ष मिलै  तुमका उजियारो ||
बस  प्रीति की  पाँखुरी  में  सगरौ ,तुम मोहक मोहक  पंथ  निहारो |
लडिके  पडिके   सब  फूलैं फलै ,यही  देखि तुम्हारे हों  नैन सुखारो ||


निज   कर्म  के  रंग  न  भंग  परै, तुलसी   कै  बयार  बहै  नित द्वारो |
माया  की  माया  से  दूरि राखें प्रभु ,चंचला  गनपति  संग  पधारो ||
कहत   नवीन   जौ   नूतन   साल से, नेह   के  नवरस  पान चखारो | 
फूल   गुलाब   सरीखी   खिलै ,होई  मंगल  मय   नव  वर्ष  तुम्हारो ||


रक्त   की  बात  करौ  न सखा , यहि वर्ष कै चाँद भलो  अति  न्यारो |
जरदारी  गिलानी कियानी  सबै, मिटि जावहिं आपन पाप के भारो||
बसुधैव  कुटुम्ब  की  ज्योति  लई यहि  देश  की  पावन भूमि पुकारो |
नव   देश  रचौ  नव  रंग  भरौ , नव   नीरज  के  जस  वर्ष  ऊकारो ||


खटिया - मचिया, कथरी - दउरी ,ड्योढ़ी  मा  सजै तुम्हरे घर बारो |
बिटिया  कै बियाहे  कै  हेंगा  गडै ,नव  पाहुन  आवै  तिहारे वसारो ||
खइरी  भइसी  कै   दूध   बढे, बढ़ी  जवाहिं   पूँछहिं   पूँछि   मुहारो |
नारिया खपड़ा कै विसारो तनि, यहि साल नवा घर मा  सिर डारो ||