तीखी कलम से

रविवार, 13 नवंबर 2011

बदलते वक्त में मौसम की निशानी बन जा

बदलते वक्त में मौसम की निशानी बन जा .
महकते बज्म में फूलों की जवानी बन जा ..

मुखौटा ओढ़ के बैठा है फिर कोई शातिर .
बचपना छोड़ के थोड़ी सी सयानी बन जा ..

हम यहाँ दीप के बदले में दिल जलाते हैं.
स्याह सी रात में तू, भोर की लाली बन जा..

बड़े खामोश से लम्हों में कतल की आहट .
जिगर के कातिलों की आँख का पानी बन जा ..

एक मुद्दत से तेरा इंतजार करता हूँ .
मेरी किस्मत की तू इक शाम सुहानी बन जा ..

मैकदे में तो बहुत जाम है लेकिन साकी .
एक पैमाने भर शराब , पुरानी बन जा ..

महक उठी है एक शाम , तेरी खुशबू से .
फिजा के वास्ते तू रात की रानी बन जा ..


--- नवीन मणि त्रिपाठी

जी -१/२८ अर्मापुर कानपूर


फ़ोन न ० 09839626686
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