तीखी कलम से

रविवार, 11 दिसंबर 2011

अभिशप्त लोकतंत्र

   अभिशप्त लोकतंत्र
                      
                                 -¬नवीन  


  एक महान आहुति,           
स्वतंत्र राष्ट्र की परिणिति।
असंख्य कुर्बानियॉं ,
खण्डित हुई ब
ेड़ियॉ।
एक स्वर्णिम राष्ट्र की परिकल्पना।
राम राज्य का सपना।
कहॉ हुआ अपना ?
हम कहॉ पा सके,
समानता का अधिकार ?
नहीं रोक सके,
मानवता पर अत्याचार।
पूजीवादी व्यवस्था का पोषण,
गरीबों का शोषण।
अब एक सामान्य सी,
घटना हो गयी है।
देश की तश्वीर बदल गयी है।
न्याय की दूकान धड़ल्ले से चल रही है।
कहीं साक्ष्य तो कहीं गवाही बिक रही है।
ईमान का रेट ,
बहुत सस्ता हो गया है।
पेट की भूख से ,
इन्सान खस्ता हो गया है।
हमने खो दिया है मकसद,
आजादी का।
उन्हें 15से 20फीसदी,
जनसर्मथन हासिल है।
जनमत आबादी का।
क्या हम अवैध सत्ता के
गुलाम हो चुके हैं ?
स्वतंत्रता का मुकाम खो चुके हैं?
वे अरबों के घोटाले करते हैं।
देश को चूसते हैं।
अपनी सुरक्षा का कनून बुनते हैं।
जनता के सामने मासूम दिखते हैं।
हमारी आवज पर,
ताला लगाने की तैयारी है।
सोशल नेटवर्किंग की बारी है।
न्यूज चैनल पर भी ,
उनका शिकंजा है।
हमारी अभिव्यक्ति पर लग चुका
तमंचा है।
हम उन्हें पद से वापस बुलाने का
अधिकार चाहते हैं।
दो बटे तीन देश की पूर्ण जनमत की
सरकार चाहते हैं।
हमें यह अवैध चुनाव प्रणाली ,
बदलनी ही होगी।
समस्त मतदाताओं के मतदान की
अनिवार्यता करनी ही होगी।
हमें नहीं चाहिए ,
मात्र बीस फीसदी जनमत की सरकार।
नहीं बर्दाश्त करेंगे ,
बीस दलों की बाजार।
पक्ष-विपक्ष के रूप में
मात्र दो दल चाहिए।
एक लोकतंत्र.....
सबल चाहिए।
जॉति पॉति व धार्मिक,
भावनाओं के, भक्षक है वे।
राष्ट्रय एकता के विध्वंसक हैं वे।
जनता अपने चारों स्तम्भों से
उदास है।
गुलामी जैसी स्थिति के आसपास है।
क्यों ना एक और संग्राम छेड़ा जाए।
सारे काले धन को निचोड़ा जाए।
जागो यह एक ,
खतरनाक जनतंत्र है।
ऐसा लगता है,
देश आज भी परतंत्र है।
देश को लूटता हुआ...... 

यह कैसा गणतंत्र है।
मानो या ना मानो ,
यह तो एक........
अभिशप्त लोकतंत्र है।
यह तो एक
अभिशप्त लोकतंत्र है।।

        -नवीन मणि त्रिपाठी

23 टिप्‍पणियां:

  1. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 12-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  2. आज की हालात पर करारा चोट करती..सही दिशा दिखाती सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  3. आज के हालात और खास तौर पर लोकतंत्र का माखौल उड़ाती व्यवस्था पर गहरी चिंता व्यक्त हुई है इस रचना में।

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  4. 'आयना' सामने रख दिया- यथार्थ कृति.

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  5. बहुत ही उम्दा रचना ...एक एक शब्द सटीक ..आभार

    मैं पूछ रही दिल्ली तुझ से
    ये प्रजा तंत्र अब बचा कहाँ ?

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  6. पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धक टिप्पणी देने के लिए!
    सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  7. देश आज भी परतंत्र है।
    देश को लूटता हुआ......
    यह कैसा गणतंत्र है।
    मानो या ना मानो ,
    यह तो एक........
    अभिशप्त लोकतंत्र है।
    यह तो एक
    अभिशप्त लोकतंत्र है।।

    बहुत सुन्दर कविता ..!
    देश के वर्तमान दशा को उजागर करती सुन्दर रचना ..!
    मेरे ब्लॉग आपका हार्दिक स्वागत है ..!

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  8. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.

    आभार.

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  9. सटीक और प्राभावशाली अभिव्यक्ति है.

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  10. aapke blog par pahli baar aana hua..behad shandar prastuti..jo jhakjhorati hai..aandolit karti hai..jab aapke baare me padha to aaur bhi khusi hui kee aap babhnan ke behad karib hain..chaliye aaj is tarah baat hogi..khuda ne chaha to kabhi mulakat bhi hogi..sadar

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  11. सत्य का आइना दिखती सटीक सार्थक रचना,...सुंदर पोस्ट

    कुछ इसी तरह की मेरी रचना.....देखे..
    मेरी नई पोस्ट केलिए काव्यान्जलि मे click करे

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  12. सटीक पंक्तियाँ..... बहुत कुछ समेत लिया आपने आज के हालातों पर .....

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  13. आपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट 'खुशवंत सिंह' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।

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  14. Loktantra nahi ab to yah lottantra ya loottantra ban gaya hai..
    sarthak prastuti..

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  15. सुंदर पोस्ट ..सटीक पंक्तियाँ.....

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